सरकारी नीतियों में उलट फेर से निजी निवेश की समस्या
- दिसम्बर 9, 2024
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क्या नीतियों को बार-बार पलटने से नीतिगत जोखिम पैदा होते हैं और वह निजी निवेश को प्रभावित करता है?
बाजार अर्थव्यवस्था के फलने-फूलने के लिए एक मजबूत सरकार तो चाहिए, लेकिन निरंकुश नियंत्रण की आवश्यकता नहीं होती, जो समय-समय पर ऐसे निर्णय लेता हो जिन्हें बदला न जा सके। अहम बात है अच्छी नीतियां हासिल करना और शक्तियों का बंटवारा नीतियों को अपनाने के ऐसे भी तरीके हैं जहां कम नीतिगत जोखिम होता है।
एक ओर जहां रोजमर्रा के नीतिगत निर्णयों में हमेशा रणनीतिक ब्योरे होंगे, वहीं नीतियों में सुसंगतता और रणनीतिक विचार हमेशा नीतिगत जोखिम कम करने में मददगार होते हैं। निजी क्षेत्र की कारोबारी भावना मायने रखती है और भारतीय राज्य में सुधार को लेकर रणनीतिक नजरिया इन्हें आकार देता है।
आर्थिक वृद्धि वास्तव में भौतिक क्षमता में पारंपरिक निजी निवेश (अचल संपत्तियों में इजाफा आदि) तथा उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिए निजी निवेश में निहित होता है। ऐसा निवेश जोखिम भरा होता है और राज्य के रुख से बहुत हद तक प्रभावित होता है।
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में हमेशा नीतिगत बदलाव होते रहेंगे। नीतियों को वापस लेने में कुछ भी गलत नहीं। जो बात मायने रखती है वह है अच्छे नतीजे हासिल करना। नीतियों को पलटना महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है विचार की प्रक्रिया और यह देखना कि वे किस हद तक अच्छे नतीजे प्रदान कर सकते हैं।
सरकारें बहुत बड़ा संगठन होती हैं जहां हजारों जगहों पर निर्णय लिए जाते हैं। इससे नीतिगत सुसंगता की दिक्कत बढ़ती है। इन्हें स्वविवेक पर छोड़ दिया जाए तो विभिन्न जगहों पर निर्णय लेने में समन्वय की कमी होती है और कई बार तो आपसी टकराव की स्थिति भी बनती है। जब इन नाना प्रकार के कदमों को निजी क्षेत्र देखते हैं तो कई बार भ्रम की स्थिति बनती है और नीतिगत जोखिम पैदा होता है।
एनिमल स्पिरिट यानी कारोबारी उत्साह की भावना का प्रयोग निजी निवेश संबंधी निर्णयों में भरोसे, निवेश में तेजी और तेज विकास को लेकर आशावाद के लिए किया जाता है। कारोबारी उत्साह की भावना जगाने के लिए प्रचार तंत्र की मदद लेने की इच्छा हो सकती है लेकिन यह प्रभावी नहीं है। प्रगति और वैकल्पिक तथ्यों के दावों से इतर केवल नीतिगत प्रगति की मदद से ही निजी क्षेत्र की चिंताओं को दूर किया जा सकता है।
चूंकि भारतीय राज्य अधिकांशतया काम में घालमेल करते हैं, इसलिए निजी क्षेत्र अक्सर मुश्किल में पड़ते हैं। उन्हें इस आत्मविश्वास की जरूरत है कि वे नीति निर्माताओं तक पहुंच सकते हैं और महत्त्वपूर्ण समस्याओं का हल करवा सकंे।
कारोबारी भावना के स्वरूप में समाज के संघर्षों की भी भूमिका होती है। जब समूची संस्कृति में सामंजस्य और आशावाद होगा तो कारोबारी भावना बेहतर होगी। जब व्यापक संस्कृति में गुस्सा और हिंसा होंगे तो निजी लोगों में निवेश का भरोसा जगाना मुश्किल होता हैं।