New Guidelines on wood-based industries is expected to encourage industry and farmers
- मार्च 14, 2023
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The Government of India is all about to go for drafting new guideline to encourage wood-based industries. Prepared in consultation with the experts, this policy is likely to bring a lot of relief to the wood-based industry. Significantly, it is planning to free the wood-based industry from obligation of license. This step by the government can prove to be revolutionary for the industry. This will not only pave the way for setting up new industries, but will also promote Agro-forestry by increased demand. … The need for a flexible policy was felt for the industry for a long time.
Dr. MP Singh said that the new policy should satisfy everyone is our motto. Because henceforth the state level committee will be empowered to take decisions. The state level committee will work out the wood demand in the state, while matching the supply side in the state. It can decide the number of wood-based industries in the state by assessing all the facts. The State Committee will work under the MoEFCC of the Government of India. Veneer, plywood medium density fiber (MDF) Board, Particle Board, Pulp and Paper and other industries that use farm wood or imported wood in the form of raw materials should be free from any license, is recommended in this direction.
Wood-based industries will be only (online) registered in the state/union territory. The industries will submit self verified details, where they will give information about total amenity of wood, along with the source of wood.
Dr. MP Singh said that till now wood-based industries were unable to set up in those areas where there is a lot of possibility of agro-forestry. The wood has to be transported to the far flung area where industries are located. In this way, cost of wood transportation directly affects the cost of production.
But some experts feel that it can prove to be effective only if conceptions in the policy is modified slightly. There is the example of UP where the NGT held the licenses for a long time. Later the Supreme Court, permitted licenses after near about three years. However, the UP Govt. had to explain a detailed survey assessment of the availability of wood to the Supreme Court.
At present, according to the Forest Act 2002, it is mandatory to properly calculate and assess the wood availability. Until this Act is not changed legally. Till then such efforts will prove to be meaningless.
Therefore, experts believe that if this policy is approved and passed by the cabinet and a proper law is made, then only better results can be revealed. If this is not done, the policy can either be stuck in a legal digest in any state or NGT.
लकड़ी आधारित उद्योगों पर नए दिशा निर्देश
से उद्योग और किसानों का प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद
भारत सरकार लकड़ी आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए नए दिशा निर्देश बनाने पर विचार कर रही है। विशेषज्ञों की सलाह पर तैयार की जा रही इस पॉलिसी से लकड़ी आधारित उद्योग को काफी राहत मिलने की संभावना है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि लकड़ी आधारित उद्योग को लाइसेंस मुक्त करने की योजना है। सरकार का यह कदम उद्योग के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकता है। इससे न सिर्फ नए उद्योग लगाने का रास्ता साफ होगा, बल्कि मांग बढ़ने से कृषि वानिकी को भी बढ़ावा मिलेगा। … लंबे समय से उद्योग के लिए एक लचीली पॉलिसी की आवश्यकता महसूस हो रही थी।
डॉ. एमपी सिंह ने बताया कि नई पॉलिसी हर किसी के हित को ध्यान में रखकर बनाई जा रही हैं। क्योंकि अब राज्य स्तरीय कमेटी अपने स्तर पर निर्णय ले सकती। राज्य स्तरीय कमेटी अपनी जरूरत समझते हुए यह देख सकते है कि राज्य में लकड़ी की मांग कितनी है, सप्लाई कितनी है। इसका आकलन कर वह राज्य में लकड़ी आधारित उद्योगों की संख्या तय कर सकते हैं। राज्य कमेटी भारत सरकार के MoEFCC के अधीन काम करेगी। विनियर, प्लाईवुड मीडियम डेंसिटी फाइबर (एमडीएफ) बोर्ड, पार्टिकल बोर्ड, पल्प और पेपर और ऐसे अन्य उद्योग जो कच्चे माल के रूप में खेत की लकड़ी या आयातित लकड़ी का उपयोग करते हैं, वह सभी लाइसेंस से मुक्त हों, इस दिशा निर्देश में इसकी सिफारिश की गई है।
लकड़ी आधारित उद्योगों को राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में सिर्फ (ऑनलाइन) पंजीकृत किया जाएगा। उद्योग स्वयं सत्यापित विवरणी जमा करेंगे, जिसमें वह यह जानकारी देंगे कि कितनी लकड़ी का उपयोग किया गया, और यह लकड़ी कहां से खरीदी गई थी।
डॉ. एमपी सिंह ने बताया कि अभी तक हो यह रहा है कि उन क्षेत्रों में लकड़ी आधारित उद्योग लग ही नहीं पा रहे थे, जहां कृषि वानिकी की काफी संभावना है। ऐसे क्षेत्र से लकड़ी को वहां लेकर आना पड़ता है, जहां उद्योग लगें हैं। इस तरह से लकड़ी परिवहन पर काफी खर्च हो जाता है। जिसका सीधा असर उत्पादन लागत पर पड़ता है।
लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पॉलिसी की अवधारण में यदि थोड़ा फेरबदल कर दिया जाए तो ही यह कारगर साबित हो सकती है। यूपी का उदाहरण हमारे सामने है, जहां एनजीटी ने लाइसेंस पर काफी समय के लिए रोक लगा दी थी। बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट गया, जहां करीब तीन साल के बाद लाइसेंसों को अनुमति मिली। हालांकि इसमें भी UP सरकार द्वारा लकड़ी की उपलब्धता का विस्तृत ब्यौरा सुप्रीम कोर्ट को समझाना पड़ा था।
फिलहाल वन अधिनियम 2002 के अनुसार लकड़ी उपलब्धता की समुचित गणना करना अनिवार्य है। जब तक इस अधिनियम को कानूनन बदला नहीं जाएगा। तब तक इस तरह के प्रयास बेमानी ही सिद्ध होंगे।
इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस पॉलिसी को कैबिनेट से पास करा कर कानून का रूप दिया जाए तो इसके और बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं। यदि ऐसा नहीं हो पाता हैं, तो पॉलिसी या तो NGT या फिर किसी न किसी स्टेट में कानूनी पचड़े में फंसती रह सकती है।