Tensions between nationalism and globalization
- फ़रवरी 19, 2020
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Tensions between nationalism and
globalization will reshape world
The rising tensions between growing nationalism and globalization is reshaping the world and will perhaps be the most defining trend as the world heads into a new decade, said Chairman of Aditya Birla Group, Kumar Mangalam Birla.
The conflicting forces of globalization and nationalism are making governments and corporations rethink their priorities and are forcing them to come up with new constructs. Writing in a web post, Birla, talked about his learnings from the last few decades when entire business ecosystem has changed. “The new world, for sure, is not for the faint hearted. One-third of Fortune 500 companies drop out every decade, and the average life of a company on the S&P 500 list has shrunk from 60 years in 1960 to under 20 years today,” said Birla.
Back in 2005, Birla said when columnist Thomas Friedman coined the phrase “the world is flat”, the world was very different place. “Back then, he opined that technology and geopolitics were reshaping or lives while we were sleeping. Now that we are wide awake, I see a very different world, dealing with the consequences of globalization and its discontent,” said Birla.
“A world where rules of commerce are being rewritten all around. A world where nationalism has surpassed globalization as the more popular search term on Google. While the march of globalization is perhaps inevitable, what is certain is that the world is no longer flat. As globalization makes way for ‘slowbalisation’, the emerging pattern of trade is more regional.
“Given that the traditional benefits of a single location operation are an obvious contrast to the resilience that multiple local operations provide. There may be no easy anwers, but the reality of this new world is something we need to be very alive to. In a post-globalised world, communities and people will increasingly demand more from corporations. Perhaps our founding fathers saw it coming, 150 years ago, which is why community engagement is so closely embedded with our business values,” said Birla.
‘राश्ट्रवाद, भूमंडलीकरण के बीच तनाव से बदलती दुनिया’
आदित्य विक्रम बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमारमंगलम बिड़ला ने कहा है कि राष्ट्रवाद के उभार और भूमंडलीकरण के बीच बढ़ रहा तनाव दुनिया की शक्ल बदल रहा है और यह नए दशक में दुनिया को परिभाषित करने वाला शायद सबसे अहम प्रवृत्ति होगी।
बिड़ला ने अपने एक वेब पोस्ट में कहा है कि वैश्वीकरण और राष्ट्रवाद के बीच हो रहा टकराव सरकारों और कंपनियों को अपनी प्राथमिकताओं के बारे में नए सिरे से सोचने के लिए बाध्य कर रहा है और इससे उन्हें नई सरंचनाओं के साथ सामने आने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा है।
बिड़ला ने अपनी पोस्ट में बीते दशक के अनुभव साझा करते हुए कहा है कि इस दौरान कारोबार का समूचा परिवेश ही बदल गया।
उन्होंने कहा, ‘निश्चित तौर पर यह नई दुनिया कमजोर दिल वाले लोगों के लिए नहीं है। फाॅच्र्युन-500 सूची में शामिल एक-तिहाई कंपनियां हर दशक में बाहर हो जाती हैं और एसऐंडपी-500 सूची में मौजूद किसी कंपनी की औसत उम्र वर्श 1960 के समय के 60 साल से घटकर आज महज 20 साल रह गई है।’
बिड़ला ने अपने लेख में मशहूर आर्थिक विश्लेषक थाॅमस फ्रीडमैन के 2005 के बयान का जिक्र करते हुए कहा ‘जब फ्रीडमैन ने कहा था कि दुनिया चपटी है तब यह जगह काफी अलग थी। उस समय फ्रीडमैन ने कहा था कि हमारे सोते समय तकनीक और भू-राजनीति हमारी जिंदगी बदल रही थीं। आज जब हम जगे हुए हैं, तब भी मुझे यह दुनिया काफी अलग लग रही है। हमें भूमंडलीकरण के दुष्प्रभाव और उससे उपजे असंतोष का सामना करना पड़ रहा है।’
बिड़ला के मुताबिक आज की दुनिया में वाणिज्य के नियम चारों तरफ नए सिरे से लिखे जा रहे हैं। उन्होंने कहा,‘ इस दुनिया में राष्ट्रवाद ने गूगल सर्च के मामले में भूमंडलीकरण को पीछे छोड़ दिया है। जहां भूमंडलीकरण को सफर शायद अपरिहार्य है वहीं यह तय है कि अब दुनिया चपटी नहीं रही गई है। जब भूमंडलीकरण के स्थान पर ‘सुस्तीकरण’ (स्लोबलाइजेशन) को जगह मिल रही है तब व्यापार की उभरती परिपाटी अधिक क्षेत्रीय है।
बिड़ला का कहना है कि महज एक जगह परिचालन से होने वाले परंपरागत लाभ विभिन्न जगहों पर स्थानीय परिचालन से हासिल लचीलेपन के ठीक उलट हैं। बिड़ला समूह के चेयरमैन कहते हैं, ‘आसान जवाब संभव नहीं है लेकिन इस नई दुनिया की हकीकत ऐसी है कि हमें बहुत जीवंत रहने की जरूरत है। भूमंडलीकरण के बाद की दुनिया में समुदाय और लोग कंपनियों से अधिक की मांग करेंगेे। शायद हमारे संस्थापकों ने 150 साल पहले ही ऐसा होते हुए देख लिया था। इसीलिए समुदाय के साथ संपर्क हमारे कारोबारी मूल्यों से इतना नजदीक से जुड़ा है।’