Economic outlook for the second wave
- जून 1, 2021
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There is an unprecedented health tragedy unfolding with Covid-19, around us. This naturally leads to fears about an economic crisis that might follow.
Firms should not be jittery, and focus on building back better.
The pandemic has exploded in India, and generated a health crisis of a kind that has never before been experienced in Indian history. The scenes around us are heart-breaking and unnerving. Health is a game of prevention and cure, and neither prevention nor cure is working. All around us, we hear stories of grief and loss, of health care requirements that exceed health care system capacity.
At this instant, the prime focus is on mobilizing health care and on bending the curve. We tend to naturally make analogies with the experience of last year. The health problem is worse this year, so will the economic downturn also get worse?
1. There is less dry wood: Last year, the entire population of India was vulnerable to the disease. Over this year, a lot of people have developed immunity through experiencing the disease. This is visible in a wide variety of seroprevalence studies.
2. Health care is working better: Last year, the health care system collapsed. Private health care providers, who make up the bulk of the Indian health care system, faced difficulties with health care workers, the lockdown, procedures, and customers. Non-Covid activities collapsed though a combination of hesitation on the part of providers and users. Treatment for Covid-19 were hampered by the lack of knowledge. This time around, the health care system is overloaded, but it is fully in play.
3. Policy makers are more experienced: Last year, policy makers faced yawning uncertainty. Very big questions were confronted with limited information. India announced one of the world’s most extreme lockdowns, and yet experienced the rapid spread of the disease. This time around, policy makers are more experienced.
4. Firms are more experienced: Last year, the firms were caught by surprise. Firms were forced to scramble WFH response and reinvent management processes on the fly when the lockdown was announced. There were difficulties in the operation of facilities, and storage and movement of goods. The economy experienced a substantial change in the composition of goods/services purchased in the socially distanced environment. This time around, there is less surprise, the firs know what to do and there is a smooth transition into pandemic sensitive methods of working.
5. The world economy is coming back: Last year, there was gloom all around the world economy. Nobody knew how quickly vaccines and cures would be found when normalcy would be restored. Now the outlook is optimistic and uncertainty is low.
There is a case for Indian policy makers to remove trade barriers, so as to fuel India’s ability to grow on the back of export demand.
The landscape of the economy, then, is one with strong growth in the export sector. Strong productivity gains in many firms owing to WFH, and attractive prices for many kinds of labour. This is a time for creatively rebuilding firms based on rethinking strategy for the environment.
कोविड की दूसरी लहर और आर्थिक दृश्टिकोण
यह उचित अवसर है कि भारतीय नीति निर्माता कारोबारी अवरोध समाप्त करें ताकि देश निर्यात आधारित मांग के दम पर वृद्धि हासिल कर सके।
कोविड-19 महामारी के कारण हमारे आसपास एक असाधारण स्वास्थ्य संबंधी त्रासदी घटित हो रही है। यह स्वाभाविक रूप से एक आर्थिक संकट की आशंका भी पैदा करता है। कंपनियों को आशंकित होने के बजाय खुद को मजबूत बनाने पर काम करना चाहिए।
देश में महामारी विस्फोटक स्थिति में पहुंच चुकी है औ इसने ऐसा स्वास्थ्य संकट उत्पन्न किया है जैसा देश के इतिहास में पहले कभी महसूस नहीं किया गया। हमारे आस पास ऐसी घटनाएं घट रही है जो किसी का भी दिल दहला देने में सक्षम हैं। स्वास्थ्य बचाव और उपचार का खेल है लेकिन इस मामले में दोनों ही काम नहीं आ रहे हैं। हमारे चारों तरफ दुख और निराशा की खबरें छाई हुई हैं। स्वास्थ्य संबंधी जरूरतें हमारे स्वास्थ्य सेवा तंत्र की क्षमताओं से परे जा चुकी हैं।
ऐसे में प्राथमिक ध्यान स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने और संक्रमण दर कम करने पर केंद्रित है। हम स्वाभाविक रूप से पिछले वर्ष के अनुभव से तुलना करते हैं। परंतु स्वास्थ्य संकट पिछले वर्ष से बुरा है तो क्या आर्थिक स्थिति भी गत वर्ष से खराब होगी?
