Editorial February 2021
- फ़रवरी 17, 2021
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Entrepreneurs have the opportunity to prove themselves and produce products matching to international quality.
Government has taken various steps to protect the domestic industry after Covid-19. Several policies had been worked out to break the slowdown in the business by finance ministry. Certainly it helped to recover from the turmoil. Now it is the turn of industrialist to make our product of international standard. If we can do it, it will be a vital asset to the nation. It is very natural that quality is deteriorated when there is no competition from abroad, because customer has no choice but to purchase the indigenous products available in the market. And it leads for imports legally or otherwise.
Various political and economic reforms have been taken in the second term of Narendra Modi. Additional Taxes have been levied on imports to protect national businesses. P L I and labour law reforms are among them. To save domestic businesses from international competition, India stayed away from Regional comprehensive economic partnership last year.
This is not just a myth that, whenever competition is absent, quality deteriorates, as the customer has no choice. Normally, industrialist should provide better quality, in the situation. Because they get an extra chances of exposure to export along with the home market. But the dark side is that in absence of competition, the gap between demand and supply increases. Prices are subject to increase due to monopoly, without any guarantee of quality. Naturally impacting the fairness.
Plywood and panel, manufactured in India, is sold solely in domestic market. We have not been able to export till now. We couldn’t comply with the international standard .e.g. Low formaldehyde emission. Plywood industry is not agressive properly and consistently in research and development of the products, to grab the opportunity to export.
सुरेश बाहेती
9050800888
विनिर्माण उद्योगपतियों के पास मौका है, खुद को साबित कर अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता के उत्पाद तैयार करने का
कोविड-19 के बाद जिस तरह से घरेलू उद्योग के संरक्षण के लिए सरकार कदम उठा रही है, इससे उद्योगपतियों के पास मौका है। महामारी के बाद देश के उद्योग में आयी सुस्ती को तोड़ने के लिए कई तरह के नीतिगत सुधारों पर काम किया गया है। जिससे निश्चित ही उद्योग को लाभ भी मिला है। लेकिन इसके साथ ही यह मौका भी है कि देश के उद्योगपति अब अपने उत्पाद की गुणवत्ता का पैमाना अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाएं। यदि ऐसा होता है तो यह देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। क्योंकि अक्सर देखने में यह आता है कि जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंपीटिशन नहीं रहता, तो गुणवत्ता से समझौता कर लिया जाता है। जो उचित नहीं है।
किसी भी चीज का यदि आयात बंद होता है, तो कस्टमर के सामने सिर्फ एक ही विकल्प बचता है कि वह देश में निर्मित सामान ही खरीदे। तब यदि उसे वह गुणवत्ता नहीं मिलती, जिसकी वह चाह कर रहा है, तो इससे देश के उत्पादों के प्रति आम खरीददार की रूचि कम हो जाती है और जायज-नाजायज तरीकों से इन वस्तुओं का आयात होने लग जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में एक के बाद एक नीतिगत सुधारों की घोषणाएं की गई हैं। देश के उद्योगपतियों के हितों की रक्षा के लिए आयात होने वाले कई उत्पादों पर अतिरिक्त कर का प्रावधान किया गया है। श्रम कानूनों में बदलाव और हाल में विभिन्न क्षेत्रों के लिए उत्पादन से संबंद्ध प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) भी इसमें शामिल हैं। घरेलू उद्योगपतियों को अंतरराष्ट्रीय कंपीटिशन से बचाने के लिए पिछले वर्ष क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) से अलग रहने की घोषणा भी की गई थी।
कंपीटिशन खत्म होने से गुणवत्ता प्रभावित होती है। यह संश्य इसलिए पैदा हो रहा है कि जब भी कंपीटिशन खत्म होती है तो इस स्थिति में गुणवत्ता से समझौता हो ही जाता है। जबकि होना तो यह चाहिए कि देश के उद्योगपति तब और ज्यादा गुणवत्ता पर ध्यान दें। क्योंकि तब उनके पास दोहरा मौका होता है। एक तो उनके पास अपने देश का स्थापित बाजार होता है, दूसरा वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बाजार का विस्तार कर सकते हैं।
लेकिन जब भी उद्योग में कंपीटिशन नहीं रहता, तब मांग और आपूर्ति में असंतुलन होता है। उत्पादों की कीमत तो बढ़ जाती है, लेकिन गुणवत्ता कम हो जाती है। जिससे ग्राहकों को नुकसान होता है। भारतीय प्लाई और पेनल मुख्यतया अभी तक सिर्फ घरेूल बाजार में ही बिकता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी पहचान नहीं हो पाई है। इसका कारण है अंतरराष्ट्रीय मानकों में खरा नहीं उतरना। जैसे कि लो फोर्मलडीहाइड एमीसन। दुखद बात है कि भारतीय प्लाई उद्योगपति गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अनुसंधान और विकास पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर रहे हैं। जिस से कि निर्यात वृद्धि की संभावना बढ़ायी जा सके।
सुरेश बाहेती
9050800888