लकड़ी की कीमतों को लेकर क्या स्थिति है?

लकड़ी का दाम तो एक तरफा बढ़ रहे हैं। अब तो 1700/1800 रुपए प्रति क्विंटल पर लकड़ी बिक रही है। हालांकि कोई एक ट्राली ही इतने रेट पर बिकती है। पर समस्या यह आती है कि एक बार यदि कोई एक ट्राली लकड़ी ज्यादा रेट पर बिक जाती है तो किसान और आढ़ती वही रेट चाहता है। यदि बाजार में यह रेट नहीं मिलता तो ठेकेदार लकड़ी की कटाई रोकने के लिए किसानों को बोल देते हैं। इससे लकड़ी का संकट लगातार बढ़ रहा है। रेट बढ़ने से उत्पादन लागत बढ़ रही है। जिससे लंबे समय से प्लाइवुड में चुनौती बनी हुई है। यदि लकड़ी जल्द ही सस्ती नहीं होगी तो यमुनानगर के प्लाइवुड उद्योग को खुद को बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा।

पॉपुलर से तो उम्मीद बनी हुई थी?

यह माना जा रहा था कि इस साल की शुरूआत से लकड़ी की समस्या खत्म हो जाएगी। क्योंकि हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में व्यापक पैमाने पर पॉपुलर का पौधा रोपण हुआ था। अब पता नहीं लकड़ी बाजार में क्यों नहीं आ रही है। इस बारे में जानकारी जुटानी आवश्यक हैं। यूं भी किसान जब से हाइब्रिड पॉपुलर उगाने लगे है, तो लकड़ी को कम उम्र यानी की तीन चार साल मे ही काट देते हैं। इससे कोर का जो उत्पादन होना चाहिए था, इसकी आधी ही कोर मिलती है। निर्माताओं को इससे एक और समस्या यह आती है कि इस तरह की कच्ची लकड़ी में वेस्टेज बहुत ज्यादा होती है। तैयार उत्पाद की गुणवत्ता पर भी इसका कुछ न कुछ असर पड़ता है। इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है।

उद्योग पर इसका क्या असर पड़ रहा है?

यमुनानगर की प्लाइवुड के लिए पॉपुलर के रेट कम होना बहुत जरूरी है। अन्यथा (इतनी महंगी लकड़ी का प्रयोग कर) प्लाईवुड निर्माता ज्यादा समय तक इस उद्योग में बने नहीं रह सकते। यमुनानगर में लगभग 400 यूनिट है, बहुत सी यूनिट बंद हो गई है। कुछ यूनिटें किराए पर दे दी गई है। कुछ युनिट संचालक इस उम्मीद में चला रहे हैं कि शायद लकड़ी सस्ती हो जाए। पॉपुलर के बढ़ते रेट को भी चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। कुछ उद्योगपतियों को यह लग रहा है कि चुनाव की वजह से यह स्थिति है। लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूं। मेरा मानना है कि चुनाव के बाद भी स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं होगा। चुनाव की वजह से व्यापार में भुगतान की समस्या तो आ रही है। लेकिन लकड़ी के रेट आदि को चुनाव से जोड़ना शायद सही नहीं है।

तो इस हालात में प्लाइवुड उद्योग का भविष्य क्या देखते हैं

बाजार में मांग की कमी और सस्ते आयात से प्लाइवुड का दाम बढ़ नहीं पा रहा है। अगले कुछ माह में स्थिति बहुत हद तक साफ होगी। वर्श की समाप्ति से पहले, 45 दिनों में डैडम् को अनिवार्य भुगतान करने के नियम से, निर्माताओं की बैलेंस सीट में सुधार हुआ। जिससे व्यापार में थोड़ी राहत जरूर मिली है। लकड़ी और कोर का आयात बढ़ने से भी कई यूनिटों को कच्चे माल की कमी से राहत मिली है। हालांकि यह भी कोई बहुत सस्ती नहीं है, पर कच्चे माल का प्रवाह बढ़ने से उनका उत्पादन सुचारू हुआ। लेकिन यह देखना होगा कि इस तरह की परिस्थितियों में वह कब तक इन चुनौतियों का सामना कर पाएंगे। क्योंकि लकड़ी की कीमत कम होती नजर नहीं आ रही है। प्लाईवुड और अन्य लकड़ी उत्पादों के लिए बारिस से पहले के अप्रैल मई और जून बिक्री के लिए खासे महत्वपूर्ण माने जाते हैं। लेकिन यह तीनों माह तो चुनाव के मद्देनजर खराब होते नजर आ रहे हैं।

