Widening Gap in Business
- अक्टूबर 4, 2020
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Widening Gap in Business
In the meantime, a new word has emerged about the future growth estimate, the improvement of the size of the letter ‘V’ in English, ie. a sharp decline, and then a rapid improvement. Also English ‘U’ (correction after a short interval), or ‘W’ or ‘L’ shaped correction or on the lines of the letter ‘K’. Correction such as the letter ‘K’ means two lines emanating from a vertical line. Global commentators say that this has been happening more or less since the financial crisis of 2008: the gap between different countries, economic sectors, companies, and people is also increasing between those who make profit and those who make losses.
Examples of this are not lacking. Talking about various countries, China has been buying fiercely since 2008. It is occupying strategic importance companies and important ports around the world. He is giving very generous loans to various governments, who are forced to obey China when they have difficulty in repaying it. We have happy investors in the stock market, while millions of people have lost their jobs and there has been a huge decline in private consumption.
The earnings of companies working remotely and helping in studies have suddenly increased. Similarly, drug makers are also having a good day, while the commercial real estate market and shirt (to wear in offices) business have declined. Aviation companies like Qantas are selling pajamas. The condition of the small is bad in front of big businessmen in various sectors: Jio almost swallows the entire Future Group, causing D-Mart to reduce prices, Adani Group continues to monopolize local airports while port areas is already dominated.
The shrinking of profits has taken an unexpected turn. The market regulator and the Competition Commission appear passive while tech companies in Europe and Australia are being questioned for non-competitive behavior.
This is not only due to the epidemic. Factors of recession and rising inequality existed before the arrival of Covid-19 and now these trends are more pronounced. In the social welfare model, governments would help small and medium enterprises and take care of the defeated. But in the circumstances, governments are also getting disabled. In such a situation, political and economic nationalism is encouraging migration. Big industrialists are dominating. Obviously political and economic winners are not one. The picture is not good.
व्यापार में चैड़ी होती खाई
भविष्य के वृद्धि अनुमान को लेकर एक नया शब्द सामने आया है अंग्रेजी के ‘वी’ अक्षर के आकार का सुधार यानी तेज गिरावट और उसके बाद उतनी ही तेजी से सुधार। इसके अलावा अंग्रेजी के ‘यू’ (थोड़े अंतराल के बाद सुधार), या ‘डब्ल्यू’ या ‘एल’ आकार का सुधार या फिर ‘के’ अक्षर के तर्ज पर सुधार। ‘के’ अक्षर जैसे सुधार का तात्पर्य है एक लंबवत रेखा से निकलती दो रेखाएं। वैश्विक टीकाकरों का कहना है कि सन 2008 के वित्तीय संकट के बाद से कमोेबेश ऐसा ही हो रहा हैः विभिन्न देशों, आर्थिक क्षेत्रों, कंपनियों और लोगों के बीच भी लाभ कमाने और नुकसान उठाने वालों के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है।
इसके उदाहरणों की कमी नहीं है। विभिन्न देशों की बात करें तो चीन सन 2008 से ही विश्व स्तर पर जमकर खरीद कर रहा है। वह दुनिया भर में रणनीतिक महत्त्व वाली कंपनियों और अहम बंदरगाहों पर काबिज हो रहा है। वह विभिन्न सरकारों को बेहद उदारतापूर्वक ऋण दे रहा है जो उसे चुकाने में दिक्कत होने पर चीन की बातें मानने पर विवश हो जाते हैं। हमारें यहां शेयर बाजार में निवेश करने वाले आनंदित हैं जबकि लाखों के रोजगार जा चुके हैं और निजी खपत में भारी गिरावट आई है।
दूर से काम करने और पढ़ाई में मदद करने वाली कंपनियों की कमाई अचानक बहुत बढ़ गई है। इसी तरह औषधि निर्माताओं के भी अच्छे दिन चल रहे हैं जबकि वाणिज्यिक अचल संपत्ति बाजार और कमीज (कार्यालयों में पहनेे के लिए) के कारोबार में गिरावट आई है। क्वांटास जैसी विमानन कंपनी पजामे बेच रही है। विभिन्न क्षेत्रों में बड़े कारोबारियों के सामने छोटों की हालत बुरी हैः जियो ने समूचे फ्यूचर समूह को लगभग निगल ही लिया, इसके चलते डी-मार्ट को कीमतें कम करनी पड़ीं, अदाणी समूह स्थानीय हवाई अड्डों में एकाधिकार कायम कर रहा है जबकि बंदरगाह के क्षेत्र में वह पहले से ही वर्चस्व वाला है।
मुनाफे का चंद हाथों में सिमटना अप्रत्याशित रूप ले चुका है। बाजार नियामक और प्रतिस्पर्धा आयोग निष्क्रिय नजर आ रहे हैं जबकि यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में तकनीकी कंपनियों से गैर प्रतिस्पर्धी व्यवहार के लिए सवाल किया जा रहा है।
यह केवल महामारी के कारण नहीं है। मंदी और बढ़ती असमानता के कारक कोविड-19 के आगमन के पहले से मौजूद थे और अब ये रूझान अधिक स्पष्ट हैं। सामाजिक कल्याण के माॅडल में सरकारें छोटे और मझोले उपक्रमों की मदद करतीं और पराजितों का ध्यान रखतीं हैं। परंतु जो हालात हैं उनमें सरकारें भी अक्षम हो रही हैं। ऐसे में राजनीतिक और आर्थिक राष्ट्रवाद ही पलायन को प्रोत्साहन दे रहा है। बड़े उद्योगपति हावी हो रहे हैं। जाहिर है राजनीतिक और आर्थिक विजेता एक नहीं हैं। तस्वीर अच्छी नहीं है।