कॉरपोरेट कर्मचारियों द्वारा अधिक स्थान और एकान्त की तलाश के कारण वन BHK की बढ़ती मांग के कारण को-लिविंग प्रॉपर्टी ऑपरेटर भी इसकी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं।

कोविड से पहले ज़्यादातर लोग डबल ऑक्यूपेंसी पसंद करते थे, जो कोविड के बाद सिंगल ऑक्यूपेंसी में बदल गए और अब वन ठभ्ज्ञ (बेडरूम, हॉल और किचन) में चले गए हैं, जहाँ किचन भी दूसरों के साथ साझा नहीं किया जाता है।

जबकि आम सुविधाएँ साझा की जाती हैं, वन BHK इकाइयाँ अधिक एकान्त और आराम प्रदान करती हैं। इस प्रवृत्ति के और भी बढ़ने की उम्मीद है। वास्तव में, कई को-लिविंग ऑपरेटर अब केवल उन संपत्तियों पर ध्यान केंद्रित कर रहें हैं जो सिंगल ऑक्यूपेंसी रूम या वन BHK इकाइयाँ प्रदान करती हैं। यह बदलाव जीवनशैली वरीयताओं में व्यापक बदलाव को दर्शाता है, क्योंकि अब और अधिक लोग साथ-रहने के सामाजिक और सामुदायिक पहलुओं के साथ निजी स्थानों की सुविधा और आराम चाहते हैं।

ऑपरेटरों ने कहा कि रहने वालों की ये माँग एक स्पष्ट संकेतक है कि एक बेहद मूल्य संवेदनशील उद्योग में सुविधा ने कीमत को पछाड़ना शुरू कर दिया है, जो बहुत अच्छा है क्योंकि इससे गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति बढ़ेगी।

बेंगलुरु, गुरुग्राम, हैदराबाद और चेन्नई जैसे मेट्रो शहरों में, संलग्न रसोई के साथ सुसज्जित और प्रबंधित कमरों की मांग काफी अधिक है, और ये विकल्प दूसरों की तुलना में बहुत तेजी से भर जाते हैं।

देश भर में को-लिविंग सेगमेंट में मांग और आपूर्ति में काफी वृद्धि हो रही है। कई पारंपरिक संपत्ति मालिक, जो पहले हॉस्टल और लॉज चलाते थे, अब अपनी सुविधाओं और डिजाइनों को अपग्रेड कर रहे हैं, और अपनी संपत्तियों को आधुनिक को-लिविंग स्पेस में परिवर्तित कर रहे हैं।

छात्रों और पेशेवरों दोनों विभिन्न सुविधाओं की पेशकश करने वाली को-लिविंग संपत्तियों में रहना पसंद करते हैं। उनमें से कई को छोटी रसोई के साथ अलग कमरे पसंद हैं।

जेएलएल इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में को-लिविंग बाजार अगले पांच वर्षों में 17 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़कर लगभग $40 बिलियन (लगभग Rs 3.3 लाख करोड़) होने की उम्मीद है।


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