सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) को मिली प्रतिक्रिया में एमएसएमई को 45-दिन के भीतर भुगतान के नियम की हर किसी ने सराहना की है।

यह ‘‘सकारात्मक‘‘ प्रतिक्रिया तब मिली जब कुछ एमएसएमई यह चिंता जता रहे हैं कि बड़ी कंपनियां छोटे और मध्यम आपूर्तिकर्ताओं से खरीदना बंद कर सकती हैं। इसकी जगह वह अपंजीकृत उद्यमों से खरीदारी करने के विकल्प को चुन सकते हैं। यह आशंका इसलिए जतायी गई थी, क्योंकि समय पर भुगतान न करने पर जुर्माना लगेगा और खरीदार एमएसएमई को दिए गए भुगतान को अपनी कर योग्य आय से नहीं घटा पाएंगे।

वित्त वर्ष 2023 के बजट में, सरकार ने एमएसएमई को देरी से होने वाले भुगतान पर सख्त कदम उठाया है। इसके लिए आयकर अधिनियम की धारा 43 बी के तहत खंड (एच) पेश किया, जो उनकी कार्यशील पूंजी और व्यावसायिक विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

1 अप्रैल, 2024 से प्रभावी, आकलन वर्ष 2024-25 (यानी, वित्तीय वर्ष 2023-24) के लिए, खंड (एच) में यह प्रावधान है कि सूक्ष्म और लघु उद्यमों से बिल (चालान) पर खरीदारों के लिए व्यय का दावा केवल तभी किया जा सकता है जब खरीददारी के 45 दिनों के भीतर भुगतान किया जाता है।

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कई उद्योगपतियों के अनुसार यह नियम खरीदारों के बीच वित्तीय अनुशासन को बढ़ावा देता है। जो एमएसएमई को भुगतान में देरी से बचाता है। इसे और मजबूत करने से इस नियम की पालना सुनिश्चित होगी। 45 दिन का भुगतान नियम, नए उद्योग के लिए जीवन रेखा साबित हो सकता है, जिनके पास अभी मजबुत तय ग्राहक नहीं है।

कई बार ग्राहक वगैर किसी ठोस कारण के उत्पादक के बारंबार आग्रह के बावजूद भी भुगतान करने में बिलंब करते हैं। यह नियम ऐसी विषम परिस्थितीयों में उत्पादक की रक्षा करता है।

हालांकि, इस कानूनी प्रावधान को अमल में लाने में कई मुद्दों को हल करना आवश्यक है। क्योंकि भुगतानकर्ता एमएसएमई पात्रता सुनिश्चित करने के अलावा विभिन्न वाणिज्यिक पहलुओं के अधीन हैं, जैसे कि प्रदर्शन आधारित प्रतिधारण और अनंतिम वर्ष के अंत में उपार्जन/व्यय बुकिंग।


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