GST no longer citizen-friendly says Supreme Court
- April 8, 2021
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The Supreme Court on 06 April slammed the manner in which the Goods and Services Tax was being enforced by tax authorities and observed that the taxman cannot see all businesses as being fraudulent.
The Parliament had aimed to give the GST a citizen-friendly tax structure. But, the purpose of the Act is lost by the manner of enforcement in our country, Justice DY Chandrachud observed.
The bench of Justice Chandrachud and MR Shah was hearing a plea against powers of provisional attachment under the Himachal Pradesh GST Act. The plea was filed by Radha Krishna Industries, alleging that power of attachment under Sec 83 is draconian.
Per the Sec 83 of the HP GST Act, during the pendency of tax proceedings, the department can attach any property (including bank accounts and accounts receivable). This is called Provisional Attachment. It is a protective measure used by the tax officers to ensure the satisfaction of a later judgement by the courts.
The court further termed provisional attachment as ‘draconian’ and ‘pre-emptive strike’.
“Tax authorities can’t start attaching assets unless there’s alienation, winding up or liquidation of assets,” Justice Chandrachud added.
The court observed that officers must strike out a balance between protecting government revenue and allowing genuine businesses to operate.
On Tuesday, SC concluded the hearing after listening to the arguments of both sides and reserved its judgment on the issue.
जीएसटी नागरिक अनूकूल नहीं रहा – सुप्रीमकोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 06 अप्रेल को टैक्स अधिकारियों द्वारा माल और सेवा कर(जीएसटी) लागू करने के तरीके को गलत ठहराते हुए नाराजगी जताई और कहा कि टैक्समैन हर बिज़नेसमैन को धोखेबाज नहीं कह सकता।
डी वाई चंद्रचूड़ ने जीएसटी को लागू करने के तरीके पर नाराजगी जताते हुए कहा कि संसद की मंशा थी कि जीएसटी सिटिजन फ्रंेडली टैक्स हो, लेकिन जिस तरह से इसे देश भर में लागू किया जा रहा है, वह इसके मकसद को खत्म कर रहा है।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि टैक्समैन हर व्यापारी को धोखेबाज नहीं कह सकता। जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ हिमाचल प्रदेश जीएसटी अधिनियम के तहत प्रोविजन अटैचमेंट की शक्तियों के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
राधा कृष्ण इंडस्ट्रीज द्वारा यह याचिका दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि धारा 83 के तहत कुर्की की शक्ति ड्रैकनियन (Draconian) है।
हिमाचल प्रदेश जीएसटी एक्ट 2017 के उस प्रावधान को सुपी्रम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि मामले की कार्यवाही पेंडिंग रहने के दौरान अधिकारी चाहे तो बैंक अकाउं समेत अन्य संपत्ति जब्त कर सकता है।
जीएसटी एक्ट की धारा 83 में प्रावधान है कि अगर कोई मामला पेंडिंग है और कमिश्नर ये समझता है कि सरकार के राजस्व के हित को प्रोटेक्ट करने के लिए जरूरी है तो वह संबंधित पक्षकार (जिनके टैक्स का मामला है) की संपत्ति और बैंक अकाउंट आदि अटैच कर सकता है।