स्थानीय वृक्ष का स्थान विशेष के जलवायु से रिश्ता
- मई 10, 2024
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देश में करीब 25 प्रतिशत वनक्षेत्र होने का दावा किया जा रहा है। पद्म भूषण से सम्मानित पर्यावरणविद डा. अनिल जोशी का मानना है कि यह आंकड़ा सही नहीं है। क्योंकि उनका कहना है कि इस तरह के आंकड़े को जब सरकारी रिकार्ड में दर्ज किया जाता है तो इसमें सभी तरह के पेड़ों की गणना कर ली जाती है।
एक सवाल यह उभरता है कि क्या हमारे ’सरकारी वन’ वाकई प्राकृतिक बचे हुए हैं? सही मायनों में प्राकृतिक वन वहीं है, जहां के वृक्ष वहां की जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप प्राकृतिक तरीके से उगे हो।
प्रकृति किसी खास जगह पर विशेष किस्म और प्रजातियों के पौधों को पनपने का मौका दिया हैं। उदाहरण के लिए केरल में अगर कटहल के पेड़ प्रचुर मात्रा में हैं तो गंगा बेसिन में साल के वृक्ष होते हैं। ओक के वृक्ष हिमालय में ही पाए जाते हैं जबकि अन्य प्रजातियों बेल-कीकर मैदानी क्षेत्रों में पाए जाते है।
क्योंकि यह पौधे इन क्षेत्रों की जलवायु, भौगोलिक परिस्थितियों और यहां के हालातों के अनुकूल है। लेकिन पिछले लंबे समय से हमने स्थानीयता के साथ पेड़ों के रिश्ते को खत्म कर दिया है। आज हम किसी भी तरह के वृक्षों को लगा कर वनों का दर्जा दे देते हैं।
लेकिन इस तरह के पौधे वहां की जलवायु और भूमि के लिए उपयुक्त है या नहीं, इस ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता। पेड़ प्रकृति का ऐसा सिस्टम है, जो हमें लकड़ी छाया और ऑक्सीजन फल देते हैं, इसके साथ साथ वह जलवायु, भूमि और वहां के तापमान को नियंत्रित करने की दिशा में भी काम करते हैं।
हम इस तथ्य से तो अच्छी तरह वाकिफ है कि एक व्यक्ति प्रतिवर्ष 7.01 टन कार्बन डाइऑक्साइड निकालता है, पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को कम करते हैं। भूजल और तापमान को नियंत्रित करने में भी पेड़ों की अहम भूमिका है।
लेकिन अब जब हम किसी पेड़ को उसके प्राकृतिक वातावरण से अलग दूसरे जलवायु क्षेत्र में लगाएंगे तो उसकी क्षमताएं अलग होंगी। इसलिए वृक्ष और उसके उगने वाले स्थान के बीच विशेष रिश्ता है जो वहां की मिट्टी, पानी व अन्य जलवायु से उस पेड़ को जोड़ कर रखता है।
जब हम कृत्रिम तरीके से ऐसे पौधे उगा देते हैं, जो उस इलाके की स्थानीय किस्म नहीं होती है, तो उनका वहां की मिट्टी, जलवायु से तालमेल नहीं होता।
इसलिए आज एक बहुत बड़ी जरूरत यह भी है कि हम क्लाइमेट फॉरेस्ट्री, जलवायु वानिकी की ओर ध्यान दें। इस पर बातचीत करे। जिसका सीधा मतलब है कि, जो पेड़ जिस इलाके विशेष का है, उसे वहां ही उगने देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो उस कृत्रिम पोधा रोपण से वहां के स्थानीय पेड़ों के लिए गंभीर संकट भी बन सकता है। इसका असर वहां रह रहे लोगों पर भी देर सवेर आएगा।
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