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All of us have noticed the remarkable presence of Indians in the leadership of global organizations: IBM, Google, Microsoft, and now the World Bank. In the best of times, it is difficult for an immigrant to succeed. We must admire these individuals who worked their way to succeed in a foreign country.

Is it merely interesting that people who grew up and studied in India are doing well, or does it have implications for India? The rise of Indians to leadership positions elsewhere in the world helps to reduce asymmetric information and thus improve global engagement with India.

The top leadership of organizations like the World Bank, Google and Microsoft, therefore, has an instinctive common sense about India. This produces better decisions regarding India – quiet and with steady pace – and reduced vulnerability to the hype cycle. This is good for India.

Watching the trajectory of persons of Indian origin in global organizations makes us think about the meritocracy within those organizations. We in India will gain by opening up to greater heterogeneity in our internal culture, to move meritocracy in global recruitment, to more engagement with the outside world.

If we think of narrow measures of knowledge, the top Chinese universities are now ahead of the best in India. But relatively few people who grew up in China are plying these kinds of leadership roles in the top global organizations. We see Chinese technical experts who perform many critical technical functions, but often fail to rise to strategy and leadership. Why might that be? Other factors at work are English fluency.

From a hundred years ago, there has been a remarkable upper tail in knowledge in India. That upper tail has persisted into the present. There are two phenomena at work:

(a) The faction of India in the upper tail is unusually high when compared with other countries at Indian Levels of development, and
(b) The high population implies that the sheer headcount of persons of high capability is large.

This creates the agglomeration economices of these individuals collaborating and competing with each other. As global corporations know, if you need to build an office with 1,000 good researchers, India is a good site, and this is not just about low wages. The upper tail – in India and outside it – has been of essence in the IT revaluation. India’s biggest success is IT. This Indian upper tail has the globalised knowledge through which it is able to engage with the world and bring $200 billion a year into India.

We should not assume that things will just go on, because many things have changed at the foundation of the phenomenon.



वैश्विक संस्थानों में भारतीयों की सफलता की वजह

हम सभी ने इस बात पर ध्यान दिया होगा कि आईबीएम, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसे वैश्विक संस्थानों और अब विश्व बैंक में भारतीयों के पास नेतृत्व की भूमिका बढ़ी है। प्रवासियों के लिए इस तरह की सफलता हासिल करना आसान नहीं होता है। जाहिर है हमें उन तमाम लोगों की सराहना करनी चाहिए जिन्होंने दूसरे देश में जाकर इस प्रकार की सफलता हासिल की।

यह दिलचस्प है कि भारत में पढ़े और बड़े हुए लोगों का अच्छा प्रदर्शन केवल एक दिलचस्प घटना है या यह भारत के लिए भी मायने रखती है? दुनिया के अन्य देशों में भारतीयों का, नेतृत्व वाले पदों पर पहुंचना, सूचनाओं की असमता को समाप्त करता है और भारत के साथ वैश्विक संबद्धता को मजबूत करता है।

विश्व बैंक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे संस्थानों के शीर्ष नेतृत्व के मन में भारत के बारे में एक आम समझ है जो भारत के बारे में उन्हें खामोशी से और स्थिर गति से निर्णय लेने को प्रेरित करती है। यह भारत के लिए अच्छी बात है।

वैश्विक संस्थानों में भारतीय मूल के लोगों की मौजूदगी देखें तो उन संस्थाओं में प्रतिभाओं के महत्व का भी ध्यान आता है। भारत में भी अगर हम अपनी आंतरिक संस्कृति में विविधता बढ़ाएं तो बाहरी दुनिया से संबद्धता बढ़ाने में सहायता मिलेगी।

अगर हम ज्ञान के संकीर्ण उपायों पर विचार करें तो शीर्ष चीनी विश्वविद्यालय, भारत के श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों से आगे है। परंतु चीन में बड़े होने वाले बहुत कम लोग, शीर्ष वैश्विक संस्थानों में ऐसी भूमिका निभा रहे हैं। हम देखते हैं कि चीन के तकनीकी विशेषज्ञ कई अहम तकनीकी कामों को अंजाम देते हैं, लेकिन अक्सर वे रणनीति और नेतृत्व के स्तर तक नहीं पहुंच पाते। ऐसा क्यों हुआ होगा? इसमें एक कारक धाराप्रवाह ढंग से अंग्रेजी बोलने का भी है।

सैंकड़ों वर्ष पहले से, भारत में ज्ञान को लेकर उच्च मूल्य रहे हैं और वे वर्तमान में भी नजर आते हैं। यहां दो कारक काम कर रहेंः
(अ) भारत विकास के जिस चरण में है, उस चरण के अन्य देशों से तुलना करें, तो अस्वाभाविक रूप से उच्च स्तर पर है और
(ब) ज्यादा जनसंख्या का अर्थ यह है, कि उच्च क्षमता वाले लोगों की तादाद भी अधिक है।

इससे अर्थव्यवस्थाओं का एक समुच्चय तैयार होता है, जो एक दूसरे के साथ सहयोग और प्रतिस्पर्धा करते हैं। जैसा कि वैश्विक निगम जानते हैं, कि अगर आप 1,000 अच्छे शोधकर्ताओं के साथ एक कार्यालय तैयार करना चाहते हैं, तो भारत एक अच्छी जगह है और यहां तात्पर्य केवल कम वेतन से नहीं है। भारत को यह जो बढ़त हासिल है यही हमारी सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति का आधार है। इसने वैश्विक स्तर पर हम अपनी इसी बढ़त के आधार पर दुनिया के साथ जुड़ाव कायम कर सके और इसके चलते ही सालाना 200 अरब डॉलर की संपत्ति भारत में आती है।

हमें यह नहीं मानना चाहिए कि हालात ऐसे ही बने रहेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि बुनियादी तौर पर कई चीजें बदल गई हैं।

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