PSBs had ‘worst phase’
- नवम्बर 26, 2019
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PSBs had ‘worst phase’ under Manmohan Singh & Rajan
FM Nirmala Sitharaman
India’s public sector banks PSBs) had the “worst phase” under the “combination” of former prime minister Manmohan Singh and Reserve Bank of India (RBI) ex-governor Raghuram Rajan, and that giving the ailing banks a “lifeline” was her primary duty now, Finance Minister Nirmala Sitharaman said.
PSBs have been grappling with bad loans, and the government has been taking measures to address the issue. In August, the government announced an upfront capital infusion to the tune of R70,000 crore into PSBs. Besides, 10 state-owned banks are being consolidated into four.
Delivering a lecture at the prestigious Columbia University’s School of International and Public Affairs recently, Sitharaman said: “While economists can take a view of what prevails today or prevailed years ago, I will also want answers for the time when Rajan was in the governor’s post, speaking about Indian banks, for which today to give a lifeline is the primary duty of the finance minister of India. And the lifeline-kind of an emergency has not come overnight.”
“I do respect Raghuram Rajan as a great scholar who chose to be in the central bank in India at a time when the Indian economy was all buoyant,” she added.
Asked about Rajan’s comments during a recent lecture at Brown University in which he had apparently mentioned that in its first term, the Narendra Modi government had not done better on the economy because the government was extremely centralised and the leadership did not appear to have a consistent articulated vision on how to achieve economic growth, the minister instead said there were major issues with bank loans during Rajan’s tenure as central bank head.
It was in Rajan’s time as governor of the RBI “that loans were given just based on phone calls from crony leaders and PSBs in India till today are depending on the government’s equity infusion to get out of that mire”, she said.
“Dr Singh was the Prime Minister and I’m sure Dr Rajan will agree that Dr Singh would have had a ‘consistent articulated vision’ for India,” she said amid laughter from the audience.
“With due respect, I’m not making fun of anybody but I certainly want to put this forward for a comment which has come like this. I have no reason to doubt that Rajan feels for every word of what he is saying. And I’m here today, giving him his due respect, but also placing the fact before you that Indian public sector banks did not have a worst phase than when the combination of Singh and Rajan, as Prime Minister and the governor of the Reserve Bank, had. At that time, none of us knew about it,” she said.
Sitharaman said while she was grateful that Rajan did an asset quality review, people should know what made the banks ailing today.
According to the RBI’s provisional data in June on global operations, gross non-performing assets (NPAs) of PSBs have declined by R89,189 crore from the peak of R8.95 trillion in March 2018 to R8.06 trillion in March 2019.
“I respect Dr Manmohan Singh for telling me not to do the blame game. But recalling when and what went wrong during a certain period is absolutely necessary to put it in context, now that I’m being charged that there’s no narrative at all about the economy,” Nirmala Sitharaman said.
मनमोहन-राजन का दौर
बैंकों का सबसे बुरा दौर
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बुरी हालत के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के दौर को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह और राजन का कार्यकाल सरकारी बैंकों के लिए ‘सबसे बुरा दौर’ था। सीतारमण ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के स्कूल आॅफ इंटरनैशनल ऐंड पब्लिक अफेयर्स में एक व्याख्यान में कहा कि सभी सार्वजनिक बैंकों को ‘नया जीवन’ देना आज मेरा पहला कर्तव्य है। वित्त मंत्री ने कहा, ‘मैं रघुराम राजन का एक महान विद्वान के रूप में सम्मान करती हूं। उन्हें इस समय केंद्रीय बैंक में लिया गया, जब भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी के दौर में थी।’
मोदी सरकार पर राजन की टिप्पणी के बारे में सीतारमण ने कहा कि बैंक ऋण से जुड़ी काफी दिक्कतें राजन के दौर में हुईं। राजन ने हाल ही में ब्राउन यूनिवर्सिटी में एक व्याख्यान में मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अच्छा प्रदशर्न नहीं किया। इसकी वजह किसी भी फैसले के लिए नेतृत्व पर बहुत ज्यादा निर्भरता थी। साथ ही नेतृत्व के पास आर्थिक वृद्धि हासिल करने के लिए निरंतर, तार्किक दृष्टिकोण नहीं था।
वित्त मंत्री ने कहा, ‘रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में वह राजन का ही कार्यकाल था जब सागगांठ करने वाले नेताओं के फोन भर से कर्ज दिया गया। इस मुश्किल से बाहर निकलने के लिए बैंक आज तक सरकारी पूंजी पर निर्भर हैं।’
उन्होंने कहा, ‘मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और मुझे भरोसा है कि राजन इस बात से सहमत होंगे कि सिंह भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर निरंतर स्पष्ट दृष्टिकोण रखते थे।’
सीतारमण ने कहा, ‘मैं यहां किसी का मजाक नहीं बना रही हूं लेकिन उनकी तरफ से आए बयान पर प्रतिक्रिया देना चाहती थी। मुझे यकीन है कि राजन जो भी कहते हैं उसे सोच समझकर कहते हैं। लेकिन मैं स्पष्ट करना चाहती हूं कि भारत के सार्वजनिक बैंक आज उतने बुरे दौर से नहीं गुजर रहे हैं जितने मनमोहन सिंह और राजन के दौर में गुजर रहे थे।’
वित्त मंत्री ने कहा, ‘ मैं आभारी हूं कि राजन ने परिसंपत्ति की गुणवत्ता की समीक्षा की, लेकिन माफ कीजिए, क्या हम सब मिलकर यह पूछ सकते हैं कि आज हमारे बैंकों को परेशानी क्या है? और यह परेशानी उन्हें कहां से मिली है?’ इस कार्यक्रम में नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पानगड़िया, जाने-माने अर्थशास्त्री जगदीश भगवती और न्यूयाॅर्क में भारत के महावाणिज्य दूत संदीप चक्रवर्ती ने भी शिरकत की।सीतारमण ने कहा, जिन लोगों को लगता है कि देश का नेतृत्व केंद्रीकृत हो गया है, उन्हें मैं बताना चाहूंगी कि एक बेहद ही डेमोक्रेटिक नेतृत्व के तले देश में बहुत बड़े स्तर पर भ्रश्टाचार किया था। आखिरकार प्रधानमंत्री किसी भी कैबिनेट में सबसे अहम व्यक्ति होता है। भारत जैसे अनेकताओं वाले देश के पास प्रभावी नेतृत्व होना चाहिए। जरूरत से ज्यादा डेमोक्रेटिक नेतृत्व को भले ही लिबरल्स का साथ मिल हो, लेकिन उसने भ्रष्टाचार की ऐसी गंदगी फैलाई है, जिसे मौजूदा सरकार अब तक साफ कर रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार जल्द ही स्थिति पर नियंत्रण हासिल कर लेगी।
भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद बेहद मजबूतः केवी सुब्रमणियन
मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमणियन ने अर्थव्यवस्था की बुनियाद को बहुत ज्यादा मजबूत बताते हुए उद्योगों से निवेश शुरू करने की अपील की। छोटी कंपनियों के 40,000 करोड़ रुपए से अधिक के बकाये पर, सुब्रमणियन ने बड़ी कंपनियों से कहा है कि वह एमएसएमई क्षेत्र को उनके बकाये का समय से भुगतान करना सुनिश्चित करें, क्योंकि छोटी कंपनियां उनसे मिलने वाली नकदी पर ही निर्भर है। उद्योग मंडल फिक्की की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि छोटी कंपनियों का बकाया चुकाने में बड़ी कंपनियां को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।