
वैश्विक व्यापार का नायक या खलनायक
- मई 10, 2025
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अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के शुल्क के तीर वैश्विक व्यापार व्यवस्था को तगड़ो चोट पहुंचाते लग रहे हैं। ये उपाय 2016 में ट्रंप के पहले कार्यकाल से शुरू किए गए कदमों से अधिक सख्त हैं मगर उन्हें अंजाम पर पहुंचाते भी दिख रहे हैं।
वैश्विक व्यापार व्यवस्था को तहस-नहस करने का इल्जाम अमेरिका पर ही थोप देना आसान है। मगर यह कहानी का केवल एक हिस्सा है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के दौर में अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बुनियादी खामी यह समझना कि लागत, सब्सिडी और संरक्षण पारदर्शी होते हैं। दुर्भाग्य से दुनिया की सबसे बड़ी व्यापारिक शक्ति इस कसौटी पर खरी नहीं उतरती। अगर चीन इस धारणा को झूठलाता है तो पूरी व्यापार प्रणाली ही झूठ पर टिकी है।
चीनी परिवार उतना खर्च नहीं कर सकते, जितना करना चाहे और अपनी बचत पर उन्हें रिटर्न भी बहुत कम मिलता है। इसीलिए वहां परिवार की खपत और संपत्ति सामान्य अर्थव्यवस्था के मुकाबले बहुत कम है।
चीनी अर्थव्यवस्था में राजनीति से उपजे इस असंतुलन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी बिगाड़ दिया है। बिजली, जमीन और पूंजी को गुपचुप सब्सिडी मिलने के कारण चीनी विनिर्माण से होड़ करना अधिक पारदर्शी अर्थव्यवस्थाओं के लिए बहुत मुश्किल हो गया है।
अनुमानों के मुताबित प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में उद्योगों को सबसे सस्ती बिजली चीन में ही मिलती है। भारत में औद्योगिक बिजली के मुकाबले वहां बिजली के दाम 60 फीसदी हैं। और जर्मनी के मुकाबले तो एक चौथाई ही हैं। चीन ने इलेक्ट्रिक कार, बैटरी और सोलर पैनल जैसे निर्यातोन्मुखी क्षेत्रों के लिए कर सब्सिडी बढ़ाई है और अब भी बढ़ा रहा है। चीन के व्यापारिक साझेदार डब्ल्यूटीओ व्यवस्था में इसका हल पा भी नहीं सकते।
चीन की भारी विनिर्माण क्षमता गरीब देशों के उद्योगों को निगलने लगेगी।
इन देशों को इस समय चीन की जगह लेने लायक होना चाहिए क्योंकि चीन में वेतन और दूसरे खर्च देश की संपत्ति के साथ बढ़ने चाहिए थे और उसकी होड़ करने की ताकत घटनी चाहिए थी। उसकी जगह ये देश और पिछड़ रहे हैं। ये देश चीन की जगह तो नहीं ले रहे, चीन ही उनका विकल्प बन रहा है। वैश्विक आर्थिक इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ।
अधिकतर देश चीन की अत्यधिक क्षमता से होने वाले नुकसान की काट खोजने में नाकाम रहे हैं। भारत भी ‘गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों‘ के जरिये लाइसेंसराज की तरफ लौट रहा है। इन आदेशों से चीनी सामान पर सीधा निशाना नहीं साधा जा सकता, इसलिए देसी व्यापारियों और विदेशी निवेशकों को चोट पहुंच रही है।
हमें समस्या को सही तरीके से पहचानना होगा और उसकी जड़ यानी चीन की देसी नीतियों से निपटना होगा।