2020 और 2021की तैयारी

2020 और 2021 की तैयारी


वृहद-आर्थिक एवं वित्तीय स्थिति काफी चिंताजनक है। कोविड.19 महामारी और लाॅकडाउन की दोहरी मार झेल रहे हैं। फिर भी, देशव्यापी लाॅकडाउन की घोशणा के महज चार घंटे के भीतर इसके क्रियान्वयन ने देश को सकते में डाल दिया और इससे खासकर लाखों कंपनियों और असंगठित क्षेत्र के उद्यमियों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। देशव्यापी लाॅकडाउन की घोशणा और आजीवका के बुनियादी साधनों का क्रम गलत हो गया। बाद के दिनों में स्थिति बेहतर हुई लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों से अब भी लोगों की मुश्किलों की खबरें आ रही हैं। इस सदमे ने गरीबों उद्योग, व्यापार, नौकरी, पेशा सभी को गहरे जख्म दिए हैं जिन्हें भरने में लंबा समय लगेगा।

हमें कोविड.19 को महज दो माह की समस्या के तौर पर नहीं दिखना चाहिए। लाॅकडाउन खत्म होने के बाद भी भारत में सकं्रमित लोगों की तादाद काफी होगी। सितंबर 2008 के लीमैन संकट ने जिस तरह 2009 और 2010 तक अपना असर दिखाया था, उसी तरह कोविड.19 से उपजे हालात भी 2020 और फिर 2021 तक कमोवेश बने रहने वाले हैं। वैसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 2019 में हमने बाजार में टिके रहने के लिए लंबा संघर्श किया था। नीति-निर्माताओं, कंपनियों, स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े लोगों और आम इंसान, हर किसी को एक नव-सामान्य की लय विकसित करने की जरूरत है। वह ऐसी सामान्य परिस्थिति होगी जिसमें बहुतों के बीमार पड़ने से सामाजिक दूरी बरतना आम होगा और वृहद-आर्थिक एवं वित्तीय प्रणाली में खासी मुश्किलें होंगी। असामान्य आचरण से थकान पैदा होगी और इसे लंबे समय तक कायम नहीं रखा जा सकता है। हम सभी को एक नया सामान्य हासिल करने और जीवनशैली एवं आजीविका को लेकर टिकाऊ नजरिया अपनाने की जरूरत है।

आगे एक बड़ी चुनौती है। और यह लाॅकडाउन से बाहर निकलने की रणनीति के बारे में है। चूंकि इन दिनों महाभारत के उद्धरण लोकप्रिय हो रहे हैं, इसलिए हमें याद रखना चाहिए कि लाॅकडाउन लागू करना चक्रव्यूह में घुसने के समान है लेकिन वहां से सही सलामत बाहर निकलना भी अहम है, सच कहें तो काफी मुश्किल है।

क्योंकि हालात बहुत धीरे सुधरेंगे और वृद्धि भी कम नजर आयेगी।

यह बात साफ हो गई है कि ज्यादातर लोगों को रोजगार देने वाली छोटी इकाइयों के लिए इसकी मार से बचना मुमकिन नहीं होगा। बड़ी कंपनियां कुछ अरसे तक टिक सकती हैं। समझदारी इसी में है कि अनावश्यक खर्चों की जल्द से जल्द समीक्षा की जाए।

आर्थिक नीति तब सही काम करती है जब समस्याओं को समझने के लिए एक धीमी, बौद्धिक और मशविरे वाली प्रक्रिया हो, लागत-लाभ का भली भांति विश्लेशण किया जाए, अनावश्यक हस्तक्षेप न किए जाएं और छोटे-छोटे कदम उठाते हुए आगे बढ़ा जाए।

बाजार की अर्थव्यवस्था बहुत नाजुक रूप से जटिल जहां लोग स्वैच्छिक रूप से लेनदेन किया करते हैं। प्रश्न यह है कि कोविड.19 कोई भूकंप या बाढ़ जैसी समस्या नहीं है, यह स्थानीय भी नहीं है और इसका जल्दी अंत भी नहीं होने वाला है।

आज हमें अर्थव्यवस्था के संबंध में सबसे अहम सवाल यह पूछना चाहिए कि महामारी का प्रकोप खत्म होने के बाद वी-आकार वाली रिकवरी के लिए खुद को कैसे तैयार किया जाए? हमें आज के हरेक नीतिगत कदम को इस नजरिये से देखना चाहिए कि क्या उससे 2020 और 2021 में एल-आकार वाली रिकवरी की राह तैयार होगी या फिर वी-आकार वाली रिकवरी का खाका बनेगा