शोध में सरकारी भूमिका
- अक्टूबर 10, 2023
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सिद्धांत यह कि सरकार द्वारा सार्वजनिक एवं निजी दोनों शिक्षण संस्थानों में शोधकर्ताओं के लिए धन का प्रबंध किया जाना चाहिए। सार्वजनिक वित्त पोषण के अंतर्गत रुपये की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए और निजी स्रोतों पर किसी तरह की निर्भरता नहीं होनी चाहिए। जिसकी जवाबदेही सीधे केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रति हो। इसका प्रभावी इस्तेमाल होना चाहिए तभी यह उच्च शिक्षा एवं वैज्ञानिक शोध दोनों में बड़े बदलाव ला सकता है। मगर किस प्रकार के शोध के लिए धन उपलब्ध कराया जाना चाहिए?
केवल समान क्षेत्र में काम करने वाले शिक्षाविद् ही इस बात का निर्णय कर सकते हैं कि कोई प्रस्ताव धन मुहैया कराने के लायक है या नहीं। तकनीक की प्रगति पर नजर रखने वाले पर्यवेक्षकों ने लंबे समय से शोध में प्रासंगिकता या उपयोगिता पर जोर दिए जाने के प्रति आगाह किया था। गैर उपयोगी और उपयोगी शोध के बीच अंतर पूरी सावधानी से किया जाना चाहिए और इसमें विशेष सतर्कता बरती जानी चाहिए। क्योंकि जब कोई किसी दूसरी चीज की खोज कर रहा होता है तो उस दौरान कुछ बड़े अलग परिणाम सामने आ जाते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता के आधार पर शोध को बढ़ावा दिया जाना लक्ष्य से एक तरह भटकाव है।
एक प्रभावी शोध नीति संभावनाओं के कई द्वार खोलेगी और निजी क्षेत्रों को इनका लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। शोध के दायरे में पूरी समझदारी के साथ विविधता लाई जानी चाहिए। कई प्रमुख खोजों में भी यह बात सामने आई है।
तकनीकी एवं वैज्ञानिक प्रगति का मार्ग अनिश्चित एवं उतार-चढ़ाव वाला होता है। शोधकर्ताओं को उनकी बौद्धिक यात्रा पूरी करने की अनुमति देना संभावनाओं को जन्म देता है। यह संभव है कि वे अपने निर्धारित लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाए मगर वे जहां तक पहुंच पाते हैं वहां दुनिया उससे बेहतर हो जाती है जब बेहतर बनाने के लिए प्रयास शुरू हुए थे।
बड़े स्तर पर वैज्ञानिक शोध के लिए आम तौर पर उपकरणों में भारी निवेश की आवश्यकता होती है। बड़े वैज्ञानिक खोज वैश्विक स्तर पर विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति के लिए मायने रखते हैं। आर्थिक संपन्नता बढ़ने के साथ भारत भी इस प्रयास का हिस्सा बन सकता है।
तकनीकी और वैज्ञानिक प्रयोग विकल्पों को जन्म देते हैं। बाजार सबसे उत्कृष्ट विकल्प का चयन करता है। पूंजीवाद नवाचार करने की क्षमता कई विकल्पों से प्राप्त करता है। विकल्प खोजने की इस प्रक्रिया में कई निष्कर्ष या खोज उपयोगी नहीं होते हैं। मगर वास्तव में यह बात ही इस प्रक्रिया को शक्तिशाली बनाती है क्योंकि बाजार कई विकल्पों में सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन करता है। सरकारद्वारा चयनित नवाचार क्षमता को तरजीह देता है इसलिए वह कमजोर साबित होती है। जबकि बाजार निर्धारित नवाचार शक्तिशाली होते हैं क्योंकि इसमें उपयुक्त एवं श्रेष्ठ विकल्प का चयन होता है।
शोध में सरकार की भूमिका सहकर्मी समीक्षा के आधार पर शिक्षण संस्थानों को धन मुहैया कराने तक सीमित होनी चाहिए। सरकार को यह तय नहीं करना चाहिए कि क्या और किसे धन मुहैया कराना चाहिए और उसे केवल कुछ बड़े क्षेत्रों पर ही ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए।
कंपनियों को सार्वजनिक शोध के आए नतीजों का लाभ लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए। इसके बाद उद्योग को इसके अपने विशिष्ट स्वरूप पर ध्यान देने का अवसर और उन सेवाओं एवं उत्पादों के लिए प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति दी जानी चाहिए जिन्हें लोग खरीदना चाहते हैं।