The road of Developing to Developed india

आमतौर पर हमें यह समझ ही नहीं होती है कि नियम कानून हमारी सुविधा के लिए ही बनाए जाते हैं। लेकिन हम नियमों को बाधा के तौर पर देखते हैं।

सार्वजनिक जीवन में कुछ दृश्य बहुत आम हैं। जैसे सिग्नल तोड़ना, गलत पार्किंग करना, नियम बद्ध तरीके से काम करवाने की बजाय अपना काम अनैतिक तरीके से निकालने की कोशिस करना, विलंब से पहुंचने को इंडियन स्टेन्डर्ड टाइम कह कर वाजिंब ठहराने की कोशिस।

इस प्रवृति के एतिहासिक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण रहे हैं। सदियों की गुलामी और उसके बाद भारतीय शासन में हमने देखा है कि रसुखदारों पर कोई कानून लागु नहीं होता है। नियम तोड़ कर भी सजा से बच जाना नियमों की अवहेलना के लिए उकसाता है।

आमतौर पर हमें यह समझ ही नहीं होती है कि नियम कानून हमारी सुविधा के लिए ही बनाए जाते हैं। लेकिन हम नियमों को बाधा के तौर पर देखते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे उपर किसी तरह के कायदे कानून लागू नहीं होने चाहिए। न समाज में न व्यापार में।

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क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हम विदेशों में वहां के नियमों का बाकयदा पालन करते हैं। वहां, जहां व्यवस्था पालन के नियम कड़े हो और दंड भी भारी भरकम हो।

वर्तमान सरकार ने जहां आधारभूत संरचना पर भारी खर्च किया है, वहीं कानून व्यवस्था को भी तर्कसंगत करने का प्रयास कर रही है। इन सबसे हमारी जीवनशैली और व्यापारिक तौर तरीके में काफी बदलाव करने पड़ रहें है, जो हमारे लिए असहज भी हो रहें हैं।

  • भारत कई शताब्दियों तक आश्रित रहा है।
  • आज हमें गर्व है कि हम आत्मनिर्भर हैं।
  • क्या हमें प्रतिस्पर्धी बनने की राह पर अग्रसर नहीं होना चाहिए?

’विकासशील भारत’ से ’विकसित भारत’ बनने की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी।

सुरेश बाहेती

9050800888

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