कोटा व्यवस्था और विकसीत भारत का सपना
- दिसम्बर 9, 2024
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भारत एक कुत्सित शिक्षा एवं रोजगार कोटा व्यवस्था अपनाने की दहलीज पर खड़ा है। असंवेदनशील राजनीति एवं न्यायिक हस्तक्षेप सहित कई कारणों से भारत इस गुत्थी में उलझता जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण पर हाल में अपने एक आदेश में किसी भी श्रेणी में वास्तविक रूप से पिछड़े लोगों के लिए कोटा में अलग से कोटा (सब-कोटा) तैयार करने के विचार का समर्थन किया है।
उच्चतम न्यायालय का आदेश अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) में संपन्न समूहों को उसी वृहद श्रेणियों में दूसरे लोगों के खिलाफ खड़ा कर देगा। इसका कारण यह है कि आदेश में उन जातियों के लिए अवसरों में कमी करने की बात कही गई है, जो अब तक कोटा से सबसे अधिक लाभान्वित हुए हैं। इससे अंतर-जाति टकराव शुरू हो जाएगा।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि मणिपुर में जारी मौजूदा हिंसा पिछले साल न्यायालय के उस आदेश के बाद भड़की थी जिसमें कहा गया था कि हिंदू मैतेई भी अनुसूचित जाति माने जा सकते हैं। कुकी समुदाय ने इसका कड़ा विरोध किया था।
कोई भी राजनीतिक दल कोटा लाभार्थियों के किसी उप-समूह को वंचित नहीं करना चाहता है। कुछ राज्य (तमिलनाडु) काफी पहले 69 प्रतिशत कोटा की तरफ कदम बढ़ा चुके हैं। अब इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोटा समर्थकों के लिए 69-75 प्रतिशत कोटे का प्रावधान हासिल करना नया लक्ष्य होगा।
पहचान आधारित आक्रामक राजनीति का प्रसार और कोटा प्रणाली में अनवरत विस्तार रोकने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों, बुद्धिजीवियों एवं निजी क्षेत्र के विचारकों को एससी, एसटी एवं ओबीसी में प्रतिस्पर्द्धी क्षमता बढ़ाने की एक वैकल्पिक रणनीति सुनिश्चित करने पर विचार करना चाहिए। इससे धीरे-धीरे कोटा प्रणाली आधारित व्यवस्था से दूर जाने में मदद मिलेगी।
कोशल युक्त रोजगार के अवसर में बढ़ोतरी भी हो रही है। विनिर्माण एवं सेवाओं में तकनीक एवं स्वचालन (ऑटोमेशन) के तेजी से इस्तेमाल से हुनरमंद लोगों की मांग बढ़ रही है। अत्यधिक सक्षम एवं हुनरमंद लोगों (जैसे साइबर विशेषज्ञ, न्यूरोसर्जन) की मांग काफी अधिक है, लेकिन साथ ही, तकनीक संचालित मगर कम हुनर वाली नौकरियों (जैसे उबर चालक, सुरक्षाकर्मी, लॉजिस्टिक एवं डिलिवरी पर्सन, रिटेल क्लर्क) की भी उतनी ही मांग है।
हालांकि, कोई भी साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ या न्यूरो सर्जन की नियुक्ति कोटा के माध्यम से नहीं करना चाहेगा ।
निष्कर्ष यही निकलता है कि यह सोचना गलत है कि केवल कोटा व्यवस्था के माध्यम से अवसरों की समानता सुनिश्चित की जा सकती है। ना ही, कोटा से विकसित भारत बनाने का सपना पूरा हो सकता हैं। अगर कोटा पर हम आपस में यूं ही लड़ते रहें तो यह लक्ष्य प्राप्त करना और भी मुश्किल हो जाएगा।
R. Jagannathan
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