Looking for Job Opportunities in the Industry
- सितम्बर 13, 2022
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A large number of job seekers in India are those who seek work in other sectors due to lack of livelihood in the agriculture sector. They do not have the necessary qualifications to work in the service and technical sectors. Such people can be given work only in manufacturing and construction.
Currently, the working population in China is more than that of India, yet there are more than 110 million people employed in manufacturing. This is more than four times more than that of India. Therefore, India will have to work on a war footing to increase employment in manufacturing.
The biggest obstacle in this path is lack of capital, red tape and corruption. To set up an industry, one has to take the risk of raising a large amount of capital. After that, local, regional and central governments, agencies and political interests have to be dealt with. Most of the people in India have less purchasing power, so for the development of manufacturing, a policy that encourages exports like China is necessary.
Another option is to promote industries like textile industry, leather industry and cottage industry, in which capital is less and more people get employment. By adopting this strategy, Bangladesh and Vietnam have beaten India in terms of exports.
Some people argue that India’s domestic market is very large. So it does not need to depend on exports like Bangladesh and Vietnam, but the problem is, where is India able to manufacture goods for its domestic market as well? The smallest items of homes and businesses are coming from China, because China manufactures them on a large scale and is selling them at a lower cost than manufacturers in India.
That is why even small factories will not work. Large factories would have to be set up to manufacture large quantities of everyday items at the same or lower cost as China.
The biggest problem is the education system. Barring practical and vocational education, India’s general education system keeps children away from manual labour, occupation and business. After reading, they cannot think of doing anything other than a chair job.
This is the result of the increasing fight for government and lifelong jobs. There is a need to understand the possibilities that can open in simple and detail.
उद्योग में रोजगार की संभावनाओं की तलाश
भारत में रोजगार तलाशने वालों की बड़ी संख्या उन लोगों की है जो कृषि क्षेत्र में गुजारा न चल पाने के कारण दूसरे क्षेत्रों में काम तलाशते हैं। उनके पास सेवा और तकनीकी क्षेत्रों में काम करने के लिए आवश्यक योग्यता नहीं होती। ऐसे लोगो को मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन में ही काम दिलाया जा सकता है।
चीन में फिलहाल कामकाजी आबादी भारत से काफी काम है, फिर भी वहां मैन्युफैक्चरिंग में 11 करोड़ से ज्यादा लोग कार्यरत है. यह भारत की तुलना में करीब चार गुने से भी अधिक है। इसलिए भारत को मैन्युफैक्चरिंग में रोजगार बढ़ाने के लिए युद्धस्तर पर काम करना होगा।
इस मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट पूंजी का अभाव, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार है। उद्योग लगाने के लिए बड़ी मात्रा में पूंजी जुटाने का जोखिम उठाना पड़ता है। उसके बाद स्थानीय, प्रादेशिक और केंद्रीय सरकारों, एजेंसियो और राजनीतिक हितों से जूझना पड़ता है। भारत में अधिकांश लोगो की क्रयशक्ति कम है इसलिए मैन्युफैक्चरिंग के विकास के लिए चीन की तरह निर्यात को प्रोत्साहन देने वाली नीति आवश्यक है।
इसका दूसरा विकल्प है वस्त्र उद्योग, चमड़ा उद्योग और कुटीर उद्योग जैसे उद्योगों को बढ़ावा देना, जिनमे पूंजी कम लगती है और ज्यादा लोगो को रोजगार मिलता है। बांग्लादेश और वियतनाम ने यही रणनीति अपनाकर निर्यात के मामले में भारत से बाजी मार ली है।
कुछ लोगो का तर्क है कि भारत का घरेलु बाजार काफी बड़ा है। इसलिए उसे बांग्लादेश और वियतनाम की तरह निर्यात पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है, लेकिन समस्या यह है कि भारत अपने घरेलु बाजार के लिए भी माल कहां बना पा रहा है? घरों और कारोबारों की छोटी से छोटी चीज़े चीन से आ रही है, क्योंकि चीन उनका बड़े पैमाने पर निर्माण करता है और भारत के निर्माताओं से कम लागत पर बेच रहा है।
इसलिए छोटे-छोटे कारखानों से भी काम नहीं चलेगा। बड़ी मात्रा में काम आने वाली रोजमर्रा की चीज़ो का चीन जितनी या कम लागत पर निर्माण करने के लिए बड़े कारखाने लगाने पड़ेंगे।
सबसे बड़ी समस्या शिक्षा प्रणाली की है। प्रायोगिक और पेशेवर शिक्षा को छोड़ दें तो भारत की सामान्य शिक्षा प्रणाली बच्चों को शारीरिक श्रम, काम-धंधे और कारोबार से दूर करती है। पढ़ लिखकर वे कुर्सी वाली नौकरी के सिवा कुछ करने का नहीं सोच पाते।
सरकारी और आजीवन चलने वाली नौकरियों के लिए बढ़ रही मारामारी इसी का नतीजा है। खुल सकने वाली संभावनाओं को सरलता और विस्तार से समझने की जरूरत है।