निवेश में निजी क्षेत्र की हिचकिचाहट का कारण वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता हो सकती हैं। उतार-चढ़ाव भरे बाजार की स्थितियों और धीमी खपत के बीच निवेश रणनीतियों को लेकर सावधानी बरती जानी भी चाहिए।

वर्तमान मांग उतनी मज़बूत नहीं है जितनी होनी चाहिए, और न ही निकट भविष्य में मज़बूत मांग की उम्मीद है। यह पहेली निवेश में विश्वास को सीमित करती है। 

इसलिए उद्योग अभी जोखिम लेने में असमंजस की स्थिति है। उद्योगपति भी निवेश के लिए कर्ज लेने से बचते हुए अपने जोखिम को इक्विटी या मूल पुंजी तक सीमित रखना पसंद करते हैं।

हालांकि, सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे के विकास पर निरंतर निवेश हो रहा है। विनिर्माण और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों जैसे क्षेत्रों में निजी निवेश के लिए प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। निजी क्षेत्र से अधिक मज़बूत भागीदारी को प्रोत्साहित करने के प्रयास हो रहे हैं। इन प्रयासों से धीरे-धीरे विश्वास बढ़ने और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

विदेशी निवेशक और भारतीय व्यापार जगत अक्सर भारत में विनियामक स्थिरता, बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता और व्यापार करने में आसानी के बारे में चिंता व्यक्त करते हैं।

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इससे एक आम धारणा बनी हुई है कि भारत के विनिर्माण क्षेत्र में वियतनाम और ताइवान सेंध लगा सकते हैं। लेकिन वस्तु स्थिति इससे अलग है। भारत उद्योगों में लोकतंत्रीकरण दृष्टिकोण रखता है। भारत में उद्योग व स्टार्टअप केवल मेट्रो शहरों में नहीं बल्कि टियर-टू और टियर-थ्री शहरों से भी उभर रहे हैं।

उद्यमिता को सशक्त बनाने, डिजिटल और भौतिक बुनियादी ढांचे में निवेश करने और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन जैसी योजनाओं के माध्यम से विनिर्माण को प्रोत्साहित करने की सरकार की पहल का उद्देश्य भारत की प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त को मजबूत करना है।

नीतिगत सुधारों, कौशल विकास और नवाचार और प्रौद्योगिकी में निवेश पर निरंतर ध्यान केंद्रित करना वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण होगा।


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