How much government intervention

इत्र, छाता, खिलौने, नकली गहने, सौर उपकरण, मोबाइल फोन जैसी कई वस्तुओं ने पिछले 10 वर्षों के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान का ध्यान आकृष्ट किया है।

2016 से हुए कई घटनाक्रम हैं, जो अलग-अलग प्रभाव छोड़ गए हैं या देश में कारोबारी माहौल को प्रभावित कर रहे हैं। इनमें नोटबंदी, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का क्रियान्वयन, फास्टर एडॉप्शन ऐंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इन इंडिया के दो संस्करण (फेम-1 एवं फेम-2), उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन योजना और अब लैपटॉप एवं नोटबुक आयात के लिए लाइसेंस की शर्त एवं सेमीकंडक्टर के विनिर्माण के लिए सरकार की ओर से मोटी सब्सिडी शामिल हैं।

भारतीय आर्थिक सुधार का मुख्य लक्ष्य कारोबार एवं उद्योग जगत में सरकार की भूमिका एवं इसका हस्तक्षेप कम करना था। वर्ष 2018 से भारत में सीमा शुल्क हरेक केंद्रीय बजट में बढ़ता रहा है और इसका नतीजा यह हुआ है कि भारत दुनिया में सर्वाधिक संरक्षणवादी देशों की सूची में शामिल हो गया है। भारत शुल्क लगाने के मोर्चे पर सूडान, मिस्र और वेनेजुएला जैसे देशों को भी पीछे छोड़ चुका है। लेकिन क्या इससे भारतीय उद्योग खुश हुआ है?

जुलाई 2023 में इंडियन सेल्युलर इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीईए) ने शिकायत दर्ज कराई कि दूसरे प्रतिस्पर्द्धी देशों की तुलना में भारत में इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद सामग्री पर सबसे अधिक शुल्क लगाए जा रहे हैं। उसने दूसरे देशों की तुलना में भारत की स्थिति मजबूत बनाने के लिए शुल्कों में कटौती के लिए मुहिम भी चलाई।

भारत अमेरिका, यूरोपीय संघ या आसियान जैसे देशों एवं समूहों के साथ लाभकारी एफटीए करने में संघर्ष कर रहा है। भारत केवल उन समझौतों की तलाश में रहा है जिसमें यह अधिक लाभ की स्थिति में रह सकता है। मगर व्यापार से जुड़े सफल समझौते करने के लिए कुछ हासिल करने के लिए अपनी तरफ से कुछ देना भी पड़ता है।

तीन दशकों तक शुल्कों में लगातार कमी करने के बाद अगर सरकार यह सोचती है कि उसके उद्योगों को संरक्षण की जरूरत है तो यह विस्मित करने वाली बात है। भारत गैर-कृषि उत्पादों पर 1991-92 में 150 प्रतिशत तक शुल्क लगाता था, जो 2007-08 तक कम होकर 10 प्रतिशत रह गया।

सरकार का नजरिया रहा है कि इच्छित लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उसका ध्यान राजकोषीय नीति पर केंद्रित होना चाहिए। ऐसी नीति से शायद कोई हर्ज नहीं है क्योंकि इस लक्ष्य को बढ़ावा देने के लिए सभी बड़े देश किसी न किसी रूप में वित्तीय प्रोत्साहन दे रहे हैं।

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