Vikas Khanna

Licensing in UP is going to open new doors of hope for us


How the grant of licenses in UP could impact Haryana’s plywood industry? Is this license a challenge for Haryana? A large quantity of timber and labour reaches Haryana from UP. What is the opinion of the Haryana plywood manufacturers under all these circumstances?

Excerpts from a conversation with Vikas Khanna, Plywood manufacturer of Sampla and President of Delhi NCR Plywood Manufacturers’ Association.


The doors have been opened to grant new licenses for plywood in UP. How can it impact Haryana’s plywood industry?

We will not be affected by the establishment of the industry in the UP. It’s not a concern either. Approximately 1200-1300 licenses have been granted, out of which only a few will set up their units. This is significant. I believe that there will not be more than 50-100 full-fledged units. Yes, saw mill and peeling will start soon. This can increase the availability of core & planks as a raw material. As the intermediate units will probably be set up faster, that’s why we are feeling positive.

Let’s take the example of Yamuna Nagar. We face more competition here because of large no of units. A similar scenario may occur in UP. Huge investments and risks are involved to establish a full-fledged unit.

Everyone should get employment. We hope that both of us- Industrialists of UP and Haryana- will get the work. It should be a win-win situation for all.

There may be an issue with the timber?

Timber will be available in large quantities over the next couple of years. A large number of saplings are being planted which ensures the availability of timber in future. As timber prices have risen in recent years, farmers have become passionate about agroforestry. That’s why there is no probability of the shortage of wood. Of course the current problem of timber scarcity is of concern to the industry at the moment.

At present we have installed peeling machines in our factory to peel timber. One truck of core is obtained from peeling 3-4 trucks of poplar. Freight of three trucks cost us Rs. 75,000 to 80,000. The fare for a core truck will be around Rs. 25,000. Hence, getting core from there will be beneficial for us.

A unit can develop only when it concentrates on a single product. The concentration splits when we produce multiple products. Which creates problem. We will have the direct advantage of setting up of units in UP because now we will purchase core, and manufacture final products here. The decorative ones are also doing it in the same way. They purchase veneers and paste it on the base ply either indigenous or procured from other sources. So if we get the raw material freely, we will use it to manufacture the products while paying full attention to the quality specifically.

How are you assessing the market situation?

India has so much consumption within the borders that we are not able to export even 5% of our plywood products. We have the highest units of plywood in the world. Therefore, there is vast scope to expand the Indian plywood market. We’re trying to convince the government to subsidize our exports. If it is granted, we will get the status equivalent to Gandhidham and Kerala. Export will be easier for us because then the tariff cost to the port will be at par with Gandhidham and Kerala, etc.

There may be a labour shortage.

One reason for this is that labour is now giving preference to other industry rather than the plywood industry. The industry is also responsible to some extent because it is unable to provide them with their expected facilities. So labour moves where they get more facilities. Therefore, the industrialist will have to think of lucrative ways to get the labour in the plywood industry. Labour must be given more facilities along with salaries and wages, or else perhaps our skilled labour might migrate. Then there could be an issue, that is why we must provide them with better salaries as well as improved living conditions. Indeed, it will burden us with higher costs of production.

Things are changing slowly and the market is going to be better soon. We hope to see good & vibrant future.

Fake brands are also causing problems for branded plywood manufacturers.

There is also a genuine problem with the ISI mark as it lacks strictness. Goods are being sold with fake ISI marks. They have raided at a couple of places in Haryana. However, more attention is to be paid. Because it has long been noted that fake goods enter the market under the name of well-known popular brands. It creates disturbance in the market. However, ISI is a bet alert of this. Gradually, strictness is also being exercised, but that should be accelerated, because it affects the quality as well. Manufacturers who manufacture high-quality products face problems as it affects them directly. ISI must be strict in order to maintain the quality of the ISI mark.

It is equally true that the ISI quality standards need to be updated. There is no provision to evaluate with agro forestry timber like Eucalyptus or Poplar. Thus, these parameter must also be modified. They are still following the norms established 50 years ago with forest based timber. Efforts should be made in this respect from our side also.
Anyway, ISI should be more vigilant of the fake market as the ISI-marked units spend at least Rs. 10 lakh annually on four licenses. But those who are trading goods in the market with fake ISI marks, must also be checked at any cost.


