The world economy now faces three big and important questions. Macroeconomic stability in the US is being challenged by the inflationary crisis and there are concerns about monetary policy strategy. A large non-market economy was created in China but it is being thwarted by internal contradictions. There is an atmosphere of despair there. Although Russia’s economy is small, the Ukraine war and a sudden drop in economic activity could affect the world economy. We should also worry that their impact can be seen in the coming year as well.

America is the most important element of global macroeconomics. US macroeconomic policy played a key role in combating the pandemic, and India has also been a significant beneficiary of the expansionist macroeconomics of the US and other developed countries.

US monetary policy has affected the whole world. When interest rates are low in the US and other developed countries, financial capital moves to those parts of the world economy where risk is high. For example technology companies and real estate companies in India. When interest rates in developed markets rise, global allottees return back to them and capital also comes back from riskier markets, making it difficult for central banks that attempt to adopt exchange rate policy.

Another problem for the world economy is China. China is a large economy but does not have good institutions and in many ways the allocation of resources is done by the authorities and not by the price system. This brings instability. Over the years, authorities have adopted policies emphasizing high borrowing and real estate prices to spur growth. After the failure of Evergrande and several other real estate companies in China, the economy is facing difficulties.

Since the late 1970s, global companies began to believe they could invest in China, convinced that it would emerge as a mature market economy in a liberal democracy. After Xi Jinping took charge, China’s attitude became introverted and moved towards nationalism and authoritarianism. Stability came in the process of development of good institutions.

As a result, global asset allocation and non-financial companies began to reduce their priority on China. China’s share in US imports also began to decline as multinational companies moved their production away from China.

Most of the people’s attention is focused on Ukraine war which is really important. But the damage that is being done to the Russian economy, which is causing the world economy, can have many unwanted effects on the world economy as well. Like China, global companies in Russia may have once thought they could rely on liberal democracy and a market economy. Now all the outside traders are facing huge losses in Russia. Thus external participants in a large and a small economy in the form of China and Russia, respectively, faced disappointment.

All three of these problems simultaneously affecting the world economy are concerns about US inflation and monetary policy, concerns about macro stability in China and the sudden collapse of a small economy in the form of Russia. If these problems had come separately, it would have been easier to deal with them. But these three are contemporary and are often interrelated.

It is possible that in response to these problems, problems may arise in different parts of the world economy. Its method may surprise us because we do not have enough understanding of the economy to predict the exact way the situation will happen.

Most of the Indian companies or policy makers are focused on the short term. Now is the time to take a more strategic approach and increase understanding of global affairs and keep an eye on unexpected channels of influence.



विश्व अर्थव्यवस्था की तीन प्रमुख समस्याएं


विश्व अर्थव्यवस्था के सामने अब तीन बड़े और अहम सवाल हैं। अमेरिका में वृहद आर्थिक स्थिरता को मुद्रास्फीति का संकट चुनौती दे रहा है और वहां मौद्रिक नीति संबंधी रणनीति को लेकर भी चिंता है। चीन में एक बड़ी गैर बाजार अर्थव्यवस्था खड़ी की गई थी लेकिन वह आंतरिक विरोधाभासों से दो-चार हो रही है। वहां अलग तरह की निराशा का माहौल है। रूस की अर्थव्यवस्था हालांकि छोटी है लेकिन यूक्रेन युद्ध और आर्थिक गतिविधियों में अचानक गिरावट से विश्व अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। हमें इस बात की भी चिंता करनी चाहिए कि आने वाले वर्ष में भी इनका प्रभाव देखने को मिल सकता है।

वैश्विक वृहद आर्थिकी का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है अमेरिका। अमेरिकी वृहद आर्थिक नीति ने महामारी का मुकाबला करने में अहम भूमिका निभाई और भारत भी अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों की विस्तारवादी वृहद आर्थिकी का एक अहम लाभार्थी रहा है।

अमेरिकी मौद्रिक नीति ने संपूर्ण विश्व को प्रभावित किया है। जब अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों में ब्याज दरें कम होती हैं तो वित्तीय पूंजी विश्व अर्थव्यवस्था के उन हिस्सों मंी जाती हैं जहां जोखिम ज्यादा है। मिसाल के तौर पर भारत में तकनीकी कंपनियां और अचल संपत्ति की कंपनियां। जब विकसित बाजारों की ब्याज दरें बढ़ती हैं तो वैश्विक आवंटक उनकी ओर वापस लौटते हैं और पूंजी भी जोखिम वाले बाजारों से वापस आती है ऐसे में उन केंद्रीय बैंको को मुश्किल होती है जो विनिमय दर नीति अपनाने का प्रयास करते हैं।

