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सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को डिफॉल्टर कंपनियों द्वारा लिए गए ऋणों के व्यक्तिगत गारंटरों के खिलाफ उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिए बिना, दिवालिया कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दे दी, विशेषज्ञों ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण फैसला है जो दिवालियापन प्रक्रिया को तेज कर सकता है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने अनिल अंबानी, वेणुगोपाल धूत और संजय सिंगल सहित दिवालिया कंपनियों के पूर्व प्रमोटरों द्वारा दायर याचिकाओं के एक सेट को खारिज कर दिया, जिसमें उनके खिलाफ शुरू की गई व्यक्तिगत दिवाला कार्यवाही को चुनौती दी गई थी। इसने 2016 (आईबीसी) के विभिन्न प्रावधानों को भी बरकरार रखा, जिन्हें उचित प्रक्रिया की अनुपस्थिति और प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों के उल्लंघन जैसे आधारों पर चुनौती दी गई थी।

अदालत ने कहा कि आईबीसी प्रावधान मनमानेपन से ग्रस्त नहीं हैं जैसा कि याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है, ‘‘आईबीसी को संविधान का उल्लंघन करने के लिए पूर्वव्यापी तरीके से संचालित नहीं किया जा सकता है,‘‘ अदालत ने कहा। ‘‘हम मानते हैं कि क़ानून स्पष्ट मनमानी के दोषों से ग्रस्त नहीं है।‘‘

नवंबर 2019 में, केंद्र ने ऋण का भुगतान करने में विफल रहने वाले कॉरपोरेट्स के गारंटरों के खिलाफ व्यक्तिगत दिवालियापन मामलों की अनुमति देने के लिए दिवालियापन कानून में बदलाव किया।

उच्च ऋण वाली कंपनियों के प्रमोटर अक्सर कॉर्पाेरेट ऋण पर व्यक्तिगत गारंटी देते हैं।

दिवालियापन कानून में विशेषज्ञता रखने वाले एक वकील ने कहा कि इस फैसले से ‘‘यक्तिगत गारंटरों के खिलाफ नई कार्यवाही दायर की जाएगी। ‘‘राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के समक्ष लंबित मामले ‘‘अपने तार्किक परिणाम की ओर आगे बढ़ेंगे, जब तक कि गारंटर भुगतान नहीं करते, उन्हें अनमुक्त दिवालिया घोषित कर दिया जाएगा, उम्मीद है कि इससे बैंकों की त्वरित वसूली होगी।‘‘