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बी आई एस मानकों को किस तरह से देख रहे हैं

यदि आईएसआई प्रमाण पत्र अनिवार्य हो जाता तो स्थिति बहुत अलग हो सकती थी। शुरुआत में प्लाईवुड निर्माता इसकी अहमियत समझ नहीं पा रहे थे। क्योंकि इससे कम गुणवत्ता के माल के आयात पर तत्काल रोक लग जाती।

लेकिन अब तो यह एक साल के लिए विलंबीत हो गया है। तब इसका कितना फल मिलेगा, अभी से कहना मुश्किल है। हालांकि भारत में भी दो तिहाई फैक्ट्रीयां अभी बीआईएस के दायरे से बाहर हैं। उनके लिए सरकार क्या रणनीति बनाएगी उस पर ही इस फब्व् का असर मालूम पड़ैगा।

एमडीएफ, पार्टिकल बोर्ड की स्थिति प्लाईवुड से बेहतर है?

एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं कह सकते है। फिर से आयात बढ़ रहा है। पूरे देश में छोटी-छोटी यूनिटें काफी ज्यादा लग गई। बड़ी कंपनी तो इस दौर में बची रह सकती है। लेकिन छोटी यूनिट संचालकों के सामने खुद को बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी। छोटी इकाइयों की मल्टी डे लाइट प्रेस में उत्पादन लागत बड़ी कंपनी की कन्टियू प्रेसींग मेथड की तुलना में सात से आठ प्रतिशत ज्यादा आती है।

अब बड़ी कंपनी क्योंकि ब्रांड के तौर पर पहले से स्थापित है, इस वजह से उन्हें पांच-सात प्रतिशत कीमत भी अधिक मिल जाती है। इसलिए वह खुद को इस मुश्किल वक्त में भी बनाए रखने में सक्षम है। लकड़ी (कच्चा माल) जो सिर्फ दो साल पहले तीन चार रुपए थी, अब वह लकड़ी सात रुपए से अधिक में पड़ रही है। पार्टिकल बोर्ड में भी स्थिति सुखद नहीं है। बगास के दाम बढ़ रहे हैं। इसलिए प्लाईवुड की तरह पार्टिकल व एमडीएफ के लिए भी यह वक्त मुश्किल भरा है।

कोर कंपोजर और कैलिब्रेटर मशीन की मांग बढ़ रही है।

उद्योगपत्ति इन मशीनों का उपयोग करके ‘वेल्यू एडेड‘ प्रोडक्ट बनाने की कोशिस तो कर रहे है। लेकिन बाजार से तैयार उत्पाद का रेट नहीं मिल रहा है। इस तरह की मशीनों का लाभ तभी लिया जा सकता है, जब बाजार से उत्पाद में किए गए अतिरिक्त खर्च की भरपाई हो। कोर कम्पोजर मशीन में फुल कोर का इस्तेमाल होता है, और केलीब्रेट करने के बाद इसे दोबारा प्रेस करना पड़ता है। इस वजह से उत्पादन लागत बढ़ जाती है। लेकिन बाजार में इस तरह के उत्पाद के दो-तीन रुपए से ज्यादा अतिरिक्त कीमत नहीं मिलती। जोकि अतिरिक्त लागत से कहीं बहुत कम है।

अब या तो यूनिट का संपूर्ण उत्पादन ही कैलिबेटर पर चला जाए, तो एक कोस्ट एफेक्टीव सीस्टम बन सकता है। एक दो यूनिट कैलिब्रेटर पर संपूर्णतः गयी है। लेकिन इस दिशा में अभी लोगों की रूचि कम है।

(लकड़ी के) वृक्षारोपण कार्यक्रम में कोई शुरुआत हुई?

प्लाइवुड निर्माता अपनी वर्त्तमान रोजमर्रा की उलझनों में घिरकर वृक्षारोपण की ओर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। पौधा रोपण की ओर ध्यान देने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं है। जिससे भविष्य में पर्याप्त मात्रा में लकड़ी मिलती रहे। इससे लकड़ी के रेट कम होने में भी मदद मिलेगी। यदि सरकार हमें डीग्रेडेड जमीन दे, जिसकी कृषि में उपयोगिता कम हो। और एसोसिएशन को फिर से सक्रिय कर इस पर वृक्षारोपण का कोई निर्णय लिया जा सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर और एसोसिएशन के स्तर पर कुछ कोशिश तो हो रही है। लेकिन यह कोशिस अभी काफी कमजोर है। क्योंकि इसके लिए सभी को इक्ट्ठे मिल कर ही काम करना होगा, इसलिए सभी की सहमति और सहभागिता जरूरी है।


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