आर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024 में सरकार को सुझाव दिया गया है कि केवल बहुत ही विशेष परिस्थितियों में कृषि उत्पाद के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए। किसान को भी मुनाफा कमाने का हक है। इसलिए किसी भी कृषि उत्पाद की कीमत बढ़ने की आशंका भर से कीमत को काबू में रखने के कदम उठाने से बचना चाहिए।

भारत ने गेहूं, चावल, चीनी और प्याज जैसी प्रमुख कृषि वस्तुओं का निर्यात रोक दिया, क्योंकि आशंका थी कि अनियमित मौसम की वजह से देश में इन उत्पाद की कमी हो सकती है। जिससे घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ सकती है। केंद्र ने किसी भी मूल्य वृद्धि को रोकने के लिए गेहूं, धान (गैर-बासमती), चना, सरसों के बीज, सोयाबीन और मूंग में व्यापार पर भी प्रतिबंध लगा दिया।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि कृषि उत्पादों के मूल्य को नियंत्रित करने के सरकार के प्रयास जैसे कि खुले बाजार में बिक्री, व्यापार नियंत्रण और जमाखोरी को रोकने के लिए कदम, जिनका उद्देश्य उपभोक्ताओं को बढ़ती कीमतों से राहत देना होता है, लेकिन इससे अक्सर किसानों को नुकसान ही होता है।

गैर-आवश्यक वस्तुओं के मामले में, सरकार ‘‘घरेलू खपत की चिंता करने की बजाय उनके विकल्प पर भी विचार कर सकती है। उदाहरण के लिए‘‘ यदि चीनी की कीमतें बढ़ती हैं, तो उपभोक्ता इसका कम सेवन कर सकते हैं या गुड़ का सेवन कर सकते हैं।

इसमें कहा गया है कि सामान्य तौर पर, उपभोक्ताओं के लिए इसका विकल्प चुनना या खपत कम करना आसान है। कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक लगाने या फिर ज्यादा कीमतों पर आयात करने की बजाय।

इसमें यह भी कहा गया है कि भारत के मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे को खाद्य पदार्थों को छोड़कर मुद्रास्फीति को लक्षित करने पर विचार करना चाहिए। जब केंद्रीय बैंक सरकार से खाद्य उत्पादों की कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने की अपील करता है, तो यह किसानों को इस बढ़ी कीमत का लाभ उठाने से रोकता है।

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इसमें यह भी बताया गया है कि कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए राज्यों को प्रोत्साहन दे कर कृषि में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाना और बाजार के बुनियादी ढांचे में सुधार करना भी महत्वपूर्ण है।

इसमें यह भी बताया गया है कि छोटे जोत वाले किसानों की आय केवल गेहूं और धान उगाने से नहीं बढ़ सकती है, साथ ही कहा गया है कि किसानों को फलों और सब्जियों, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन डेयरी और भैंस के मांस जैसे उच्च मूल्य वाली कृषि की ओर बढ़ने की जरूरत है।

सर्वेक्षण में सुझाव दिया गया है कि किसान उत्पादक संगठनों, ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-एनएएम) को बढ़ावा देने और सहकारी समितियों को कृषि-विपणन में भाग लेने की अनुमति देने से बेहतर मूल्य निर्धारण हो सकता है। ई-एनएएम एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है जो कृषि वस्तुओं के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए मौजूदा कृषि उपज और पशुधन बाजार समितियों (एपीएमसी) को जोड़ता है।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए कृषि-बुनियादी ढांचे में निवेश, ऋण पहुंच और उपयुक्त बाजार संस्थानों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों की पहचान करना जरूरी है।


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