market

The Supreme Court has put the Securities and Exchange Board of India (Sebi) in a difficult spot. The court constituted a high – profile committee, “to provide an overall assessment of the situation including the relevant causal factors which have led to the volatility in the securities market in the recent past”.

The committee is further expected to assess whether there were regulatory failures in the context of the alleged violation of securities market laws in relation to the Adani group or other companies. It would also be expected to suggest measures to strengthen the regulatory framework to protect Indian investors.

At a broader level, while it can be argued that the regulator should have been more proactive in looking into sharp run-ups in the Adani group stocks, along with their shareholding patterns, there was no case for the court to intervene and constitute a committee to look into the matter, sidelining SEBI.

Although it is correct that the Adani group stock have lost market value worth over `10 trillion, retail and mutual fund holdings in these counters were fairly limited. Further, there was no contagion and stock markets are functioning perfectly. Volatility is inherent in financial markets, and prices are discovered by a large number of investors taking positions simultaneously.

Even in the stocks in question, investors should have known the downside risks while buying them at such lofty valuations. If there has been wrongdoing, the regulator is duty-bound to investigate. However, there is no way or need to protect investors from volatility. Some of the large tech firms in the US, for instance, lost over 50 per cent of their market capitalization in 2022 as market conditions changed. This is how markets function.



बाजार ऐसे ही काम करते है

सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को मुश्किल हालात में डाल दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया। समिति को ‘हालात का समग्र आकलन करना है जिसमें वे प्रासंगिक कारक शामिल हैं जिनके चलते हाल के दिनों में प्रतिभूति बाजार में उतार-चढ़ाव है।

यह समिति इस बात का आकलन करेगी कि क्या अदाणी समूह या अन्य कंपनियों के मामले में प्रतिभूति कानूनों के कथित उल्लंघन के मामलों में नियामकीय स्तर पर कुछ नाकामी रही है। समिति से यह भी अपेक्षा है कि वह भारतीय निवेशकों के संरक्षण के लिए नियामकीय ढांचे को मजबूत बनाने को लेकर भी कुछ सुझाव देगी।

व्यापक स्तर पर देखें तो यह कहा जा सकता है कि नियामक को अदाणी समूह के शेयरों के मामले में तथा उनकी शेयरधारित के रूझानों को लेकर अधिक सक्रियता बरतनी चाहिए थी लेकिन यह मामला ऐसा भी नहीं था कि न्यायालय हस्तक्षेप करे और इसके लिए सेबी को दर किनार करते हुए समिति का गठन करे।

हालांकि यह बात सही है कि अदाणी समूह के शेयरों के बाजार मूल्य को करीब 10 लाख करोड़ रूपये की क्षति पहुंचती है लेकिन इनमें खुदरा और म्युचुअल फंड की हिस्सेदारी काफी हद तक सीमित थी। इसके अलावा कोई समस्या सामने नहीं आई तथा शेयर बाजार सुचारू रूप से काम कर रहे हैं। वित्तीय बाजारों में अस्थिरता तो रहती ही है। तथा बड़ी तादाद में निवेशकों के निरंतर कदमों से मूल्य निर्धारण होता है।

जिन शेयरों पर सवाल उठे हैं उनके मामले में भी निवेशकों को उन्हें खरीदते समय ही जोखिम का पता होना चाहिए था। अगर इसमें कोई विसंगति हुई है, तो नियामक जांच करने के लिए बाध्य है। हालांकि निवेशकों को बाजार की अस्थिरता से बचाने का कोई तरीका या जरूरत नहीं है। उदाहरण के लिए अमेरिका में कुछ बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 2022 में 50 फीसदी तक घट गया क्योंकि बाजार के हालात बदल गए थे। बाजार ऐसे ही काम करते हैं।

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