The country’s manufacturing activity moderated in March with companies reporting fewer new orders and decrease in production expansion, according to data released by S&P Global.

There has been regular increase in input prices in the financial year 2021-22 with chemical, energy, timber, foodstuff and metal costs.

Output prices rose in March as manufacturers shared part of the additional cost burden with their clients, which absorbed their losses, the survey said.

As of now, it is good to see that the demand has been sufficiently strong to withstand price hikes.

But if inflation continues to gather pace there may be a more significant slowdown, if not an outright contraction in sales.

Manufacturing companies appeared very concerned about price pressures which was a key factor dragging down business confidence to a two-year low.

The data for March also pointed to subdued optimism towards growth prospects among Indian manufacturers, with the overall level of sentiment slipping to a two-year low. This was due to inflation concerns and economic uncertainty, the survey said.


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उत्पादन और बिक्री में हल्की तेजी लेकिन कमजोर भरोसा

एसऐंडपी ग्लोबल की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक मार्च महीने में कंपनियों ने नए ऑर्डर और उत्पादन में कुछ कम विस्तार होने की बात कही।

रसायन, ऊर्जा, लकड़ी खाद्य सामग्री और धातु की लागतें अधिक होने से वित्त वर्ष 2021-22 में लगातार इनपुट लागतों में इजाफा हो रहा था।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि निर्माताओं द्वारा अतिरिक्त लागत बोझ का कुछ हिस्सा अपने ग्राहकों के ऊपर डाले जाने से मार्च में आउटपुट कीमतों में बढ़ोतरी हुई और कुछ हद तक नुकसान की भरपाई हुई है।

राहत की बात यह है कि फिलहाल कीमत वृद्धि का सामना करने के लिए मांग पर्याप्त रूप से मजबूत है।

लेकिन यदि मुद्रास्फीति में तेजी जारी रहती है तो बिक्री में एकमुश्त संकुचन भले नहीं आए लेकिन बहुत अधिक नरमी नजर आ सकती है।

विनिर्माता गण अपने स्तर पर कीमत दबावों को लेकर काफी चिंतित हैं, जो कारोबारी विश्वास को दो वर्ष के निचले स्तर पर लाने में एक अहम कारक हो रहा है।

मार्च के आंकड़ों से भारतीय विनिर्माताओं में वृद्धि की संभावनाओं को लेकर कमजोर भरोसे के संकेत मिलते हैं। जबकि धारणा का समग्र स्तर फिसलकर दो वर्ष के निचले स्तर पर पहुंच गया है। सर्वेक्षण में कहा गया कि ऐसा मुद्रास्फीति संबंधी चिंताओं और आर्थिक अनिश्चितता के कारण हुआ है।


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