लकड़ी के प्रोत्साहन और संरक्षण के लिए सीजनिंग आवश्यक - नवल केड़िया
- सितम्बर 9, 2023
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सीजनिंग क्या है?
सीजनिंग चेम्बर में ताप देकर लकड़ी के अंदर सामान्यतया पाई जाने वाली अतिरिक्त नमी को स्वस्थ काम चलाऊ स्थिति में लाने का एकमात्र तरिका सीजनिंग ही है। जहां सुखने के बाद लकड़ी से सिकुड़ने और फैलने का दोश स्वतः समाप्त हो जाता है। इसके अलावा पेड़ के अंदर रहने वाले सुक्ष्म जीवाणु भी सीजनिंग के दौरान समाप्त हो जाते है, अन्यथा समय पाकर फिर से उनके जीवित होने का खतरा रहता है।
भारत में अभी सीजनिंग की क्या स्थिति है?
अभी तक सामान्य कार्यप्रणाली यह है कि कच्ची लकड़ी को चिर कर सीधे ग्राहक को दे देते हैं। और ग्राहक भी इसे खरीद कर सीधे इस्तेमाल कर लेते हैं। इसमें बाद में कई दिक्कतें आ जाती है, जिससे लकड़ी का नाम खराब हो रहा है। ग्राहक को तो यह पता ही नहीं होता है कि लकड़ी का नमी युक्त होना दिक्कत की असल वजह थी। इस वजह से समाज में लकड़ी के प्रति बेरूखी बढ़ती जा रही है। इसके बाबजुद भी अभी तक सीजनिग की ओर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है। वास्तव में जब लकड़ी को सीजन किए बगैर जब चौखट पल्ले या फर्नीचर बना दिया जाता है तो उनमें देर सबेर दिक्कत आ ही जाती है। यदि लकड़ी का उत्पाद उम्दा स्तर का चाहिए, तो सीजनिंग जरूर करनी होगी। लकड़ी का उत्पाद तैयार करने पर मेहनत, वक्त और पैसा लगता है। यदि वह लकड़ी ही खराब है तो फिर उत्पाद का क्या हश्र्र होगा? फिर लकड़ी पर भरोसा कौन करेगा? कैसे करेगा? यह बड़ा सवाल है।
क्या इसका असर लकड़ी के बाजार पर पड़ रहा है?
लकड़ी प्राकृतिक रूप से पैदा होती है लेकिन हम लकड़ी का प्रयोग सही तरह से करना नहीं जानते हैं। हमारे पास कृषि वाणिकी में पर्याप्त लकaड़ी है, अब धीरे-धीरे लकड़ी की जगह स्टील WPC आदि का प्रयोग बढ़ने लगा हैं। जनता को डर लगा रहता है कि लकड़ी खराब हो जाएगी जिसकी जिम्मेवारी कोई नहीं लेता हैं। इससे दो नुकसान हो रहे हैं। एक तो यह है कि लकड़ी के बाजार पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। दूसरा स्टील से परोक्ष रूप में पर्यावरण को नुकसान होता है। लकड़ी अगर उपयोग में आएगी तो वृक्ष भी अधिक लगेंगे, जिससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। लेकिन आम आदमी में लकड़ी के प्रति विश्वास पैदा करना है तो हर हालत में लकड़ी की सिजनिग करनी होगी। सिजनिग के बाद यदि लकड़ी को ट्रीटमेंट (कीटनाशक मुक्त करने) की प्रक्रिया को भी अनिवार्य कर दिया जाए फिर तो सोने पर सुहागा हो सकता है। जिससे कीड़ा (बोरर) लगने की समस्या भी जड़ से खत्म हो जाएगी।
क्या सीजनिंग से समस्या का समाधान हो सकता है?
इस समस्या का एक ही समाधान है, वह है सीजनिग को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। वैसे तो हर कोई चाहता है कि वह अपने आवास में लकड़ी ही लगाए। क्योंकि वास्तु के अलावा पर्यावरण के प्रति आम आदमी की जागरूकता बढ़ रही है। पर अगर उपभोक्ता को लकड़ी में उच्च गुणवत्ता नहीं मिलेगी तो स्टील की ओर जाना उनकी मजबूरी हो जाती है।
यूं भी विदेश में जो लकड़ी के फर्नीचर निर्यात होते हैं, उसकी नमी 15 प्रतिशत से कम करना ही होता है। उद्योगों में जो लकड़ी इस्तेमाल होती है, उसका भी एक निश्चित मापदंड है। इसी तर्ज पर यदि रियल एस्टेट में भी ऐसा ही पैमाना तय कर दिया जाए तो बहुत हद तक समस्या खत्म हो जाएगी।
फिर सीजनिंग को क्यों टाला जा रहा है?
