Elections

Business issues are missing from the

Legislative elections were held in five states of the country, which was also considered to be a semi-final of the Lok Sabha elections in 2019. However, business issues are being given very little importance in these elections. The ban was imposed in the country two years ago and after that, the goods and services tax (GST) was brought. As a result, small industries faced many problems like lack of cash. Business groups have kept their demands in front of the government many times but they were not given much attention. GST was brought in the name of ‘one country one tax’ but petrol and diesel was excluded from it. A large part of the developing country like India is dependent on the Micro and Small Enterprises (MSME), but the purchases made for government projects are not made by the units of MMME sector. The huge amount of iron is being purchased from large companies for the Metro project being built in Rajasthan. Even if the government determines the minimum 20 percent limit for purchasing from MSME, but in reality it does not happen. Political parties make populist promises according to the general public at election time and traders are not considered target classes. Therefore, business issues are left behind in electoral announcements. The present state government had promised to give social security to the businessmen in their previous manifesto but it was not fulfilled. In other states, such schemes are being run. This time too, business issues have not been given much importance to the political parties’ manifesto. Many industrial land in Rajasthan was given on lease for 99 years. Businessmen are demanding that it be given freehold. Political parties have to keep in mind that business class is also voter and all the above issues should be given place in electoral issues.

 

चुनाव से गायब हैं कारोबारी मुद्दे,
मिले उचित स्थान

देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं जिन्हें 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है। हालांकि इन चुनावों में कारोबार मुद्दों को बहुत कम अहमियत दी गयी है। देश में दो साल पहले नोटबंदी लागू की गई और उसके बाद वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) को लाया गया। इसके चलते छोटे उद्योगों को नगदी की कमी जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। कारोबारी समूहों ने कई बार सरकार के सामने अपनी मांगे रखीं लेकिन इन पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। जीएसटी को ‘एक देश एक कर’ के नाम पर लाया गया लेकिन पेट्रोल-डीजल को इससे बाहर कर दिया गया। भारत जैसे विकासशील देश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा सूक्ष्म एवं लघु उद्योग (एमएसएमई) पर निर्भर है लेकिन सरकारी परियोजनाओं के लिए की जाने वाली खरीद एमएमएमई क्षेत्र की इकाइयों से नहीं की जाती। राजस्थान में बन रही मेट्रो परियोजना के लिए भारी मात्रा में लगने वाला लोहा बड़ी कंपनियों से खरीदा जा रहा है। सरकार भले ही एमएसएमई से खरीद की न्यूनतम 20 प्रतिशत सीमा निर्धारित कर दे लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं होता। चुनाव के समय राजनीतिक पार्टियां आम जनता के हिसाब से लोकलुभावन वादे करती हैं और कारोबारियों को लक्षित वर्ग नहीं माना जाता। इसलिए कारोबारी मुद्दे चुनावी घोषणाओं में पीछे छूट जाते हैं। वर्तमान राज्य सरकार ने अपने पिछले घोषणापत्र में कारोबारियों को सामाजिक सुरक्षा देने का वादा किया था लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया। कई दूसरे राज्यों में इस तरह की योजना चलाई जा रही हैं। इस बार भी राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में कारोबारी मुद्दों को अधिक अहमियत नहीं दी गई है। राजस्थान में बहुत सी औद्योगिक जमीनें 99 वर्ष की लीज पर दी गई थीं। कारोबारियों की मांग है कि इसको फ्री होल्ड किया जाए। राजनीतिक दलों को ध्यान रखना होगा कि कारोबारी वर्ग मतदाता भी है और उपरोक्त सभी समस्याओं को चुनावी मुद्दों में जगह मिलनी चाहिए।

सौजन्यः वीरेश्वर तोमर
(सौजन्यः बिज़नेस स्टैडंर्ड