बाजार की प्रतिस्पर्धा उपभोक्ताओं के आर्थिक शोषण की वजह बनती जा रही है। बाजार में तेजी से बढ़ रहे नकली सामान से उपभोक्ता ठगे जा रहे हैं। हालांकि खासतौर पर ऑनलाइन खरीदारी में इस तरह की ठगी की संभावना ज्यादा रहती है। कई बार उपभोक्ता ब्रांडेड जूते खरीदता है, लेकिन अंत में उसे पता चलता है कि यह जूते सस्ते नहीं बल्कि नकली है।

एक रिपोर्ट से पता चला कि भारत में बेचे जाने वाले सभी उत्पादों में से 25-30 प्रतिशत नकली हैं। वस्त्र और एफएमसीजी में नकली सामान बिकने की संभावना सबसे अधिक होती है। इसके बाद फार्मा, ऑटोमोटिव व रोजमर्रा के सामान भी नकली बिक रहा है।

हालांकि दिलचस्प तथ्य यह भी है कि 31 प्रतिशत उपभोक्ता अपनी मर्जी से जानते हुए भी ब्रांडेड नकली उत्पाद खरीद रहे हैं। अब ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि तो फिर इस स्थिति में ब्रांड क्या कर सकते हैं। वह कैसे इस समस्या का कोई हल निकाल सकते हैं।

नकली सामान की पहचान करना मुश्किल होता है

साधारनतः दो तरह से नकली सामान बिकता है। हूबहू दिखने वाले उत्पाद और नकली उत्पाद। कुछ उत्पाद ऐसे होते हैं, जिन पर गलत वर्तनी या मिलते जुलते नाम अंकित होते हैं। यह देखने में हूबहू ब्रांडेड लगते हैं। लेकिन नाम में बहुत थोड़ा सा अंतर कर दिया जाता है। जिसे साधारणत! पकड़ा नहीं जा सकता। जबकि बिल्कुल समान ब्रांड नाम वाले नकली उत्पादों को नकली या जाली माना जाता है। नकल और नकली दोनों ही असली ब्रांडों के कानूनी अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

नकली सामान आमतौर पर बड़े पैमाने पर बिना किसी नियामक या गुणवत्ता जांच के तैयार किया जाता है। ये घटिया उत्पाद कंपनी की प्रतिष्ठा और उपभोक्ता के विश्वास को तोड़ते हैं। इससे टैक्स की चोरी का जिक्र तो खैर क्या करना। किसी भी ब्रांड या उद्योग के लिए उसके नकली उत्पाद बहुत ही बुरी स्थिति होती है।

हालांकि इसका प्रतिकूल प्रभाव विभीन्न उत्पादों पर थोड़ा अलग होता है। मसलन नकली लक्जरी घड़ी खरीदने वाले उपभोक्ता की सिर्फ रकम ही खराब हुई।

लेकिन दूसरी ओर यदि नकली दवा या शराब के मामले में यह सेवन करने वालों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। जिसे ज्यादा खतरनाक माना जा सकता है।

हालांकि कई ब्रांडों के पास नकली ब्रांड की पहचान करने के लिए टीम भी होती है। इस तरह की सुरक्षा टीम संदिग्ध नकली उत्पादों पर शोध करती रहती है। यदि उत्पाद गलत पाया जाता है तो अधिकारियों को इसकी शिकायत की जाती है।

ब्रांड इस समस्या को शुरुआत में ही खत्म करने के प्रयास हैं। कई कंपनी ऑनलाइन और ऑफलाइन बिकने वाले अपने उत्पादों पर नजर रखती है। इसके लिए तकनीक व जांच एजेंसियों की सेवा ली जाती है। नकली उत्पादों की पहचान करने के लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जाता है।

तकनीक से निपटना

इसमें दो राय नहीं कि कई बार खरीदार को असली उत्पाद व नकली उत्पाद की पहचान ही नहीं हो पाती। ऐसे मामलों में खरीदार को खासा नुकसान उठाना पड़ता है।

अगर कोई किसी उत्पाद को उसके एमआरपी से भी बहुत कम कीमत पर अनधिकृत प्लेटफॉर्म पर बेच रहा है तो उसके नकली होने की बहुत अधिक संभावना रहती है। दुर्भाग्य से, जब उपभोक्ता इन रियायती उत्पादों को चुनते हैं और खरीदारी के बाद निराशा का सामना करते हैं, तो इससे निश्चित ही ब्रांड की छवि को नुकसान पहुंचता है। समस्या से निपटने के लिए तकनीक का उपयोग एक अमेरिकी शोध पत्र में कहा गया है कि नकली सामान बड़ा आपराधिक गैर कानूनी व्यवसाय बन कर उभर रहा है। ऐसे सामानों की अंतरराष्ट्रीय बिक्री अनुमानित 1.7 ट्रिलियन डॉलर और 4.5 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष के बीच है।

कुल मिलाकर, ब्रांड खुद को और उपभोक्ताओं को असली सामान और नकली सामान के बीच अंतर करने में तकनीक मदद कर सकती है। खासतौर पर एआई के इस दौर में तकनीक काफी मददगार साबित हो सकती है। उदाहरण के लिए, फैशन उद्योग में, एआई उत्पाद को प्रमाणित करने और सामग्री और सिलाई आदि की जांच करने के बाद यह बता सकती है कि उत्पाद असली है या नकली। कुछ अल्कोहल ब्रांड. अपनी बोतलों के लिए ब्लॉकचेन-आधारित ट्रैक-एंड-ट्रेस प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं। क्यूआर कोड भी उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद की वास्तविकता का पता लगाने के लिए तेज व सामान्य तरीका हो सकता है।

कानूनी प्रावधान

भारतीय कानून में नकली सामानों की बिक्री रोकने के लिए प्रावधान है। नकली सामान की पहचान करना एक कठिन काम है। लेकिन इससे मामलों को तेजी से दर्ज करने और कार्रवाई करने में मदद मिलती है।

शिकायत मिलने पर, स्थानीय पुलिस छापामारी करती है। इन कार्रवाइयों के दौरान माल (तैयार और अधूरा दोनों), कच्चे माल, पैकेजिंग सामग्री और मशीनरी को जब्त कर लिया जाता है। आरोपियों की गिरफ्तारी भी की जाती है।

विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि सरकार खुदरा बाजार में नकली सामानों की पहचान करने और उन्हें रोकने के लिए एक प्रणाली तैयार करने पर काम कर रही है। इस प्रणाली के तहत पाए जाने वाले किसी भी नकली उत्पाद या गुणवत्ता मानकों की अनदेखी करने वाले निर्माताओं के लिए लाइसेंस रद्द करना और जुर्माना हो सकता है। ग्राहकों को भी जागरूक करना होगा।

जागरूकता के लिए विपणन

ग्राहकों को नकली चीज़ों के बारे में शिक्षित करना और उन्हें नकली चीजों की पहचान करने में मदद करना कंपनियों की ज़िम्मेदारी है। जागरूकता बढ़ाकर, हम उपभोक्ताओं को खरीदारी के बारे में सोच-समझकर निर्णय लेने और संभावित नुकसान से खुद को बचाने में सक्षम बना सकते हैं।

मनोज ठाकुर (मार्केट रिसर्च विश्लेषक)


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