बिजली की मांग आधारित कीमतें और चुनौतियां
- अक्टूबर 9, 2023
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किसी आदर्श बाजार में वस्तुओं या सेवाओं की कीमतें मांग और आपूर्ति द्वारा निर्धारित की जाती हैं। मांग और आपूर्ति दोनों में बदलाव आता रहता है और इसके साथ ही कीमतें भी बदलती हैं। उदाहरण के तौर पर छुट्टियों के मौसम में मांग बढ़ने से विमानों के किराये में हुई बढ़ोतरी।
इसी तरह बिजली की उपलब्धता और उसकी कीमतों के लिए भी ऐसी परिस्थितियाँ बन रही हैं। विशेषज्ञ इसे परिवर्तनशील खुदरा मूल्य निर्धारण या ‘टाइम-ऑफ-डे’ (टीओडी) शुल्क कहते हैं। टीओडी शुल्क को वैश्विक स्तर पर मांग के प्रबंधन उपकरण के रूप में मान्यता दी जाती है जिसके तहत उपभोक्ताओं को प्रोत्साहन दिया जाता है ताकि उनकी मांग को अधिक मांग वाले सीजन के समय से कम मांग वाले सीजन के दौरान स्थानांतरित किया जा सके और इससे तंत्र पर अधिक मांग के भार कारक में भी सुधार होता है।
दुनिया भर के कई देशों ने टीओडी शुल्क लागू किए हैं। इनमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन और स्वीडन जैसे देश शामिल हैं।
भारत सरकार ने हाल ही में दो महत्त्वपूर्ण बदलाव करते हुए बिजली (उपभोक्ताओं के अधिकार) नियम, 2020 में संशोधन पारित कराया है।
अब टीओडी शुल्क, 1 अप्रैल, 2024 से 10 किलोवॉट और उससे अधिक की अधिकतम मांग वाले वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं पर लागू होगा और 1 अप्रैल, 2025 से कृषि उपभोक्ताओं को छोड़कर अन्य सभी उपभोक्ताओं पर लागू होगा।
राज्य विद्युत नियामक आयोगों द्वारा तय किए गए ‘सौर घंटे’ (एक दिन में आठ घंटे की अवधि) के दौरान शुल्क सामान्य से 10 से 20 प्रतिशत कम होगा, जबकि अधिक मांग के घंटों के दौरान शुल्क सामान्य से 10 से 20 प्रतिशत अधिक होगा। कई राज्य विद्युत नियामक आयोगों ने पहले ही बड़ी वाणिज्यिक और औद्योगिक श्रेणियों के लिए टीओडी व्यवस्था लागू कर दी है।
स्मार्ट मीटर हर 15 मिनट में बिजली वितरण कंपनियों को खपत की जानकारी भेजता है जो टीओडी शुल्क की गणना के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।
टीओडी से स्पष्ट रूप से उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव आने की उम्मीद है क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग, वॉशिंग मशीन और कूलिंग जैसे ऐप्लिकेशन के उपयोग को कम मांग वाले घंटे में स्थानांतरित किया जा सकता है।
उपभोक्ताओं को अलग-अलग समय अवधि के दौरान अपने बिजली के उपयोग पर निगाह रखने के साथ ही अपने उपयोग का प्रबंधन करने की आवश्यकता हो सकती है, जो अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सभी उपभोक्ता इस तरह के बदलावों के अनुरूप खुद को ढालने के लिए तैयार या सक्षम नहीं हो सकते हैं। यदि उपभोक्ता अपने उपयोग को कम मांग वाले समय में स्थानांतरित करने में असमर्थ हैं, तो उन्हें अधिक मांग वाले समय के दौरान अधिक कीमतों का भुगतान करना पड़ सकता है।
यह योजना प्रभावी तरीके से उन उपभोक्ताओं को पुरस्कृत करती है जो अलग-अलग समय की दरों के हिसाब से अपनी ऊर्जा खपत में बदलाव लाने के इच्छुक या समर्थ हैं।