पराली (फसल अवशेष) क्यों जल रही है?
- नवम्बर 27, 2023
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किसानों का खरीफ की फसल के अवशेषों को जलाकर रबी की फसल की तैयारी करना बहुत पुराना सिलसिला नहीं है। पहले इन अवशेषों यानी पराली को हाथ से निकाला जाता था और उसे दोबारा मिट्टी में मिला दिया जाता था जिससे एक किस्म की कंपोस्ट खाद तैयार हो जाया करती थी।
प्रश्न यह है कि इसकी जगह फसल जलाने का सिलसिला क्यों शुरू कर दिया गया जबकि उससे मिट्टी भी खराब होती है और किसानों व उनके परिवारों तथा आसपास रहने वाली शहरी आबादी को सांस की विभिन्न बीमारियों का सामना करना पड़ता है?
इस बदलाव की जड़ें बहुत तेजी से घट रहे जलस्तर में निहित हैं। भूजल स्तर इसलिए तेजी से कम हुआ कि पानी के सस्ता या मुफ्त होने के कारण उसका बेतहाशा इस्तेमाल किया गया। इसे प्रायः पानी की बहुत अधिक खपत करने वाली धान की फसल उगाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। हरित क्रांति के बाद सरकारों की ओर से भी धान की खेती करने पर भारी प्रोत्साहन है। वह भी इसकी खेती बढ़ने की एक वजह है।
घटते जलस्तर को देखते हुए सरकारें चिंतित हुईं। राज्य सरकारों ने ऐसे निर्देश जारी किए कि धान की रोपाई मॉनसून की शुरुआत होने के साथ ही की जाए, जबकि इससे पहले रोपाई के लिए खेत तैयार करने के क्रम में नहरों या बोरवेल से पानी लिया जाता था।
बाद में बोआई का अर्थ फसल का बाद में तैयार होना है। ऐसे में किसानों के पास खेतों को अगली फसल के लिए तैयार करने के लिए ज्यादा समय नहीं रह जाता। इस तरह पराली जलाने का सिलसिला खेतों को जल्दी तैयार करने के लिए शुरू हुआ। क्योंकि इसमें खेतों को हाथ से साफ करने की तुलना में कम वक्त लगता है।
किसानों को भी पराली जलाने के कारण मिट्टी और इंसानों पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों की जानकारी है। लेकिन वे मानते हैं कि कुछ और कर पाना उनके लिए मुश्किल है। राज्य सरकारें खेतों से फसल अवशेष निकालने के उपकरण खरीदने के लिए सहायता देती हैं लेकिन इसका प्रभाव सीमित रहा है। शायद पूसा संस्थान द्वारा विकसित अल्पावधि में तैयार होने वाली फसल की नई किस्म मददगार साबित हो।
एक सुझाव यह है कि इन इलाकों में धान की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया जाए लेकिन ऐसा करने से किसान सड़कों पर उतर आएंगे। केंद्र सरकार द्वारा कृषि सुधार कानूनों को लागू करने की कोशिश के बाद दिल्ली में किसान करीब एक साल तक विरोध प्रदर्शन करते रहे। बाद में उन कानूनों को वापस ले लिया गया। इस प्रदर्शन और कदमवापसी ने दिखा दिया कि कृषि लॉबी सरकार से मिली वरीयता को बचाए रखने के मामले में कितनी ताकतवर है।
हरित क्रांति से जुड़ी सब्सिडी उस वक्त नेक इरादों के साथ दी गई लेकिन उत्पादकता में इजाफा होने पर प्रोत्साहन को खत्म करने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। क्या गरीब और क्या अमीर, सभी किसानों ने इसे अपना स्थायी अधिकार मान लिया।
इसमें कोई हर्ज नहीं कि आबादी के कमजोर या जरूरतमंद तबके को सब्सिडी और समर्थन मिलना चाहिए। परंतु हमारे देश में सब्सिडी अक्सर अधिकार में बदल जाती है और उसका राजनीतिक प्रभाव बन जाता है।