Change is the only constant – right or wrong?

भारतीय फुटवियर उद्योग अच्छी दर से बढ़ रहा है और यह एक ऐसा उद्योग है जिसमें बहुत सारी संभावनाएं और शानदार भविष्य है। अधिकांश उभरते क्षेत्रों की तरह यह क्षेत्र भी प्रौद्योगिकी और कार्यशैली दोनों के मामले में एक आदर्श बदलाव से गुजर रहा है। ऐसी कुछ कंपनियां हैं जिन्होंने सिस्टम और प्रक्रियाओं में सुधार के मामले में साहस दिखाया है, जबकि उनमें से कुछ अभी भी पुरानी शैली में काम कर रही हैं।

मुझे एक फुटवियर कंपनी में कुछ समय के लिए काम करने का अवसर मिला और इस संक्षिप्त कार्यकाल ने मुझे इस आदर्श बदलाव के बारे में पूरी जानकारी दी। दिलचस्प बात यह है कि मैंने देखा कि बदलाव करने और शीर्ष कंपनियों की कतार में आने के बिच सिर्फ एक ‘‘संकल्प (इच्छा)‘‘ है। कंपनी के शीर्ष प्रबंधन ने विभिन्न उद्योगों से लोगों की तेजी से भर्ती करने के लिए कदम बढ़ाए।

लीन मैनेजमेंट, टीक्यूएम आदि के नवीनतम प्रबंधन फंडा शामिल किए गए... लेकिन कुछ बुनियादी बातें छूट गईं...

प्रत्येक ‘‘इच्छा‘‘ के बदलाव के लिए एक बहुत मजबूत ‘‘संकल्प‘‘ होना चाहिए... जब तक ऐसा नहीं किया जाता, कुछ भी नहीं बदलेगा; कंपनी-दर-कंपनी का इतिहास दर्शाता है कि ‘‘परिवर्तन ही केवल स्थिर है‘‘ और जो कंपनियां नेतृत्व के शिखर पर पहुंच गई हैं, उन्हें जन-उन्मुख बनने के लिए सिस्टम में सुधार करने की इस दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरना पड़ा है।

उन्होंने ऐसे लोगों को बाहर कर दिया है जो समय के साथ नहीं बदले और नए लोगों को शामिल किया है जिन्होंने कंपनी को इस बदलाव के दौर में आगे बढ़ने में मदद की है। जो कंपनियाँ नए लोगों को तो शामिल कर लेती हैं, लेकिन निर्जीव ठूंठो को दूर करने में विफल रहती हैं, वे कभी भी नेतृत्व की स्थिति तक नहीं पहुँच पाती हैं और वहाँ तक पहुँचने की केवल ‘‘इच्छा‘‘ ही कर सकती हैं।

{निजी अनुभव}

बदलते समय ने सफल कंपनियों की सोच प्रक्रिया में एक और आदर्श बदलाव लाया है यानी औद्योगिक क्रांति के बाद बदलाव विनिर्माण से विपणन की ओर हो गया है। फुटवियर कंपनियां अभी भी पुराने फंडे पर काम कर रही हैं यानी सभी रणनीतियों का केंद्र उत्पादन है। हालाँकि वे व्यवहार में ग्राहक-केंद्रित होने का दावा करते हैं, लेकिन यह झूठ है... वे बदलाव से डरते हैं और इस सुविधा क्षेत्र से बाहर नहीं जाना चाहते हैं।

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पूर्वानुमान बनाम वास्तविक बिक्री, गवां दिए गए विक्रय, अग्रिम योजना, ईओक्यू इत्यादि पर हजारों टन डेटा उत्पन्न होता है... लेकिन फिर भी बुनियादी बातों को ठीक नहीं किया जाता है....... बदल जाने की..... इच्छा तो है लेकिन इच्छाशक्ति गायब है.....

इन कारणों से, इस प्रकार की कंपनियों में कुछ सामान्य समस्याएं होती हैंः

संघर्शन....

मूर्त्ति पूजक....

राजनीति...

टीम में उत्साह की कमी....

कोई भी उन्हें दीर्घकालिक कैरियर संभावना के रूप में नहीं देखता...

कोई मानव संसाधन प्रक्रिया नहीं...

सभी समस्याएँ स्व निर्मित हैं और केवल दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है और कुछ नहीं...

“विजयी सैनिक पहले जीतते हैं और फिर युद्ध में जाते हैं। जबकि पराजित सैनिक पहले युद्ध में जाते हैं और फिर जीतने की कोशिश करते हैं”.. इच्छा और चाह में यही बुनियादी अंतर है....

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