विश्व अर्थव्यवस्था के लिए दुसरी समस्या चीन है। चीन एक बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन उसके पास अच्छे संस्थान नहीं हैं और कई मायनों में संसाधनों का आवंटन अधिकारियों द्वारा किया जाता है, न कि मूल्य व्यवस्था द्वारा। इससे अस्थिरता आती है। कई वर्षों से अधिकारियों ने वृद्धि को गति देने के लिए उन नीतियों को अपनाया जो उधारी और अचल संपत्ति की उच्च कीमतों पर बल देती हैं। चीन में एवरग्रांड तथा अचल संपत्ति की कई अन्य कंपनियों की विफलता के बाद अर्थव्यवस्था मुश्किल का सामना कर रही है।

सन 1970 के दशक के अंत से ही वैश्विक कंपनियों को लगने लगा था कि वे चीन में निवेश कर सकती हैं, उन्हें यकीन हो चला था कि वह एक उदार लोकतंत्र में परिपक्व बाजार अर्थव्यवस्था के रूप में उभरेगा। शी चिनफिंग के प्रभार संभालने के बाद चीन का रुख अंतर्मुकी हो गया और वह राष्ट्रवाद तथा अधिनायकवाद की ओर बढ़ गया। अच्छे संस्थानों के विकास की प्रक्रिया में स्थिरता आ गई।

इसके परिणामस्वरूप वैश्विक परिसंपत्ति आवंटक तथा गै वित्तीय कंपनियों ने चीन को लेकर अपनी प्राथमिकता कम करनी शुरू कर दी। अमेरिकी आयात में चीन की हिस्सेदारी भी कम होने लगी क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपना उत्पादन चीन से दूर करना शूरू कर दिया।

अधिकांश लोगों का ध्यान यूक्रेन युद्ध पर केंद्रित है जो कि वास्तव में काफी अहम है। परंतु रूसी अर्थव्यवस्था को जो क्षति पहुंच रही है उससे विश्व अर्थव्यवस्था को जो क्षति पहुंच रही है उससे विश्व अर्थव्यवस्था पर भी कई अनचाहे प्रभाव पड़ सकते हैं। चीन की तरह रूस में भी वैश्विक कंपनियों ने एकबारगी सोचा होगा कि वे उदार लोकतंत्र और बाजार अर्थव्यवस्था पर भरोसा कर सकती हैं। अब सभी बाहरी कारोबारियों को रूस में भारी घाटा हो रहा है। इस प्रकार चीन और रूस के रूप में क्रमशरू एक बड़ी और एक छोटी अर्थव्यवस्था में बाहरी प्रतिभागियों को निराशा का सामना करना पड़ा।

ये तीनों समस्याएं विश्व अर्थव्यवस्था को एक साथ प्रभावित कर रही हैं अमेरिकी मुद्रास्फीति और मौद्रिक नीति की चिंता, चीन में वृहद स्थिरता की चिंता और रूस के रूप में एक छोटी अर्थव्यवस्था में अचानक गिरावट। ये समस्य़ाएं अगर अलग-अलग आई होती तो इनसे निपटना आसान होता। परंतु ये तीनों एक साथ आई हैं और प्रायः अंतः संबंधित हैं।

यह संभव है कि इन दिक्कतों की प्रतिक्रिया स्वरूप विश्व अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों में समस्याएं उत्पन्न हों। इसका तरीका हमें चौंका सकता है क्योंकि हमें अर्थव्यवस्था की इतनी समझ नहीं है कि हालात के घटित होने के सटीक तरीके का अनुमान लगा सकें।

भारतीय कंपनियों या नीतिगत निर्णय लेने वालों में से अधिकांश का ध्यान अल्पावधि पर होता है। अब वक्त आ गया है कि अधिक रणनीतिक रुख अपनाया जाए और वैश्विक मामलों की समझ बढ़ाई जाए तथा प्रभाव के अप्रत्याशित चौनलों पर नजर रखी जाए।