SC lifts NPA standstill
- मार्च 25, 2021
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The Supreme Court on Tuesday ruled that banks cannot charge interest on interest for accounts that sought moratorium relief during the pandemic period last year and the amount so collected must be refunded in the next installment of the loan account.
The cut-off for such moratorium, the apex court said, would be August 31, 2020, beyond which all loans that had not been repaid as per schedule can be declared non-performing assets (NPA). Rejecting the pleas to extend the six-month loan moratorium cannot be granted either.
Banks can also finally start declaring their bad loans (loans which have not been repaid for 90 days or more), with the court vacating the interim relief granted earlier not be declare the accounts of borrowers as NPA.
Importantly, the judges said the banks “have to pay the interest to the depositors and their liability to pay the interest on the deposits continue even during the moratorium period”. Many savers and institutions depend upon the interest payment by banks.
Therefore, to grant such a relief total waiver of interest during the moratorium period would have a far-reaching financial implication in the economy of the country as well as the lenders/banks”, the judges said.
However, giving relief to borrowers, the Supreme Court ruled that any amount already charged shall be refunded, credited, or adjusted in the next installment of the loan.
कर्ज का भुगतान नहीं करने वालों के खाते घोषित होंगे एनपीए
सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पिछले साल माहारी के दौरान ऋण माॅरेटोरियम का लाभ लेने वालों से बैंक ब्याज पर ब्याज की वसूली नहीं कर सकते। शीर्ष अदालत ने ऋण माॅरेटोरियम की समयसीमा 31 अगस्त, 2020 को बरकरार रखा और कहा कि इसके बाद कर्ज की किस्त का भुगतान नहीं करने वाले खातों को नियमानुसार गैर-निष्पादित आस्ति (एनपीए) घोषित किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि किसी के लिए भी माॅरेटोरियम की अवधि नहीं बढ़ाई जाएगी।
पिछले साल सितंबर मे सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि अगले आदेश तक किसी भी खाते को एनपीए घोषित नहीं किया जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित कर्जदारों के खातों को एनपीए घोषित नहीं करने का अंतरित आदेश वापस ले लिया है।
अदालत ने मामले का निपटाारा करते हुए आदेश दिया, ‘माॅरेटोरियम अवधि के दौरान किसी भी कर्जदार से ब्याज पर ब्याज/चक्रवृद्धि ब्याज या दंडात्मक ब्याज नहीं लिया जाएगा और इस मद में अगर किसी तरह की वसूली की गई है तो उसे कर्ज की अगली किस्त में समायोजित किया जाए या वापस किया जाए।
मूल माॅरेटोरियम मार्च 2020 में लागू हुआ था, जो तीन महीने के लिए था। लेकिन मई में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने माॅरेटोरियम की अवधि को तीन महीने के लिए यानी 31 अगस्त तक बढ़ा दिया था।
एक अहम टिप्पणी में न्यायाधीशों ने कहा कि बैंकों को जमाकर्ताओं को ब्याज देना है और माॅरेटाॅरियम की अवधि के दौरान भी उन्होंने जमाकर्ताओं को ब्याज भुगतान की उनकी जवाबदेही बनती है। न्यायाधीशों ने कहा कि कई लोग और संस्थान बैंकों से प्राप्त ब्याज पर काफी हद तक निर्भर रहते हैं। उन्होंने कहा, ‘इन बातों को ध्यान में रखते हुए माॅरेटाॅरियम के दौरान जमा ब्याज माफ करने का देश की अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर होगा और बैंक एवं ऋणदाता संस्थानों पर भी इसका प्रतिकूल असर होगा।’ हालांकि ग्राहकों को राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जो रकम पहले ही काट ली गई है, वह लौटाई जाएगी या कर्ज की अगली किस्त में समायोजित की जाएगी। सरकार ने अक्टूबर 2020 में 2 करोड़ रुपये तक के ऋण पर चक्रवृद्धि ब्याज माफ करने की घोषणा की थी। इससे सरकार पर 5,500 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा था। न्यायालय ने कहा कि ब्याज पर ब्याज माफ करने का लाभ कुछ खास आकार के ऋणों तक ही सीमित रखने के सरकार के निर्णय की कोई तुक नहीं है।