The mystery of 20% TCS
- जुलाई 10, 2023
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The imposition of 20 per cent TCS (tax collected at source) on credit card usage abroad, along with a ban on Indians keeping money for more than six months in overseas bank accounts, suggests somebody has examined patterns of overseas expenditures and savings in great detail.
The measures are, however, puzzling at first glance, and near-incomprehensible at second glance. Is this in order to curb overseas travel? Is it in order to bring tax evaders within the net? Is it to discourage (or perhaps to encourage) investing abroad? Will it generate a large interest-free float for the exchequer?
There is also literally no credit-card transaction made anywhere not showing up in banking and tax records. Any movement of money from a rupee-denominated bank account in India to an overseas account, or vice versa, is also flagged automatically. Hence, this measure cannot identify tax evaders.
There is a general principal that fiscal policies should be transparent and have obvious motives.
Will it prevent people travelling? A large proportion of those going abroad do so to study or to work. Of the rest, many are dependent parents with children working abroad. Their expenses are picked up by their children. The tourists are a small set’ and they can afford the extra expense.
If it has to be eventually refunded, the amount collected is really not worth the trouble.
One conspiracy theory is that these measures will somehow block political parties from round-tripping funds back into India for the 2024 elections. Do political parties send money out via normal routes?
Another “behavioural conspiracy” theory suggests this is an emotional electoral experiment like demonetization. There are political analysts who believe that Demonetisation was a prime factor in winning the UP Assembly elections that followed in 2017. Voters were made to suffer; they believed suffering was their patriotic duty and voted for the government that made them suffer.
Extending that argument, people who pay the overseas TCS will suffer and they will therefore consider it their patriotic duty to vote for the government that made them suffer.
There is a general principal that fiscal policies should be transparent and have obvious motives. If citizens at large are stretching for unlikely explanations of the nature given above, the government is falling down, either in setting the policy, or in explaining it.
20 प्रतिशत टीसीएस का रहस्य
विदेशों में क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल पर 20 प्रतिशत TCS (स्त्रोत पर कर संग्रह) लगाने के साथ-साथ भारतीयों द्वारा विदेशी बैंक खातों में छह महीने से अधिक समय तक धन रखने पर प्रतिबंध लगाने से ऐसे संकेत मिलते हैं कि किसी ने विदेशी व्यय और बचत के तरीके की विस्तार से जांच की है।
हालांकि, पहली नजर में ये उपाय ही भ्रमित करते हैं और दूसरी नजर में गौर करने पर लगभग समझ से परे हो जाते हैं। ऐसे में इस तरह के सवाल उठते हैं कि क्या यह कदम विदेश यात्रा को रोकने के लिए उठाया गया है? या क्या यह कर चोरी करने वालों को इस दायरे में लाने के लिए है? क्या यह विदेशों में निवेश को हतोत्साहित करने (या शायद प्रोत्साहित करने के लिए) है? क्या इससे सरकारी खजाने के लिए एक बड़ा ब्याज मुक्त पूंजी प्रवाह होगा?
इसके अलावा ऐसा कोई क्रेडिट-कार्ड लेनदेन भी नहीं है जो बैंकिंग और कर रिकॉर्ड में दिखाई नहीं देता है। भारत के बैंक खाते से विदेशी खाते में या विदेशी खाते से भारत के बैंक खाते में पूंजी मिलने की जानकारी स्वचालित तरीके से दर्ज हो जाती है। इसलिए, इन उपायों से कर चोरी करने वालों की पहचान नहीं की जा सकती है।
एक सामान्य सिद्धांत है कि राजकोषीय नीतियां पारदर्शी होनी चाहिए और उनके उद्देश्य भी स्पष्ट होने चाहिए।
क्या इससे लोग यात्रा करना छोड़ देंगे? विदेश जाने वालों का एक बड़ा हिस्सा पढ़ाई करने या काम करने के लिए विदेश जाता। बाकी में से कई विदेशों में काम करने वाले बच्चों के साथ उन पर आश्रित माता-पिता होते हैं जिनका खर्च उनके बच्चे उठाते हैं। पर्यटकों का समूह बेहद छोटा है और वे अतिरिक्त खर्च वहन कर सकते हैं।
अगर इसे आखिरकार वापस ही किया जाना है तब ऐसे में एकत्र की गई राशि वास्तव में परेशानी उठाने के लायक नहीं है।
एक षडयंत्र वाला सिद्धांत यह भी है कि इन उपायों से राजनीतिक दलों की मुश्किलें बढ़ाई जा सकती है और 2024 के चुनावों के लिए भारत में विदेश से पूंजी वापस लाने से रोका जा सकेगा। क्या राजनीतिक दल सामान्य मार्गों से पैसा भेजते हैं?
एक अन्य ‘व्यावहारिक साजिश’ सिद्धांत बताता है कि यह नोटबंदी जैसा भावनात्मक चुनावी प्रयोग है। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नोटबंदी 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव जीतने में यह एक प्रमुख कारक था। हालांकि मतदाताओं को काफी परेशानियां आईं लेकिन उनका मानना था कि यह परेशानी देशभक्ति जताने की दिशा में एक कर्तव्य के तौर पर था और उन्होंने उस सरकार के लिए मतदान किया जिसकी वजह से उन्हें परेशानी उठानी पड़ी।
इस तर्क को आगे बढ़ाया जाए तो जो लोग विदेशी टीसीएस का भुगतान करते हैं उन्हें परेशानी होगी लेकिन फिर भी वे उस सरकार को वोट देने को अपना देशभक्ति से जुड़ा कर्तव्य समझेंगे जिसकी वजह से इनकी परेशानी बढ़ी है।
एक सामान्य सिद्धांत है कि राजकोषीय नीतियां पारदर्शी होनी चाहिए और उनके उद्देश्य भी स्पष्ट होने चाहिए। यदि बड़े पैमाने पर नागरिकों को स्पष्टीकरण नहीं मिल पा रहा है तब सरकार या तो नीति निर्धारित करने में या इसे समझाने में नाकाम हो रही है।