Suneesh Sharda (Flourish)
- August 28, 2020
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कोरोना ने काम और जिंदगी जीने का तरीका बदल दिया है, अब भागमभाग नहीं रही
कोरोना ने जिंदगी को एक दिशा दी है। पहले हमारे पास जहां वक्त नहीं था, अब वक्त ही वक्त है। सब मिल कर काम कर रहे हैं। भागमभाग खत्म हो गयी है। यह सोच पनपी है कि अब एक सिस्टम से ही आगे बढ़ना होगा। क्योंकि बिना सोचे समझे ऐसे ही कुछ भी करने का वक्त नहीं है। कोरोना ने परिवार के सदस्यों को जहां नजदीक लेकर आया है। वहीं यह भी समझा गया कि अब बिजनेस में जो भी निर्णय लेना है, उस पर गहनता से विचार करने के बाद ही काम करना है। द प्लाई इनसाइट कोरोना के काल में लगातार उद्योगपतियों से बात कर उनके विचार इंडस्ट्री से जुड़े हर किसी के साथ साझा कर रहा है, इसी क्रम में इस बार श्री सुनीश सारडा, मेरठ से हुई वार्तालाप के अंश
आने वाले वक्त को लेकर क्या सोच रहे हैं
एक बार लग रहा था कि हालात सामान्य हो रहे हैं, लेकिन अब फिर से लग रहा है कि परेशानी दोबारा से आ रही है। लग रहा था कि कारोबार थोड़ा बहुत शुरु हो रहा हैं, लेकिन अब लग रहा है कि ऐसा नहीं है। उत्तराखंड में जाने की समस्या है। कोराना के मामले बढ़ रहे हैं। बिहार बंद पड़ा है। बेंगलुरु, मुम्बई, पुना आदि भी बंद है। इस वजह से परेशानी आ रही है। व्यापार पर असर पड़ना शुरु हो गया है। मनोबल टूट रहा है।
लेबर की समस्या से कैसे निपट रहे हैं
यूपी में लेबर है, यहां की लेबर वापस आ गयी है। लेकिन ट्रेंड लेबर जो कि बिहार बंगाल से आती है, वह नहीं आ रही है। इस वजह से माल तैयार करने में दिक्कत आ रही है। ठेकेदार बिहार से थे, लेकिन वह अभी तक वापस नहीं आए हैं। इस वजह से भी समस्या आ रही है। यह सही है कि लेबर तो यूपी में वापस आ गयी है। यहां लेबर तो बहुत ज्यादा है। किसी भी वक्त आप लेबर बुला सकते हैं। इसलिए यहां दिखने में लेबर की समस्या नहीं है। लेकिन ट्रेंड लेबर नहीं है। लेबर की समस्या दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में आ रही है। ट्रेंड लेबर के माल बनाने की स्पीड अच्छी होती है। वह जब काम करते थे तो माल की गुणवत्ता बहुत अच्छी रहती है। वर्तमान लेबर के साथ हम साठ सत्तर प्रतिशत ही प्रतिदिन उत्पादन कर पाते हैं। यह लेबर हमारे लिए प्रशिक्षित नहीं है। और सहजता से कहें तो इनकी दक्षता किसी और क्षेत्र में है, जिसका हमारे लिए कोई अर्थ नहीं है। हमारे लिए तो इनको अप्रशिक्षित ही
माना जाएगा।
पुरानी लेबर वापस नहीं आ रही है क्या
जी वह नहीं आ रही है। एक बार वह आने के लिए तैयार हो भी गए थे। लेकिन बाद में अफवाह उड़ी। और बिहार बंद हो गया है। इस वजह से लेबर फिर नहीं आयी। यूपी की लेबर जो गुजरात और महाराष्ट्र में काम करती थी, वह अब वहां जाने को तैयार नहीं है। वह यहां तो काम करने को तैयार है। लेकिन वह यहां के लिए दक्ष नहीं है। अब मजदूरी का रुप बदल रहा है। सुना है यमुनानगर में तो उद्योगपतियों ने बस भेज कर बिहार से लेबर बुलवायी है।
लकड़ी के रेट पर क्या असर हुआ है
रेट कम हुए थे, लेकिन अब वापस फिर उसी लेवल पर आ रहे हैं। उत्पादन अभी 50 से 60 प्रतिशत हो रहा है। बीच में यूपी वालों ने रफ्तार से यूनिट चलायी थी। लेकिन अब इसकी रफ्तार कम कर दी है। लेकिन अब फंड की समस्या आ रही है। हर कोई अब एडवांस पैमेंट पर ही काम करना चाह रहा है।या यूं कहें कि यह मजबूरी बन गई है। कुछ उद्योगपतियों ने अपना स्टॉक खत्म किया है। जिनके पास माल नहीं था, उन्होंने थोड़ा बहुत काम करके स्टाक बढ़ाया है। हालांकि यह भी सही है कि अभी बाजार में डिमांड है। जितना माल बन रहा है, उतनी डिमांड तो आ ही रही है। अगले दो महीने सब के लिए परीक्षा की घड़ी होगी, ऐसा सभी जानकारों का मानना है।
कोरोना से क्या काम के तरीके में बदलाव आया है
हां, उद्यमी संतोषी हो गया है। अब आठ बजे काम बंद कर दिया जाता है। पहले की तरह रात रात भर काम नहीं हो रहा है। पहले जहां हर कोई एक दिशा में दौड़ रहा था। बिजनेस को लेकर एक दौड़ थी, अब वह कम हो गयी है। हर कोई देखो और इंतजार करो की नीति पर काम कर रहा है। खर्च कम कर रहे हैं। क्योंकि कोरोना ने समझाया कि भागम भाग में कुछ नहीं है। लॉकडाउन ने हर किसी को घर रहने पर मजबूर तो किया, लेकिन वक्त की कदर करनी भी आ गयी है। परिवार में सभी साथ रहने को विवश हुए तो आत्मियता भी बढ़ी है। इसे कोरोना का सकारात्मक परिणाम कह सकते हैं।