Why is the factory owner held responsible for the failure of the samples of technical

JK Bihani, President, Haryana Plywood Manufacturers’ Association submitted a memorandum to the DC of Yamunanagar, urging that it is not justified to file a case against the factory owners if the technical grade urea samples fail in the lab. Furthermore, a memorandum was submitted to the Home Minister Anil Vij on the behalf of the association requesting of intervention on the matter. Who had came to Radaur to hoist the flag on Independence Day.

Former president of the association Ajay Maniktala, Vice President Satish Chaupal, Vishal Jha, Ramprakash, Satish Saini, Anil Garg, Ajay Garg, Kamal Gupta, Yashpal Madan, Naresh Kamboj, Vikrant Kamboj, and Jagir Singh, accompanied JK Bihani, while handing over of the memorandum. They said it would be hard to work under such a scenario. They added that arrangements should be made at the government and administrative level so that the plywood owners can buy technical grade urea from the right source. This may be the only solution to avoid such problems.

The root cause should be investigated


According to members of the association, failure of technical grade urea samples is a matter of concern. But it should be investigated that where are its wires connected with? How is it possible that the samples of technical grade urea fail? There is either a problem with the sampling system or with the urea supply channel. It is a matter of administrative inquiry, and the problem cannot be solved without a proper investigation.

Urea store must be authorised


Association members also suggested that the administration should mark certain selected stores where the factory owners can purchase technical grade urea. Such an arrangement can also fix the problem.

How to identify technical grade urea?


Another major concern is the identification of urea. After all, urea is urea. What is the difference between agricultural and technical grade urea? Does it look different? Can you check it by testing? Many chemicals used in industry, such as formalin, phenol, etc., which can be testified in their own laboratory?

Scientist Vaidyanathan said that the Indian government has added 2% neem mixture mandatorily in the agricultural area for its identification. Neem coating is perhaps the only criteria to distinguish between the both grades. The imported urea, which is UFC 85 coated, is also declared as agricultural urea in the lab which is aggravating the problem.

Sujata D, Scientist of Indian Plywood Industries and Training Institute said that the nitrogen content in both types of urea remains the same. The moisture content in technical grade is less than 0.5 percent, while it is up to 1% in the fertilizer grade area. Technical grade urea has a crystalline, glossy and dry appearance while the agricultural area is lusterless and round in shape.

Industrialist can only guard generally


Association President JK Bihani told the Home Minister that the owners take care of the major things that are supposed to be taken care of. For example, technical grade urea should be written on the sack and purchase is done with GST paid invoices. Ironically the FIR is filed against the factory owner if the sample fails. In Yamunanagar, 3 FIRs have been registered against the factory owners in the past few days because the sample of urea had failed in lab testing.


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टेक्निकल ग्रेड यूरिया के सैंपल फेल आने पर फैक्ट्री संचालक जिम्मेदार क्यों? सप्लाई करने वाले पर होनी चाहिए कार्यवाही


जे के बिहानी, प्रेजिडेंट, हरियाणा प्लाइवुड मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ने यमुनानगर के डीसी को ज्ञापन देकर आग्रह किया कि टेक्निकल ग्रेड यूरिया के सैंपल फेल आने पर फैक्ट्री संचालकों पर केस दर्ज करना उचित नहीं है। इतना ही नहीं एसोसिएशन की ओर से स्वाधीनता दिवस के पर्व पर रादौर में झंडा फहराने आए गृह मंत्री अनिल विज को भी इस समस्या पर ज्ञापन सौंप कर हस्तक्षेप करने की मांग की है।

इस तरह से तो काम करना हो जाएगा मुश्किल


एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अजय मानिकटाला, उपाध्यक्ष सतीश चौपाल, विशाल झा, रामप्रकाश, सतीश सैनी, अनिल गर्ग, अजय गर्ग, कमल गुप्ता, यशपाल मदान, नरेश कंबोज, विक्रांत कंबोज व जागीर सिंह, जो कि ज्ञापन देते वक्त जे के बिहानी के साथ थे, उन्होंने बताया कि इस हालात में तो काम करना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने बताया कि होना तो यह चाहिए कि प्लाईवुड संचालक सही सोर्स से टेक्निकल ग्रेड यूरिया खरीद सके,इसकी व्यवस्था सरकार व प्रशासनिक स्तर पर होनी चाहिए। जिससे इस तरह की दिक्कत ही न आए।

