हमारे धन की सुरक्षा आरबीआई कैसे करती है? किस तरह से कदम उठाए जाते हैं, ताकि कोई आर्थिक गड़बड़ी न हो जाए। इसे ठीक ठीक इस तरह से समझ सकते हैं, जैसे किसी हाउसिंग सोसाइटी में आग से निपटने और बचने के उपायों की योजना कई चरणों के साथ सावधानीपूर्वक तरीके से बनाई जाती है।

इसमें समय समय पर हादसे से बचने का अभ्यास किया जाता है। वहां रह रहे लोगों को किस तरह से समय रहते इसकी जानकारी मिले, जिससे वह तेजी से वहां से निकल सके। कहां से निकलेंगे, यह भी तय किया जाता है। अलार्म से चेतावनी जारी होती है। इसका अभ्यास किसी छुट्टी के दिन किया जाता है। इससे यह देखा जाता है कि आग से होने वाले हादसे से बचने के सभी इंतजाम मुकम्मल है। इसमें किसी तरह की दिक्कत तो नहीं है। कई बार जानबूझ कर आपातकालीन रास्तों को बंद कर दिया जाता है। यह भी अभ्यास का हिस्सा होता है। इसके साथ ही निकलने का रास्ता बंद है“ का साइन बोर्ड लेकर कोई व्यक्ति खड़ा हो जाता है। क्या लोग इस साइन बोर्ड को समझ पा रहे हैं, यह भी देखा जाता है।

“आपात स्थिति से निपटने के लिए हम हाउसिंग सोसाइटी का प्रबंधन उसी तरह करते हैं जैसे आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) वित्तीय क्षेत्र का प्रबंधन करता है। हम आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड को बुलाना नहीं चाहते; हम नहीं चाहते कि आग भड़के, इसलिए आग ही नहीं लगने देनी है। इसे रोकना ही बेहतर तरीका है।

आरबीआई ने पिछले दिनों जो कदम उठाए हैं, वह इसी ओर इशारा करते नजर आ रहे हैं।

आरबीआई ने महसूस किया कि बैंक में कोई बड़ी गड़बड़ी होने वाली है।

15 मार्च को पेटीएम पेमेंट्स बैंक लिमिटेड का आखिरी दिन था।

इसे रोकने के लिए पहले ही इस तरह के कदम उठा लिए। इसी तरह से मार्च के पहले सप्ताह में, आरबीआई ने ऋण स्वीकृत करते समय सोने की शुद्धता की जांच और प्रमाणित सही तरह से न करने की वजह से आईआईएफएल फाइनेंस लिमिटेड के सोने पर दिए जाने ऋण को प्रतिबंध लगा दिया था। क्योंकि बैंक में कर्ज वापस न करने वाले लोगों के सोने की नीलामी में प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहा था। ऋणों की वसूली के गलत तरीके, ऋण-से-मूल्य अनुपात में उल्लंघन, अनुचित शुल्क और उच्च नकदी संग्रह की वजह से बैंक के खिलाफ आरबीआई ने यह कदम उठाया था।

आरबीआई ने जेएम फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स लिमिटेड के शेयरों को बेचने और कर्ज लेने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। इसमें शेयरों के आईपीओ पर ऋण की मंजूरी और वितरण पर भी यह रोक लगा दी थी।

इन कार्रवाइयों से कुछ महीने पहले, नवंबर 2023 में, आरबीआई ने बजाज फाइनेंस लिमिटेड के खिलाफ भी इसी तरह के कदम उठाए थे। तब ईकॉम और इंस्टा ईएमआई कार्ड के तहत ऋण स्वीकृत और वितरित करने को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश दिए थे। आरबीआई ने कहा कि कंपनी डिजिटल ऋण देने में दिशानिर्देश की पालन नहीं कर रही है। इसलिए यह कदम उठाना जरूरी हो गया था। आरबीआई के उठाए गए इन सुरक्षात्मक कदमों को हम भारतीय बैंकिंग पर खतरे के बादल कह सकते हैं।

जबकि सही बात तो यह है कि आरबीआई ने इस तरह की स्थितियों के आकलन के तरीके को बदल दिया है। दो बड़े संस्थानों के खिलाफ जो कड़ कदम उठाए हैं, इसे ठीक हम किसी बड़ी रिहायशी कालोनी में आग से बचने के सुरक्षात्मक उपायों के तौर पर देख कर सकते हैं।

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2018 के अंत में, बड़ी वित्तीय संस्था इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड जो कि ढांचागत विकास के लिए कर्ज देती है, अपने दो कर्ज को चुकान में विफल रहने के बाद बंद कर दी थी। संस्था के डिफाल्टर होने के सोलह दिन बाद, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में चौथे सबसे बड़े बंधक फाइनेंसर, दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पारेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) को इसका खामियाजा भुगतना पडा। उनके म्यूचुअल फंड को भारी छूट पर बेच दिया, जिससे बाजार में घबराहट पैदा हो गई, जिससे डीएचएफएल के शेयर की कीमत में 60 प्रतिशत की गिरावट आ गई थी।

हालांकि कंपनी कुछ महीनों तक तो काम चलाने में कामयाब रही, लेकिन जब ब्याज भुगतान से चूक गई तो जून 2019 में उसे डिफ़ॉल्ट श्रेणी में डाउनग्रेड कर दिया गया।

आरबीआई की इस तरह की कड़ी कार्यवाही को उचित समय पर उठाया गए सही कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए। ऐसी कठोर कार्यवाही का यह सही समय है। क्योंकि वित्तीय क्षेत्र में इन दिनों कर्ज लेन देन में खासा लचीला रूख अपनाया जा रहा है। एनपीए कम हो रहे हैं। बैंकों के पास अच्छी खासी रकम है। हमने आखिरी बार इतनी मजबूत भारतीय बैंकिंग प्रणाली कब देखी थी? जब हालात अच्छे हों तो स्मार्ट नियामक सख्त फैसले लेते हैं।

हालांकि ऐसे कड़े निर्णय लेना अपेक्षाकृत मुश्किल होता है। क्योंकि यदि अनियमितता होने पर संस्थाओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए तो इसे कड़ा रुख करार दे दिया जाता है। दूसरी ओर यदि कार्यवाही न की जाए तो इसे लापरवाही बोल दिया जाता है।

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ऐसे सवाल अक्सर इसलिए पूछे जाते हैं क्योंकि हम नहीं जानते कि इस तरह की गड़बड़ी को पकड़ने में कीमती मेहनत लगती है। कार्यवाही के लिए एक जवाबदेही भी बनती है, जवाबदेही के लायक तर्क व साक्ष्य जुटाने की कोशिश में जांच प्रक्रिया लंबी हो जाती है। नियामक इस पर खुलकर चर्चा नहीं करता क्योंकि इससे वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता को खतरा हो सकता है। ऐसे में कार्यवाही की जानकारी हमें तब मिलती है, जब आरबीआई अपनी कार्रवाई को सार्वजनिक करता है।

T. BANDYOPADHYAY


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