फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून
- जनवरी 17, 2020
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फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून
में एक दिवसीय (20.12.2019) वुड बेस इंडस्ट्री पर सेमिनार आयोजित
आने वाला वक्त चुनौतिपूर्ण है, इसके लिए हमें जागरूक होना होगा: एएस रावत
प्लाइवुड उद्योगपतियों को नयी तकनीक की जानकारी से रुबरु कराने, आने वाली चुनौतियों से निपटने की रणनीति बनाने और वैज्ञानिकों, उद्योगपतियों के साथ साथ किसानों को एक मंच पर लाने के उद्देश्य से वुड टैक्नोलोजिस्ट एसोसिएशन और एफआरआई ने एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया। इसमें इसमें 14 राज्यों से प्लाइवुड उद्योगपति, मशीनरी निर्माता, व्यापारियों व विशेषज्ञों ने भाग लिया।कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए देहरादून फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर एएस रावत ने कहा कि कहा कि लकड़ी आधारित इंडस्ट्री के लिए आने वाला समय खासा चुनौतियों वाला है। इसके लिए हमें आज से ही तैयारी करनी होगी। हम इस चुनौती से निपटने में सक्षम है। बस हमें इसके बारे में जागरूक होना होगा। हमारे पास बेहतर तकनीक हैए, मेहनती उद्योगपति है, जिससे हम हर तरह की चुनौती से पार पा सकते हैं।
कार्यक्रम में इंडियन काउंसिल आफ फॉरेस्ट रिसर्च एंड एजूककेशन केंद्रीय वन मंत्रालय भारत के डायरेक्टर जनरल एस सी गेरोला ने कहा कि एफआरआई प्लाइवुड उद्योगपतियों और शोधार्थियों को एक मंच प्रदान करता है। जहां वैज्ञानिक लगातार रिसर्च कर ऐसी तकनीक विकसित कर रहे हैं, जिससे उद्योगपति को अपने काम में असानी हो और वह अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता का उत्पादक तैयार कर सके। सेमिनार में एफआरआई में किए जा रहे शोध की जानकारी दी गयी। इस तरह की रिसर्च से प्लाइवुड उद्योग को खास लाभ मिलेगा। संस्थान के वैज्ञानिकों ने आए हुए प्रतिनिधियों को यह यकीन दिलाया कि वह हर स्तर पर उनके साथ है। उन्हें बेहतर व आधुनिक तकनीक उपलब्ध कराने की दिशा में निरंतर काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कम लागत से कैसे बेहतर गुणवत्ता का उत्पादक तैयार किया जा सकता है, इस दिशा में लगातार काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि संस्थान में जो भी तकनीक इजाद की है, इसे उद्योगपतियों तक पहुंचाने के लिए वह लगातार काम कर रहे हैं। प्रतिभागियों को आमंत्रित किया कि वह इस तकनीक की जानकारी लेंए यदि उन्हें लगता है कि इसकी उन्हें जरूरत है तो उन्हें यह तकनीक उपलब्ध करायी जाएगी। इस मौके पर वुड टैक्नोलोजिस्ट एसोसिएशन के प्रेजिडेंट एससी जॉली ने कहा कि ऐसे सेमिनार उद्योगतियों और वैज्ञानिकों को एक मंच पर लाते हैं। यहां वैज्ञानिक यह समझते हैं कि उद्योगतियों की दिक्कत क्या हैए वैज्ञानिक इसे दूर करने की दिशा में क्या कर सकते हैं। वहीं उद्योगपतियों को आधुनिक तकनीक और रिसर्च की जानकारी मिलती है। इस मौके पर प्लाइवुड एसोसिएशन की ओर से देवेंद्र चावला और अजय ओबेराय ने उद्योग की समस्याओं पर प्रकाश डाला।
हम सभी को एक तरह से सोचना होगार: जॉली
कार्यक्रम में अपने संबोधन में वुड टैक्नोलोजिस्ट एसोसिएशन के प्रेजिडेंट एससी जॉली ने कहा कि हमें एक तरह से सोचना होगा, तभी हम आने वाले वक्त में बेहतर प्रदर्शन् कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों टिंबर के रेट में काफी कमी आ गयी थी। इस वजह से किसानों को खासा नुकसान उठाना पड़ा। रेट कभी 300 रुपए प्रति क्विंटल तो कभी 900 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। हमें आज यह सोचना होगा कि यदि किसान नुकसान उठाएंगे तो क्यों वह एग्रोफॉरेस्ट्री करेगा? जबकि हमारा कच्चा माल तो वहां से आ रहा है। ऐसे में हमें इस तरह की नीति और योजना बनानी चाहिए कि किसान को भी उसकी लकड़ी का उचित दाम मिलता रहे। उन्होंने बताया कि इसके लिए कई मॉडल हो सकते हैं। एक तो यहीं कि किसानों के साथ उद्योगपतियों और वैज्ञानिकों का उचित तालमेल हो तो इस तरह की