Bankers get shield from fraud heat
- फ़रवरी 19, 2020
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Bankers get shield from fraud heat;
boards of PSBs to be held accountable
The government has watered down its framework for dealing with high-value frauds in a bid to encourage managing directors (MDs) and chief executive officers (CEOs) of state-owned banks to take commercial decisions fearlessly.
Instead of MDs and CEOs, the boards of public sector banks (PSBs) will now be held accountable for the various regulator-prescribed timelines for reporting or investigating frauds above s50 crore, according to a directive sent by the finance ministry to banks.
The finance ministry had in May 2015 created the framework on “timely detection, reporting, and investigation” relating to large-value bank frauds. “The overall responsibility” for ensuring compliance with the various timelines being laid down by the Reserve Bank of India (RBI) in its circular related to reporting of fraud was that of CEOs of PSBs in the 2015 circular. The RBI has prescribed banks to follow a timeline to report different levels of bank frauds to the police, regulators, and investigative agencies.
Vesting the responsibility with chief executives was a deterrent in taking decisions. “With this, there will be a sense of collective responsibility as the boards of banks also have representatives of the government and the RBI. It would ensure speedier commercial decisions. “The move will ensure that the reporting of fraud does not become an individual responsibility but a collective one.”
These steps are in line with the government’s conscious tactic to soothe the nerves of bankers who have shown reluctance in taking commercial decisions due to the fear of probe agencies. The Centre has time and again stressed in the past few years that it would make a distinction between “genuine commercial failures and culpability”.
बेखौफ फैसले ले सकेंगे बैंकों के प्रमुख
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकांे (पीएसबी) के प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) को प्रोत्साहित करने के लिए धोखाधड़ी के लिए बने ढांचे में ढील देने का फैसला किया है, जिससे कि वे भय रहित वाणिज्यिक फैसले ले सकें।
वित्त मंत्रालय की ओर से भेजे गए दिशानिर्देशों के मुताबिक 50 करोड़ रुपये से ऊपर की बड़ी राशि वाली धोखाधड़ी के मामले में रिपोर्टिंग या जांच को लेकर एमडी और सीईओ के बजाय सरकारी बैंकों के बोर्ड जिम्मेदार होंगे।
बड़े मूल्य की बैंक धोखाधड़ी की ‘पहचान’ रिपोर्टिंग व जांच’ को लेकर वित्त मंत्रालय ने मई 2015 में एक फ्रेमवर्क भेजा था। रिजर्व बैंक द्वारा तैयार की गई विभिन्न समयसीमा का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कुल मिलाकर जिम्मेदारी 2015 की अधिसूचना में सरकारी बैंकों के मुख्य कार्यकारियों पर थी। रिजर्व बैंक ने बैंकों के लिए एक समयसीमा तय की थी कि वे बैंक धोखाधड़ी के विभिन्न स्तर पर पुलिस, नियामक और जांच एजेंसियों को सूचना दे सकते हैं।
बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पर सारी जवाबदेही डाल देने से उन्हें फैसले करने में दिक्कत आती थी। नई व्यवस्था में सामूहिक दायित्व तय किया गया है क्योंकि बैंक के बोर्ड में भी सरकार व रिजर्व बैंक के प्रतिनिधि होते हैं। उन्होंने कहा कि इससे तेज वाणिज्यिक फैसले किया जाना सुनिश्चित हो सकेगा।
इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि धोखाधड़ी की रिपोर्टिंग साझा दायित्व होगा न कि किसी एक व्यक्ति का दायित्व।’
सरकार की ओर से ये कदम बंैकरों की कठिनाइयों को देखते हुए उठाए गए हैं, जो जांच एजेंसियों के डर से वाणिज्यिक फैसले करने में सुस्ती दिखाते थे। सरकार ने इस बार और पहले भी कुछ वर्षों के दौरान जोर दिया है कि वह उचित वाणिज्यिक असफलता और दोष में अंतर करेगी।
बीते दिनों में बैंक चिंता के दौर से गुजरे हैं, जब फैसले करने कठिन थे। वे सीबीआई, सीवीसी और सीएजी को लेकर चिंतित रहते थे। यह चिंता थी कि अगर वह उचित फैसला करते हैं, तब भी अनावश्यक उत्पीड़न के शिकार हो सकते हैं।