व्यक्तिगत ऋण का बढ़ता अंबार
- जनवरी 11, 2024
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हाल ही में आरबीआई ने उपभोक्ता ऋण के मामले में बैंकों एवं एनबीएफसी के लिए जोखिम भार 25 प्रतिशत अंक बढ़ा दिया। आरबीआई ने हालांकि आवास, शिक्षा, वाहन, गोल्ड और सूक्ष्म वित्त संस्थानों एवं स्वयं-सहायता समूहों को आवंटित ऋण को इसकी जद से बाहर रखा है। जोखिम भार बढ़ने से बैंक एवं एनबीएफसी के लिए ऐसे ऋण के लिए पूंजी जुटाना अधिक महंगा हो जाएगा और वे आंख मूंद कर असुरक्षित ऋण पर दांव नहीं खेलेंगे।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) को भले ही ऐसे ऋण को लेकर विशेष चिंता नहीं थी क्योंकि यह उनकी उधारी में एक छोटा सा हिस्सा हैं। मगर आरबीआई किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहता है।
छोटे कर्जदाताओं को ऋण चुकाने में आ रही परेशानी को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने सभी पीएसबी को छोटे ऋण खातों की समीक्षा करने और हालात की जानकारी देने का निर्देश दिया था। बैंकों ने भी वित्त मंत्रालय को आश्वस्त किया था कि छोटे आकार के असुरक्षित ऋण से वित्तीय तंत्र को कोई खतरा नहीं है क्योंकि ऐसे ऋण का अनुपात बहुत कम है।
जोखिम भार केंद्रीय बैंक के हाथ में एक ऐसा जरिया होता है जिसका इस्तेमाल कर वह कुछ खास किस्म के ऋण के आवंटन में बैंकों पर नियंत्रण रखता है। उदाहरण के लिए जब रियल एस्टेट क्षेत्र को ऋण आवंटन पर चिंता पैदा हुई थी तो आरबीआई ने 2005 में वाणिज्यिक रियल एस्टेट क्षेत्र को आवंटित होने वाले ऋणों के लिए जोखिम भार 100 प्रतिशत से बढ़ाकर 125 प्रतिशत कर दिया था। इसे फिर अप्रैल 2006 में बढ़ाकर 150 प्रतिशत तक कर दिया था। इससे पहले 2004 में आवास ऋण पर जोखिम भार 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया था।
एक रिपोर्ट के अनुसार 2024-25 में असुरक्षित खुदरा ऋणों से ऋण नुकसान 50 से 200 आधार अंक तक बढ़ सकता है।
हाल के वर्षों में, ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय बैंकों ने ऋण को औद्योगिक क्षेत्र से हटाकर खुदरा ऋण की ओर मोड़ने में अधिक ध्यान दिया है। यह गिरावट सभी बैंक समूहों में स्पष्ट थी। अनुभवजन्य साक्ष्य से पता चलता है कि रिटेन लोन में एकाग्रता का निर्माण प्रणालीगत जोखिम का स्रोत बन सकता है।
आवश्यकता से एक सीमा से अधिक ऋण आवंटन के मामले भी देखे जा रहे हैं और ग्राहक कई तरह के ऋण छोटे अंतराल पर ले रहे हैं। आरबीआई ने जोखिम के इन संकेतों को नजरअंदाज नहीं किया है।