जागरूकता की कमी तो है ही। अब या तो ग्राहक मांग करें या व्यवस्था अनिवार्य हों। इसके अलावा सीजनिंग के लिए प्लांट भी तो होना चाहिए। हम यदि निर्यात भी बढ़ाना चाह रहे हैं तो लकड़ी की सीजनिंग की ओर ध्यान देना ही होगा। क्योंकि इससे लकड़ी की नमी खत्म हो जाती है, जिससे लकड़ी का जो भी उत्पाद बनाया जाएगा, उसके गुण धर्म सामान्य परिस्थितियों में नहीं बदलेंगे। जिससे उनकी ग्राह्यता बढ़ेगी।
दिल्ली और मुंबई के मार्केट में क्यों आयातित फर्नीचर लोकप्रिय हो रहा है? इसकी वजह लकड़ी की गुणवत्ता है। हालांकि आयातित फर्नीचर में जो लकड़ी प्रयोग में लायी जाती है, वह कच्ची और सस्ती होती है। लेकिन सीजनिंग होने की वजह से उसका फर्नीचर काफी टिकाऊ और गुणवत्तापूर्वक हो जाता है। हम यदि भारत में अंतरराष्ट्रीय स्तर की लकड़ी के फर्नीचर तैयार करना चाहते हैं तो इसके लिए सीजनिग के प्रति जागरूकता लाना बेहद जरूरी है। चीन और दूसरे देशों की तुलना में हम दस प्रतिशत ही निर्यात कर पा रहे हैं। मेरी तो मांग यह है कि लकड़ी की सीजनिंग अनिवार्य कर देनी चाहिए।
आरा मशीनों की क्या स्थिति है?
भारत में जब से लकड़ी की चिराई शुरू हुई, तब से अब तक इसकी मशीनों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। हालांकि लकड़ी की उपलब्धता में बड़ा फर्क आ गया है। पहले जहां जंगलों से मोटी लकड़ी काटी जाती थी, अब कृषि वाणिकी के पतले लट्ठों का उपयोग किया जाता है।
आरा मशीन संचालक भी खुद को वक्त के अनुसार बदलना नहीं चाह रहे हैं। आरा मिलों में ढांचागत बुनियादी बदलाव तक नहीं किए जा रहे हैं। छोटे शहर हों या बड़े जो आरा मशीनें लगी हुई है, सभी पुराने परंपरागत तरीके से चल रहीं है। इन्हें आधुनिक करने के लिए उधमियों में आवश्यक प्राथमिक सोच ही नहीं है।
इसलिए आरा मशीन का आधुनिकीकरण होना बहुत ही आवश्यक है। आरा मिल संचालकों को अब नई तकनीक अपनानी होगी और आवश्यक पुंजी निवेश करना होगा। अन्यथा हम अंतरराष्ट्रीय स्तर की लकड़ी और उसके उत्पाद कैसे तैयार कर सकते हैं? सरकार से आरा मिलों के आधुनिकीकरण के लिए अनुदान और सहयोग बहुत जरूरी है।
इसका असर तो कृषि वाणिकी पर भी पड़ सकता है?
आज जब भारत में वन से लकड़ी की प्राप्ति ना के बराबर है, हमें या तो आयात जिसमें काफी विदेशी मुद्रा खर्च होती हैं, पर निर्भर होना पड़ेगा या कृषि वाणिकी पर। कृषि वाणिकी आधरित लकड़ी कम उम्र के पेड़ों से प्राप्त किया जाता है। जिसे सीजनिंग करके मजबुत बनाया जा सकता है, यह परीक्षण में साबित किया जा चुका हैं। लेकिन कृषि वाणिकी को कामयाब करना है तो इसके लिए वन विभाग को भी ध्यान देना चाहिए। इसके लिए मानक निश्चित होने चाहिए।
सीजनिग की सुविधाओं के लिए वन विभाग या सरकार को आगे आना चाहिए। जोधपुर और सहारनपुर में इस तरह की सुविधा सरकार की ओर से मिल रही है। लेकिन यह सुविधा देश के प्रत्येक शहर में उपलब्ध होनी चाहिए।
मेरा आग्रह है कि सॉ मिल संचालकों को सीजनिंग प्लांट लगाने के लिए सरकार से आर्थिक मदद मिलनी चाहिए, यह राज्य स्तर पर हो सकती है या फिर राष्ट्रीय स्तर पर।
लकड़ी उपभोक्ता के बीच में अपनी विश्वसनीयता खो रही है। इसलिए लकड़ी और कृषि वाणिकी दोनो को बचाना है तो सीजनिंग कानूनी तौर पर अनिवार्य होना चाहिए।
आम आदमी जागरूक कैसे हो?
सरकार के पास प्रचार के बहुत साधन है। लेकिन उससे पहले व्यवस्थाओं और नीति नियंतओं को इसकी जरूरत समझ में आनी होगी। लोगों को दिखाया जाए कि कैसे सीजनिग लकड़ी मजबूत होती है, और जो लकड़ी सीजनिग नहीं होती, इसकी गुणवत्ता में क्या कमी रह जाती है। जिससे आगे चलकर कितना और क्या-क्या नुक्सान होते है। जब इसका अंतर समझाया जाएगा तो लोगों की समझ में बात आएगी। इसके साथ ही सॉ मिल संचालकों को भी इस बारे में प्रेरित और जागरूक करना होगा।
अंत में, मैं ध्यान आकृश्ट कराना चाहता हूँ कि भारत में ज्ञसपद कतपमक लकड़ी विदेशों से भारी मात्रा में आयात की जाती है, जिसमें विदेशी मुद्रा का अपव्यय होता है। इतने में तो पूरे देश में सैकड़ों सीजनिंग प्लांट लग सकते हैं।