1. संक्रमण का जोखिम कमः गत वर्ष देश की समूची आबादी को इस संक्रमण की आशंका थी। बीते एक वर्ष के दौरान कई लोग इस बीमारी से जूझे और उनमें प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई।
2. स्वास्थ्य सेवाएं बेहतरः गत वर्ष स्वास्थ्य सेवा ढांचा ढह गया था। निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता जो देश की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं, उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। लाॅकडाउन, प्रक्रियाओं और ग्राहकों के स्तर पर भी उन्हें समस्या हुई। गैर कोविड गतिविधियां ध्वस्त हो गई क्योंकि संवादप्रदाताओं और उपयोगकर्ताओं दोनों में हिचक थी। जानकारी के अभाव ने भी कोविड-19 के इलाज को प्रभावित किया। इस बार स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बहुत अधिक है लेकिन वे पूरी क्षमता से काम कर रही हैं।
3. निति निर्माता ज्यादा अनुभवी हैंः गत वर्ष नीति निर्माताओं को अनिश्चितता का सामना करना पड़ा था। सूचनाओं के आधार पर करना पड़ रहा था। भारत ने दुनिया के सबसे सख्त लाॅकडाउन लगाने वाले देशों में शामिल था लेकिन इसके बावजूद बीमारी तेजी से फैली। इस बार नीति निर्माताओं के पास ज्यादा अनुभव हैं।
4. कंपनिया ज्यादा अनुभवी हैं: गत वर्ष कंपनियां एकदम चकित रह गई थीं। कंपनियों को अचानक लाॅकडाउन लगने के बाद मजबूरन घर से काम करने जैसी व्यवस्थाएं करनी पड़ीं और प्रबंधन की गई प्रक्रियाएं तलाशनी पड़ीं। कंपनियों के परिचालन में कठिनाई आई। वस्तुओं के भंडारण और उन्हें ले जाने में भी समस्या हुई। सामाजिक दूरी वाले माहौल में अर्थव्यवस्था ने वस्तुओं और सेवाओं की खरीद में बदलाव अनुभव किया। इस बार चैंकाने जैसा कुछ नहीं है। कंपनियों को पता है कि क्या करना है इसलिए महामारी के दौर में उन्हें पता है कि कैसे काम करना है।
5. विश्व अर्थव्यवस्था वापसी कर रही हैः गत वर्ष विश्व अर्थव्यवस्था में चैतरफा निराशा थी। कोई नहीं जानता था कि टीके और इलाज कब खोजे जा सकेंगे और हालात सामान्य हो सकेंगे। परंतु अब अनिश्चितता कम है और दृष्टिकोण सकारात्मक है। जिन देशों ने कोविड-19 पर विजय हासिल की है उनकी तादाद इतनी है कि वे भारतीय वस्तुओं सेवाओं के निर्यातकों के लिए मददगार साबित हों।
देश के नीति निर्माताओं को व्यापारिक गतिरोध समाप्त करने चाहिए ताकि निर्यात से उत्पन्न मांग के बल पर वृद्धि हासिल की जा सके।
ऐसे में अर्थव्यवस्था का परिदृश्य यही है कि निर्यात के दम पर मजबूत वृद्धि हासिल की जाए। घर से काम की व्यवस्था के कारण कई कंपनियों की उत्पादकता में मजबूती आई है और कई प्रकार के श्रमों का मूल्य आकर्षक हुआ है। यह वक्त है माहौल के मुताबिक सोच बदलकर कंपनियों को रचनात्मक मजबूती प्रदान करने का।