Internationalization of Indian Rupee

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की अंतरविभागीय समिति ने अन्य देशों में रुपये में लेनदेन को लोकप्रिय बनाने तथा डॉलर पर निर्भरता कम करने और रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के तौर पर प्रोत्साहित करने के लिए अल्पावधि, मध्यम अवधि और दीर्घावधि के उपाय सुझाए हैं।

समिति द्वारा रिपोर्ट में कही गई मुख्य बातेंः

‘किसी भी मुद्रा का अंतरराष्ट्रीय बनना इस बात पर निर्भर है कि उस देश की आर्थिक प्रगति कैसी है और वैश्विक व्यापार में उसकी हैसियत किस तरह की है। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिए पूंजी खाते को उदार बनाना होगा, रुपये के अंतरराष्ट्रीय इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना होगा और वित्तीय बाजारों को मजबूत बनाना होगा।‘

रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए पूंजी खाता परिवर्तनीयता और पूंजी खाता परिवर्तनीयता के लिए रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण शर्त नहीं हैं। परिवर्तनीयता का मौजूदा स्तर रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनाने के लिए काफी है।

2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद लगाए गए प्रतिबंधों के बाद कई देश सतर्क हो गए हैं और सोचने लगे हैं कि यदि पश्चिमी देश उन पर भी इसी तरह के प्रतिबंध लगाते हैं तो उन्हें कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

इस तरह के वैश्विक घटनाक्रम और व्यापार तथा पूंजी प्रवाह के लिहाज से बाकी दुनिया के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था का जुड़ाव बढ़ने से रुपये समेत कई मुद्राओं के अंतरराष्ट्रीय इस्तेमाल के लिए बुनियाद तैयार हो गई है।

‘अंतर-विभागीय समिति को लगता है कि रुपये में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनने की क्षमता हैं क्योंकि भारत सबसे तेज विकास कर रहे देशों में शामिल है और उसने तमाम चुनौतियों के बीच बहुत मजबूती दिखाई हैं।‘

भारत ने पूंजी खाता परिवर्तनीयता, वैश्विक मूल्य श्रृंखला के एकीकरण, गिफ्ट सिटी की स्थापना आदि के मामले में सराहनीय प्रगति की है। विदेशी व्यापार के चालान और निपटान के साथ-साथ पूंजी खाता लेनदेन में रुपये का ज्यादा उपयोग होने से रुपये की अंतरराष्ट्रीय मौजूदगी बढ़ती जाएगी।

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रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से आरबीआई ने भी बैंकों को द्विपक्षीय व्यापार भारतीय मुद्रा में करने की इजाजत दे दी है। श्रीलंका ने हाल ही में जो रुपये को विदेशी मुद्रा के रूप में जो मान्यता दी है, उससे रुपये का अंतरराष्ट्रीय दर्जा और भी पुख्ता होता है।

मुद्रा अंतरराष्ट्रीय बन जाए तो उस देश के निर्यातकों और आयातकों के लिए विदेशी मुद्रा के उतारचढ़ाव का जोखिम काफी कम हो जाता है।

‘व्यापक और अधिक कुशल वित्तीय क्षेत्र से देश के गैर-वित्तीय क्षेत्र को भी फायदा मिल सकता है क्योंकि पूंजी की लागत घटेगी और पूंजी उपलब्ध कराने के इच्छुक वित्तीय संस्थानों की संख्या बढ़ेगी। इससे अर्थव्यवस्था में पूंजी निर्माण बढ़ेगा, वृद्धि तेज होगी और बेरोजगारी कम होगी।‘

मुंद्रा के अंतरराष्ट्रीयकरण से कई चुनौतियां भी आएंगी क्योंकि शुरूआत में इसके विनिमय दर में उतारचढ़ाव बढ़ सकता है।

इससे मौद्रिक नीति पर भी असर पड़ सकता है क्योंकि वैश्विक मांग पूरी करने के लिए मुद्रा मुहैया कराने की मजबूरी देश की मौद्रिक नीतियों के साथ टकरा सकती है।

विदेशी मुद्रा में उतारचढ़ाव का जोखिम कम होने, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों तक बेहतर पहुंच के कारण पूंजी की लागत घटने, विदेशी मुद्रा भंडार की जरूरत कम होने जैसे फायदे मुद्रा के अंतरराष्ट्रीयकरण के नुकसानों पर भारी पड़ते हैं।

अल्पकालिन उपाय के तौर पर समिति ने दो साल के भीतर भारतीय रुपये और स्थानीय मुद्राओं में बिल बनाने, निपटाने तथा भुगतान करने के लिए द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था संबंधी प्रस्ताव जांचने के लिए मानक प्रणाली तैयार करने का सुझाव दिया है।

इसके अलावा भारत के भीतर तथा बाहर रहने वाले प्रवासियों के लिए (विदेशी बैंकों के नोस्ट्रो खातों के अलावा) रुपया खाते खोलने को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

सीमापार लेनदेन के लिए अन्य देशों के साथ भारतीय भुगतान प्रणालियों को एकीकृत करने और वैश्विक स्तर पर पांचों कारोबारी दिन 24 घंटे काम करने वाले भारतीय रुपया बाजार को बढ़ावा देकर वित्तीय बाजारों को मजबूत करने की आवश्यकता है। समिति ने मध्यम अवधि की रणनीति के तहत दो से पांच साल में मसाला बॉन्ड (विदेशों में रुपये मूल्य में जारी होने वाले बॉन्ड) पर लगने वाला 5 फीसदी विदहोल्डिंग टैक्स हटाए जाने की सिफारिश की है। इससे पूंजी की लागत घटेगी।

साथ ही सीमापार व्यापारिक लेनदेन के लिए आरटीजीएस के इस्तेमाल पर विचार किया जा सकता है।

रिपोर्ट ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेष आहरण अधिकार में रुपये को शामिल करना दीर्घकालिक लक्ष्य होगा।

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