कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने लगभग 180,000 कंपनियों को नोटिस भेजकर प्रशिक्षु अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने और अनिवार्य संख्या में प्रशिक्षुओं को नियुक्त करने के निर्देश दिए हैं।

यह कदम ऐसे समय में आया है, जब कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में प्रशिक्षुता का अधिकार कानून के माध्यम से पहली नौकरी की गारंटी देने का फैसला किया है।

प्रशिक्षु अधिनियम, 1961 के तहत, प्रत्येक वित्तीय वर्ष में, प्रत्येक प्रतिष्ठान को ठेके के कर्मचारियों सहित प्रतिष्ठान की कुल कर्मचारियों की संख्या के 2.5-15 प्रतिशत के बैंड में प्रशिक्षुओं को शामिल करना अनिवार्य है, जिनमें से 5 प्रतिशत प्रशिक्षु कौशल प्रमाण पत्र धारक और नए होने चाहिए। अधिनियम की धारा 30 के तहत, यदि प्रतिष्ठान में प्रशिक्षुओं की संख्या तय सीमा से कम है तो पहले तीन महीनों के लिए प्रति प्रशिक्षुता ₹ 500 जुर्माना और उसके बाद इतनी संख्या में सीटें भरने तक प्रति माह ₹ 1,000 का जुर्माना लगाया जा सकता है।

आम तौर पर, प्रतिष्ठान जुर्माना देना ज्यादा आसान मानते हैं। लेकिन सरकार की कोशिश है कि प्रतिष्ठान इस अधिनियम की पूरी तरह से पालन करे। जिससे प्रतिष्ठानों में प्रशिक्षुओं को नियुक्त करने को प्रेरित किया जा सके।

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यह कदम कुशल कार्यबल बनाने के लिए देश में जागरूकता पैदा करने और प्रशिक्षुता को बढ़ावा देने की सरकार की रणनीति का हिस्सा है।

किसी भी आधुनिक अर्थव्यवस्था में, यह उम्मीद की गई थी कि प्रशिक्षुता भागीदारी कुल कार्यबल के 3-4 प्रतिशत के बीच होगी, जो मोटे तौर पर लगभग 20 मिलियन प्रशिक्षुओं के बराबर होगी।

हमें डिग्री अप्रेंटिसशिप के माध्यम से प्रशिक्षुता को उच्च शिक्षा के साथ जोड़ा जाए। इस दिशा में और ज्यादा तेजी से कदम उठान होंगे। इसके लिए छोटे और मध्यम उद्यमों को प्रशिक्षुओं के साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।


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