समस्या की जड़ की जांच होनी चाहिए


एसोसिएशन के सदस्यों ने बताया कि टेक्निकल ग्रेड यूरिया के सैंपल फेल आना बड़ी समस्या है। लेकिन इसके तार कहां से जुड़े हुए हैं? इसकी जांच होनी चाहिए। ऐसा आखिर कैसे हो सकता है, कि टेक्निकल ग्रेड यूरिया के सैंपल फेल आ जाए। इसमें या तो सैंपल सिस्टम में दिक्कत है। यदि ऐसा नहीं है तो जहां से यूरिया सप्लाई हो रहा है, उस चैनल में दिक्कत है। यह तो प्रशासनिक जांच का विषय है। इसकी जांच के बिना समस्या का समाधान नहीं हो सकता।

दुकान चिन्हित होनी चाहिए

एसोसिएशन के सदस्यों ने यह भी सुझाव दिया कि प्रशासन यह कर दें कि कुछ चुनिंदा दुकान सुनिश्चित कर दें, जहां से फैक्ट्री संचालक टेक्निकल ग्रेड यूरिया खरीद सके। इस व्यवस्था से भी समस्या का आसानी से समाधान हो सकता है।

टेक्निकल ग्रेड यूरिया की पहचान कैसे हो?


अब सवाल तो यह है कि यूरिया तो यूरिया होता है। एग्रीकल्चर और टेक्निकल ग्रेड यूरिया में आखिर फर्क क्या होता है? क्या वह दिखने में अलग होता है? क्या उसे चख कर पता लगाया जा सकता है। फार्माेलिन, फेनाल आदि कई केमिकल जिनका उद्योग में इस्तेमाल होता है, उनकी अपनी लैब में टेस्टिंग कर पता लगाया जा सकता है।

साइंटिस्ट वैद्यनाथन ने बताया कि भारत में तो सरकार ने कृषि यूरिया की पहचान के लिए इसमें दो प्रतिशत नीम का मिश्रण मिला दिया। आयात होने वाला यूरिया युएफसी 85 कोटेड होता है। लेकिन इसे भी लैब में कृषि यूरिया घोषित कर दिया जाता है। जिससे समस्या आ रही है।

इंडियन प्लाईवुड़ इन्डस्ट्रीज रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टिटयूट की साइंटिस्ट सुजाता डी ने बताया कि दोनो तरह के यूरिया में नाइट्रोजन की मात्रा तो बराबर रहती है। तकनीकी ग्रेड में नमी 0.5 प्रतिशत से कम होती है, जबकि कृषि में प्रयोग यूरिया में नमी एक प्रतिशत तक होती है। तकनीकि ग्रेड क्रिस्टलीय, चमकदार और अधिक शुष्क दिखाई देता है। जबकि कृषि क्षेत्र में प्रयोग होने वाला यूरिया गोल आकार में बिना चमक का दिखाई देगा।

मोटे तौर पर यह ही देख सकते हैं संचालक


एसोसिएशन के अध्यक्ष जे के बिहानी ने गृहमंत्री को बताया कि जो मोटी मोटी चीजें देखने की होती है, वह संचालक देख लेते हैं। मसलन बोरी के उपर टेक्निकल ग्रेड यूरिया लिखा होना चाहिए। इसकी खरीद के बिल भी लेते हैं, जो जी एस टी पेड होता है। इसके बाद भी यदि सैंपल फेल आता है तो एफआईआर फैक्ट्री संचालक के खिलाफ होती है। यमुनानगर में पिछले दिनों फैक्ट्री संचालकों के खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज की गई है। इसमें यूरिया का सैंपल लेब टेस्टींग में फेल आया था।

 



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