Harwinder Singh
- जून 23, 2021
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Established in 1976 formerly known as Harbhajan Hydraulics under the dynamic leadership of S. Jaswant Singh who started the company with a dream to make state of the art machines, better than anyone else. This dream reflects in our current line of products which includes Hydraulic Broaching Machine, Orbital Riveting Machine, Hydraulic Forging Presses, Rubber Moulding Machine and Core Drying Hydraulic Press.
What was your experience in second wave of covid-19
To push up the economy, international entities, specially China in particular, invested enthusiastically on infrastructure. Although, export of steel rose tremendously; it put pressure on engineering sector in India. Leading to price rise, at all levels in India also. Our margins smashed pathetically on every consignment, we have to deliver.
Surprisingly, oxygen made a havoc in the second wave. Local government authorities could not procured or managed oxygen in such a short Span. Collecting Industrial cylinders was their easy target. Although, there is technical difference in industrial oxygen cylinders and medical cylinders, yet they did whatever was easy at that moment. Anyone can understand how our working suffered in lack of cylinders.
Effect on your market?
In absence of national lockdown, All market were disturbed at different levels, due to localised lockdown, that affected working in factories. Dispatches were postponed or delayed. Moreover, movement of payment was halted at different locations. As everyone was helpless, and locked up, the situation was severely grim. Congrats to the community for the patience. However, new investments were put on hold by the enterprises. Everyone was trying to silently passing the toughest period. We are also waiting for the rejuvenation of entrepreneurs.
Hard Times are gone?
It was not that easy as in saying. Technical staff, who are associated with us, were also affected, simultaneously. Our margins and finances squeezed and so their’s. Whereas we were trying to get relieved by the previous year’s turbulence, suddenly everything moved to negative, breaking our positive efforts. Everyone is hurted as Inflation is rocketing high. This is the time period when everyone expects raise in their salaries. Fact can’t be denied, that we feel so helpless at the moment.
Hope everyone is safe around you?
Mortality rate during the second wave is much higher. Mismanagement due to ignorance or greediness in medical services was more harmful. Any one is very much blessed, who was not shattered by sudden demise of any near and dear ones. It certainly will affect on the businesses and payment system in coming days.
Circumstances at present?
Perfection in one segment, definitely gives us satisfaction and promotion. Present scenario is compelling us for a rethinking in preference and Diversification. Perhaps we have to search for new possibilities, in coming days.
Difference between 50 D/L and 20 D/L core dry press?
50 D/L core dry press is much more economical than 20 D/L Press. Both in fixed and running cost. In 20 D/L HP, core is filled in all D/L and then it is left for 40-60 minutes for drying. After drying, again green core is loaded, unloading the drying core. Press is left ideal during the process of load-unload.
If the machine is handled by a single operator, normally he tries to defame/break the machine by disturbing its operation as he don’t get sufficient/enough time for rest.
If the comparative analysis with 20 D/L Hot Press is done, 50 D/L core dry press gives much better realization in productivity along with saving of time and energy. I request and suggest every enterpreneur to experience it personally.
See Video: www.plyinsight.com/arsh-engineering-works-7/
Hindrance in new innovations?
Perhaps we can boast of to be the first one in developing Core veneer Drying Hot Press in India. Indian’s are best technologists and innovative in the world. But fail to encash the technology. Either we are ignorant of the patent system or we can say it unsupportive govt machineries.
Anyone who spends his knowledge and experience and time with capital, feels robed, when someone pushes in market copying it and making it slightly different and cheaper. And the dilemma is that he never tries for further attempt. This is the reason behind, why people are prudent just on marketing the improved machineries, rather than to develop or import the technology.
कोविड-19 की दूसरी लहर में क्या परेशानी हुई?
अंतरराष्ट्रीय बाजार में खासकर चाइना में इंफ्रास्ट्रक्चर में खुलकर काम हुआ। जिसकी वजह से उन्होंने जमकर आयात किया। भारतीय स्टील निर्माताओं को उस मांग से अपनी कीमतें बढ़ाने में मदद मिली। निर्यात बढ़ गया, लेकिन साथ ही घरेलू बाजार में भी स्टील की कीमतें आसमान छूने लग गई। हमारे जो भी आर्डर पिछली रेटों में लिए हुए थे उनमें हमारा मार्जिन खत्म हो गया।
कोविड-19 की दूसरी लहर अचानक तेजी से आने पर इस बार ऑक्सीजन की जरूरत बहुत ज्यादा महसूस की गई। प्रशासन को इतनी ऑक्सीजन की उपलब्धता एकदम से कर पाने में अक्षमता हुई, तो उन्होंने हमारे इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन सिलेंडर को अपने कब्जे में कर लिया। हालांकि इंडस्ट्रियल सिलेंडर और हाॅस्पिटल वाले सिलेंडर दोनों में तकनीकी फर्क होते हैं। लेकिन व्यवस्था तो करनी ही थी उन्होंने। हमारे सारे तकनीकी काम ऑक्सीजन सिलेंडर से ही होते हैं। अपने आप हमारी कार्यक्षमता एकदम से घट गई।
आपकी मार्केट पर क्या असर पड़ा?
देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से लाॅकडाउन लगने की वजह से प्लाईवुड की मार्केट बाधित हो गई। जिससे फैक्ट्रियों में कामकाज अव्यवस्थित हो गया। उनकी सेल घटी। उससे भी ज्यादा दिक्कत हुई कि भुगतान का आदान प्रदान बहुत कम हो गया। जहां तहां लोगों के पेमेंट रुक गए। समस्या जेनुइन थी इसलिए जोर जबरदस्ती भी नहीं की जा सकती थी। जहां काम चल रहा था वहां पर भी पेमेंट की समस्या हो गई। हमारे ग्राहक जेनुइन है और उनके साथ में अगर समस्या है तो हमें भी निभाना पड़ेगा। हमें धीरज तो रखना ही पड़ेगा। यहां दोहरी समस्या उत्पन्न हो गई, एक तो भुगतान की और उसके साथ ही प्लाईवुड फैक्ट्रीयों में उद्योगपतियों की नई इन्वेस्टमेंट करने में रूचि कम हो गई। हमें नये आर्डर मिलने में रूकावट आने लग गई। सभी कोई इंतजार करना चाह रहे थे।
कठोर समय था, निकल गया?
इतना आसान भी नहीं था यह सब। काम कम होने से जो भी हमारे साथ जुड़े हुए तकनीकी स्टाफ हैं, सभी प्रभावित हुए। हमारी आमदनी घटी काम भी घटा। तो हमारे साथ-साथ उसी अनुपात में वह भी प्रभावित हुए। जो हम परिस्थतियों से उबर कर आगे बढ़ने की कोशिश में थे, वहां पर बे्रक लग गया और इस बार वह नेगेटिव साइड में चला गया। आम जन जीवन में महंगाई कितनी बढ़ गई है, साफ दिख रहा है।यही समय होता है जब हम अपने स्टाफ की वेतन वृद्धि करते हैं। लेकिन यह भी सच्चाई है कि हम भी कितने लाचार हैं।
आशा है आपके आस पास सभी सुरक्षित हैं?
इस बार की महामारी की दूसरी लहर में, सही उपचार नहीं होने से, कुछ शायद डाॅक्टरों की लापरवाही से, लोगों की जान पर बन आई। शायद ही कोई व्यक्ति या परिवार ऐसा होगा, जिसने अपनी किसी नजदीकी के जाने के दुख को महसूस नहीं किया हो। और इसका असर कहीं न कहीं हमारे भुगतान पर भी पड़ेगा।
अब परिस्थितियां क्या कह रही है?
हालांकि किसी एक क्षेत्र में तकनीकी रूप से उन्नत होना बहुत सांत्वना देता है, और उसी में उन्नति भी होती है। लेकिन इस बार की परिस्थितियां, हमें यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि सिर्फ एक ही उद्योग पर निर्भर होना शायद अच्छा नहीं है। इसलिए डायवर्सिफिकेशन पर सोच विचार हो रहा है। आने वाले समय में हो सकता है कि हम प्लाईवुड के अलावा किसी और क्षेत्र की मशीन बनाने में अपनी रुचि बढ़ाएं।
20 D/Lऔर 50 D/L की कोर ड्राइ प्रेस में क्या अंतर है?
50 D/L की कोर ड्राई प्रेस अपने आप में प्रचलित 20 D/L की कोर ड्राइंग होट प्रेस से कहीं बहुत अधिक किफायती है। कीमत से भी और औसत रोजाना खर्च के हिसाब से भी। 20 D/L में प्रेस एक बार में पूरी भरी जाती है फिर 40-60 मीनट उसे गर्म करके कोर सुखने के लिए छोड़ दिया जाता है। अब कोर सुखने के बाद पहले खाली करके दुबारा से नयी ग्रीन कोर भरकर लोड किया जाता है। इस लोड-अनलोड के दौरान मशीन खड़ी रहती है।
अब इस प्रक्रिया में अगर अकेले कारीगर को जिम्मेवारी दी जाती है तो इसमें व्यवधान उत्पन्न करते हुए प्रेस को नाकारा साबित करने की कोशिश करता है। क्योंकि उसे आराम करने का समय नहीं मिलता।
अगर 20 D/L की कार्यप्रणाली से तुलनात्म्क विश्लेषण किया जाए तो 50 D/L में समय और उर्जा की बचत के साथ-साथ प्रोडक्सन भी अधिक मिलती है। मैं सभी उद्यमीयों से अनुरोध करना और सलाह देना चाहुंगा कि इसे निजि तौर पर अनुभव करें।
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नई तकनीक लाने का आग्रह क्यों नहीं हो पाता?
कोर ड्राई मशीन के इस स्वरूप को शुरूआत करने में शायद हम अग्रणी रहे हैं। भारत में किसी भी नई तकनीक को विकसित करने में हम सभी भारतीय बहुत ही सक्षम हैं। लेकिन उसके बाद की दिक्कतें कुछ ज्यादा है। हम किसी तकनीक को विकसित करें, लेकिन हम उसके पेटेंट करने के तरीके से अवगत नहीं है। या हमारी व्यवस्था उस में सहयोग नहीं कर पाती। तकनीक कोई भी लाई जाती है तो उस पर दिमाग और समय और पैसे खर्च होते हैं। लेकिन फिर उसका एकाधिकार नहीं रहता। दूसरे उसकी नकल करके और थोड़ा बहुत सस्ता करके उसको अपनी मेहनत का सही मूल्य लेने नहीं देते। इस पर नवोनमेश करने वाला अपने आप को ठगा सा महसूस करता है और फिर अगली कोशिश नहीं करता। तभी तो सारा ध्यान लोग तकनीक विकसित करने में या तकनीक आयात करने में नहीं लगाते। बल्कि सीधे नई तकनीक की मशीन लाकर यहां बेचने में, मार्केटिंग करने में ज्यादा चतुराई समझते हैं।