दिक्कत आसानी से दूर हो सकती है। दूसरा यह भी हो सकता है कि यदि किसानों को खेत में खड़ी लकड़ी पर ही बैंक से उचित ब्याजदर पर कर्ज मिल जाए। इसके लिए सरकार बैंकों को निर्देश दे सकती है। किसानों को तैयार लकड़ी को एक जगह से दूसरी जगह तक लाने के लिए कुछ अनुदान दिया जाए। जिससे वह आसानी से अपना माल ट्रांसपोर्ट कर सके। उन्होंने कहा कि उद्योगपतियों को चाहिए कि वह किसानों की मदद करें, क्योंकि इससे उन्हें अपना काम सुचारू रूप से जारी रखने में मदद मिलेगी। यदि वह किसानों की मदद करते हैं तो यह न सिर्फ किसान की मदद होगीए बल्कि यह अपनी मदद खुद करने जैसा होगा। जॉली ने कहा कि वुड टैक्नोलोजिस्ट एसोसिएशन के प्रधान ने कहा कि हम लगातार इस दिशा में कोशिश कर रहे हैं। हम किसानों, उद्योपतियों, वैज्ञानिकों व सरकार के साथ तालमेल बना रहे हैं। जिससे इस दिशा में कुछ सार्थक काम किया जा सके।
बननी चाहिए नीति
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि किसानों के लिए कोई नीति बननी चाहिए। जिससे उन्हें लकड़ी का उचित दाम मिलता रहे। जिस तरह से सरकार गन्ने का समर्थन मूल्य तय करती है। इस पर सरकार कुछ अनुदान देती है, इसी तरह का अनुदान सरकार को लकड़ी उत्पादक किसानों को भी देना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो यह एग्रोफॉरेस्ट्री में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। यूं भी लकड़ी की फसल तीन से चार साल की होती है। प्रदूषण इन दिनों बड़ा मुद्दा बना हुआ है। अब यदि खेतों में व्यापक पैमाने पर लकड़ी होगी को हम अंतरराष्ट्रीय मंचपर यह दावा कर सकते हैं कि किस तरह से हम कार्बन क्रेडिट फुट प्रिंट कम कर रहे हैं। इसके लिए सरकार और नीति निर्माताओं को पहल करनी होगी। उन्हें ऐसा माडॅल बनाना होगाए जिससे किसानों को ज्यादा से ज्यादा एग्राफॉरेस्ट्री की ओर आकर्षित किया जा सके।
यह दिए गए सुझाव
एसोसिएशन की ओर से डब्ल्यूटीए के स्पीकर सुभाष जॉली मनोज गवरी सुनील श्रीवास्तव विक्टर जेवियर ने कुछ सुझाव पेश किए।
- कच्चे माल की नियमित और सही मात्रा में उपलब्धता के लिए काम होना चाहिए। यह तभी होगाए जब हम इस बारे में कोई ठोस नीति तैयार करेंगे।
- पूरे देश में एक तरह की नीति होने से इंडस्ट्रीए किसान और व्यापारियों को लाभ मिलेगा। बाजार में संतुलन बना रहेगा।
- लकड़ी के उचित मूल्य निर्धारण होना चाहिए
- कैसे किसान की आमदनी में उतार चढ़ाव को रोक कर वह नियमित होए इस दिशा में भी काम होना चाहिए
- विभिन्न वित्तीय योजनाओं के तहत सामाजिक वानिकी लाने की संभावना की तलाश की जानी चाहिए
- निर्यात बाजारों के लिए भारतीय प्लाईवुड और पैनल उत्पादों के प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण में कम मूल्य झूलों और उच्च स्थिरता।
- निर्यात बाजारों के लिए एफएससीए पीईएफसी आदि के तहत उच्च वानिकी प्रमाणन संभावनाएं।
- संपूर्ण टिम्बर वैल्यू चेन को उच्च क्षमता और उद्योग मानकों के लिए नियमित और मानकीकृत किया जा सकता है।
इन सुझावों को वहां उपस्थिति हर किसी ने सराहा। माना कि यदि इस तरह से सरकार काम करें तो निश्चित ही यह किसान, प्लाइवुड उद्योगपति और व्यापारी और पर्यावरण के हित में बड़ा कदम साबित हो सकते हैं।
इस कार्यक्रम में ग्रीन पेनल इंडस्ट्रीज से विक्टर जेवियर, कुमार इंन्जिनियरिंग से सुनिल श्रीवास्तव, बिशन दास नय्यर एंड सन्स से रिसभ नय्यर, बिगविग प्लाइवुड से आशीष अग्रवाल, रोहित काया, यूनाइटेड टिम्बर से अमित ओबराय, अजय ओबराय, ट्रुबोण्ड इन्डस्ट्री से रितेश मुन्दडा, जगदम्बा वुड इंडस्ट्रीज से पंकज वैश, सेफवुड इंडस्ट्री से एच वैद्यनाथन भी उपस्थित थे।
इस तरह के सेमिनार होते रहने चाहिए
इस मौके पर आईपीआईआरटीआई मौहाली के ज्वाइंट डायरेक्टर डाक्टर मनोज दुबे, डाक्टर रंजन यादव और आईपीआईआरटीआई और आईडब्ल्यूएसटी डायरेक्टर डाक्टर एमपी सिंह ने कहा कि इस तरह के सेमिनार होते रहने चाहिए। उन्होंने बताया कि यहां हमें एक दूसरे की समस्याओं को समझने का मौका मिलता है। निश्चित ही यह उद्योग, किसान, वैज्ञानिक और नीति निर्धारकों के लिए एक बड़ा मौका होता है।