यूपी में लाइसेंस खुलना हमारे लिए उम्मीद के नए द्वार खोलने वाला है

यूपी में लाइसेंस खुलने से हरियाणा की प्लाईवुड पर इसका क्या असर हो सकता है? क्या हरियाणा के लिए यह लाइसेंस एक चुनौती की तरह है। क्योंकि यूपी से बड़ी मात्रा में लकड़ी हरियाणा में आती। इसी तरह से लेबर भी यूपी से यहां आती है। इन तमाम परिस्थितियों में हरियाणा की प्लाईवुड इंडस्ट्रियलिस्ट क्या सोच रहे हैं।

दिल्ली एनसीआर प्लाईवुड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सांपला के प्लाईवुड निर्माता विकास खन्ना से बातचीत के मुख्य अंश।


यूपी में प्लाईवुड के नए लाइसेंस देने का रास्ता खुल गया है। इससे हरियाणा की प्लाईवुड पर क्या असर पड़ सकता है?

यूपी में इंडस्ट्री लगने से हमें कोई नुकसान नहीं है। ना ही इससे चिंता करने की जरूरत है। इसकी वजह यह है कि 12-1300 लाइसेंस जारी किए गए हैं। इसमें से लगेंगे कितने? यह देखने वाली बात होगी। मेरा मानना है कि संपूर्ण यूनीट तो 50-100 ही लग पाएगी। हां, आरा और पीलींग जल्द ही चालु हो जाएंगे। इससे हमें कच्चे माल के तौर पर कोर और फट्टी की उपलब्धता बढ़ सकती है। क्योंकि इंटरमीडिएट यूनिट ज्यादा और जल्दी लगने की संभावना है। इसलिए हम इसमें काफी सकारात्मक महसूस कर रहे हैं।

हम यमुनानगर का ही उदाहरण लें तो यहां इंडस्ट्री ज्यादा है, इसलिए कंपीटिशन रहता है। इसी तरह की स्थिति यूपी में बन सकती है। एक मुकम्मल यूनिट लगाने में भारी निवेश भी है और जोखिम भी।

काम हर किसी को मिलना चाहिए। उम्मीद है कि यूपी के इंडस्ट्रियलिस्ट को भी काम मिलेगा और हमें भी काम मिलेगा। यह सभी के लिए जीत की स्थिति होनी चाहिए।

लकड़ी की दिक्कत तो आ सकती है?

टिंबर तो आने वाले कुछ सालों में बड़ी मात्रा में उपलब्ध होगा। क्योंकि बड़ी संख्या में पौधा रोपण हो रहा है। इससे लकड़ी उपलब्ध होती रहेगी। पिछले कुछ समय से जिस तरह से लकड़ी के दाम बढ़े हैं, किसान एग्रो फॉरेस्ट्री के प्रति उत्साहित हो रहे हैं। इसलिए लकड़ी की कमी होती तो नजर नहीं आ रही है। तात्कालिक तौर पर जो लकड़ी की कमी से दिक्कत है, वह तो उद्योग को फिलहाल परेशान रखेगी।

आज हमें गोला मंगा कर अपनी फैक्ट्री में पिलर्स लगाने पड़ रहे हैं। तीन-चार ट्रक पॉपुलर पील करने पर एक ट्रक कोर बनती है। तीन ट्रक का भाड़ा 75 से 80 हजार रुपए पड़ जाता है। जबकि कोर के एक ट्रक का भाड़ा होगा करीब 25 हजार। इसलिए वहां से कोर ही मंगा लेंगे जो हमारे लिए लाभदायक रहेगी।

यूं भी कोई भी प्लांट तभी तरक्की कर सकता है, जब वह किसी एक उत्पाद पर केंद्रित होता है। यदि हम एक से ज्यादा उत्पाद तैयार करते हैं तो ध्यान बंट जाता है। इस तरह से दिक्कत आती है। यूपी में प्लांट लगने का सीधा लाभ हमें होगा कि वहां से कोर खरीदेंगे, यहां उससे उत्पाद तैयार कर लिया जाएगा। डेकोरेटिव वाले भी इसी तरह से कर रहे हैं। वह वीनियर लेते हैं बेस प्लाई बना कर या वह भी बनी बनाई लेकर उत्पाद तैयार कर लेते हैं। इसलिए यदि हमें भी कच्चा माल मिल जाता है, तो हम उत्पादन करेंगे और माल की गुणवत्ता पर ध्यान देंगे।

बाजार की स्थिति को लेकर आपका आकलन क्या है?

