भारत आज दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। और इसी दशक में वह तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति भी बन सकता है। लेकिन इस आर्थिक ताकत का प्रभाव तब तक नजर नहीं आएगा, जब तक कि हम वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ अपनी आर्थिक संबद्धता नहीं बढ़ाते। हमारा लक्ष्य होना चाहिए देश के विदेश व्यापार में इजाफा हो, ताकि हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी कारोबारी ताकत बन सकें।

भारत की वैश्विक आर्थिक छाप बहुत तगड़ी नहीं है। दुनिया के निर्यात में अभी भारत की हिस्सेदारी 1.8 फीसदी है और वह 18वें स्थान पर है। वैश्विक आयात में हम 2.8 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ दुनिया में नौवें स्थान पर हैं। अगर भारत को वैश्विक कारोबारी शक्ति बनना है तो उसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का हिस्सा बनना होगा।

उच्च सीमा शुल्क वाली व्यवस्था इन आपूर्ति श्रृंखलाओं में भागीदारी की राह में बाधा है। वर्ष 2014-15 में जहां उच्च आयात शुल्क की शुरुआत हुई वहीं असली बदलाव 2018-19 में आया जब सभी शुल्कों में 42.3 फीसदी का इजाफा हुआ। सीमा शुल्क भी औसतन 13.7 फीसदी से बढ़कर 17.7 फीसदी हो गया।

यह उदारीकरण से संरक्षणवाद की ओर स्पष्ट बदलाव है। अगर भारत को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बनना है तो उसे इस स्थिति को पलटना होगा।

घरेलू मूल्यवर्धन अधिक ढांचागत सुधारों पर केंद्रित होना चाहिए। मसलन अधोसंरचना में सुधार, नियामकीय और नीतिगत सुधार तथा तकनीकी नवाचार। दुनिया में किसी भी देश ने बिना जीवंत विनिर्माण के अहम आर्थिक प्रगति नहीं की है।

भारत जैसे देश में जहां आबादी अधिक है और तेजी से बढ़ रही है तथा जहां युवा बहुत हैं, वहां श्रम आधारित विनिर्माण पर जोर दिया जाना चाहिए। औद्योगीकरण के आरंभिक दौर में असंगठित क्षेत्र छोटे और मझोले उपक्रम ही रोजगार का प्रमुख साधन रहेंगे। अब जबकि आधुनिक और पूंजी आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

औपचारिक अर्थव्यवस्था के विस्तार की कोशिशों के बावजूद देश की 50 फीसदी आर्थिक गतिविधियां अनौपचारिक क्षेत्र में हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश का 80 फीसदी से अधिक गैर कृषि रोजगार अनौपचारिक क्षेत्र में है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को खारिज करने के बजाय उसे जीवंत वृद्धि और रोजगार का संभावित स्रोत मानना चाहिए। इसे आधुनिक होती अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल नहीं माना जाना चाहिए। बल्कि इसे अनुकुल बनाने के अवसर और उपाय तलाशे जाने चाहिए।

अवसर है कि आर्थिक मोर्चे पर नए विचार सामने रखे जाएं, पुराने अनुमानों पर सवाल खड़े करे और नए रवैयों की पड़ताल करे। सरकारी तंत्र से आगे बढ़कर व्यापक नागरिक समाज तक यह बहस होनी चाहिए। आज हम जो दिशा तय करेंगे वही आने वाले समय में देश के भाग्य का निर्धारण करेगी।


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