भारत ने इस बात पर सख्त ऐतराज जताया कि विकसित देश विकासशील व गरीब देशों के बाजार में पैठ बनाने मे लिए छुपे हुए एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं। वह स्थिरता, विकास और लिंग भेद को मिटाने के नाम पर गरीब देशों के बाजार पर अपना कब्जा जमाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। जिसे भारत ने बहुत ही गलत करार दिया है। भारत ने ग्लोबल नॉर्थ की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि, व्यापार, आवाजाही और सेवा के क्षेत्र मे किए गए समझौते की समीक्षा होनी चाहिए।

नई दिल्ली इसलिए चिंतित है, क्योंकि विकासशील देशों से निर्यात होने वाले उत्पाद को लेकर यूरोपीय संघ, अमेरिका और जापान जैसे देशों में कई टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं आती है। इस वजह से विकासशील देशों को निर्यात में दिक्कत आती है।

सेवा और कुशल पेशेवरों की आवाजाही विश्व व्यापार में 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। फिर भी जब डब्ल्यूटीओं में व्यापार को लेकर बातचीत होती है, इस और ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

भारत की जनसंख्या बढ़ रही है, जिसे मानव शक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए। इधर यूरोपीय संघ में जनसंख्या कम हो रही है। वहां काम करने वालों पेशेवरों की कमी हो रही है। फिर भी विकासशील देश से विकसित देश में जाने के जो वीजा नियम है, वह बहुत ही सख्त है। विकसित देश वीजा नियमों में ढील देने के लिए तैयार नहीं है।

एक अधिकारी ने बताया कि, ”ऐसे नियम बनाए जा रहे हैं, जिससे मुक्त व्यापार करने में दिक्कत आ रही है। ”उन्होंने कहा कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) दुनिया भर में एक जैसी नहीं है। विकसित देशों को डर है कि विकासशील देश एमएसएमई उत्पाद से उनके बाजार में पैठ बना सकते हैं।

इसलिए अबू धाबी में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के मसौदे में औद्योगिक नीति, पर्यावरण व महिलाओं की भागीदारी जैसे मुद्दे शामिल किए गए। इसका भारत और कई विकासशील देशों ने विरोध किया है।


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