भारत की अपनी खपत इतनी है कि पांच प्रतिशत भी निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। प्लाईवुड युनिट हमारे यहां सबसे ज्यादा है, पूरे विश्व की तुलना में। इसलिए भारत में अभी प्लाईवुड का बाजार और विस्तार होने की पूरी संभावना है। फिर भी हम कोशिश कर रहे हैं कि सरकार हमें निर्यात के लिए अनुदान दे। यदि अनुदान मिल जाता है तो गांधीधाम, केरल का स्टेट्स और हमारा स्टेट्स बराबर हो जाएगा। यदि हमें अनुदान मिल जाता है तो निर्यात करना भी हमारे लिए आसान हो जाएगा। क्योंकि तब हमारा पोर्ट तक का किराया (लागत) गांधी धाम-केरल आदि के बराबर हो सकता है।

लेबर की कमी तो आ सकती है

इसकी एक वजह यह है कि लेबर अब प्लाईवुड इंडस्ट्री की बजाय दूसरी इंडस्ट्री को तवज्जो दे रही है। इसके लिए इंडस्ट्री भी कूछ हद तक जिम्मेदार है, क्योंकि उन्हें वह अपेक्षित सुविधा नहीं दे पाते। अब लेबर वहां चली जाती है, जहां उन्हें अधिक सुविधा मिलती है। इसलिए प्लाईवुड में लेबर आए, इसके लिए इंडस्ट्रियलिस्ट को सोचना होगा। लेबर को वेतन के साथ साथ सुविधा भी देनी होगी। यदि ऐसा न किया तो शायद हमारी दक्ष लेबर यहां से पलायन कर सकती है। तब दिक्कत आ सकती है। इसलिए हमें लेबर को वेतन और रहने सहने की बेहतर सुविधा देनी होगी। यह सही है कि इससे हमारी उत्पादन लागत बढ़ जाएगी।

धीरे धीरे बदलाव आ रहे हैं। बेहतरी की ओर बाजार जा रहा है। भविष्य सुरक्षित सुखद और उज्जवल होगा, ऐसी उम्मीद है।

फेक ब्रांड भी ब्रांडेड प्लाईवुड निर्माता के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं

आईएसआई मार्क में भी दिक्कत है, क्योंकि इस बारे में सख्ती बरतने में संकोच किया जा रहा है। फर्जी आईएसआई मार्क लगा कर माल बेचा जा रहा है। हरियाणा में एक दो जगह छापेमारी हुई है। लेकिन इस ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि काफी समय से यह देखा जा रहा है कि नामी प्रचलित ब्रांड के नाम से फर्जी माल बाजार में आ जाता है। इससे बाजार को समस्या आती है। इस ओर हालांकि आईएसआई अब थोड़ा ध्यान दे रही है।

धीरे धीरे सख्ती भी बरती जा रही है। लेकिन इसमें तेजी आनी चाहिए। क्योंकि इससे गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। अच्छा और क्वालिटी का माल तैयार करने वाले उद्योगपतियों को दिक्कत आती है। इससे उन्हें सीधा नुकसान होता है। इसलिए प्ैप् की गुणवत्ता बनी रहे, इसके लिए आईएसआई को सख्त होना होगा।

यह भी सही है कि आईएसआई के गुणवत्ता मापदंड भी आज के वक्त के नहीं है। क्योंकि सफेदा और पोपलर जैसे एग्रो फोरेस्ट्री टिंबर की गुणवत्ता का आकलन करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए यह मापदंड भी बदलने की जरूरत है। क्योंकि अभी तक वह पचास साल पुराने जंगल की टिंबर पर बने मानकों पर ही चल रहे हैं। इस बारे में तो हमें भी प्रयास करने होंगे।

फिर भी आईएसआई को बाजार में छापेमारी करनी चाहिए और अपनी सतर्कता बढ़ानी चाहिए। क्योंकि जो यूनिट आईएसआई मार्क वाले हैं, वह हर साल चार लाइसेंस पर कम से कम दस लाख रुपए खर्च करते हैं। लेकिन कोई फर्जी आईएसआई मार्क लगा कर बाजार में माल भेज रहे हैं। उन्हें भी तो हर हाल में रोकना होगा।