संकट देशव्यापी, किसी एक क्षेत्र या इलाके तक सीमित नहीं
- November 6, 2020
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किसी भी शहर में अगर वायु प्रदूषण है तो वह केवल उस शहर के कारण नहीं है। शहर के आसपास कई गांव और छोटे-छोटे कस्बे होते हैं, कल-कारखाने होते हैं। उस शहर के वायु प्रदूषण के लिए ये सभी जिम्मेदार होते हैं।
सर्दियों में पराली व कचरे का जलना प्रदूषण बढ़ने के अहम कारक हैं। उद्योग और वाहनों से होने वाला प्रदूषण तो साल भर बना रहता है। लेकिन सर्दियों में हवा की गति धीमी होने से इसका भी असर ज्यादा दिखने लगता है।
पर्यावरण में एक टर्म होती है-एयरशेड। इसका मतलब है कि किसी क्षेत्र विशेष की हवा का असर कितना और कहां तक होगा। उदाहरण के लिए दिल्ली में जो एयरशेड है, वह करीब 300 किमी की परिधि तक माना जाता है। यानी अगर हम दिल्लाी का प्रदूषण कम करना चाहते हैं तो हमें 300 किमी की परिधि में काम करने की जरूरत होगी। इसका मतलब है कि उसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, और उप्र के इलाके भी आ जाएंगे। यानी प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली के साथ इन चारों राज्यों का समन्वयन बहुत जरूरी है। और यह केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। ऐसा ही मेकेनिज्म देश के अन्य जगहों पर फैल रहे प्रदूषण को रोकने के लिए भी जरूरी होगा।
एनसीआर में खासकर सर्दी के मौसम में वायु प्रदूषण इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उप्र में इन्हीं दिनों धान की पराली जलाई जाती है। कोई भी राजनीतिक दल जो केंद्र में या राज्य में सत्ता में है, किसानों के खिलाफ सख्ती की इच्छाशक्ति नहीं जुटा पाता। किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता तो है ही कि खेत में पराली जलाने से खेत की नमी खत्म होती है।
लेकिन आज पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उप्र में पराली की समस्या इसलिए है क्योंकि वहां धान की कटाई के लिए कम्बाइन हार्वेस्टर इस्तेमाल किए जा रहे हैं। ये हार्वेस्टर डेढ़ फीट तक पराली जमीन पर छोड़ देते हैं। इसे या तो दोबारा मशीन या हाथ से काटिए या फिर जलाइए। दोबारा हाथ या मशीन से कटवाएंगे तो महंगा होगा। इसलिए किसान उसे जला देते हैं। अभी ऐसा तीन राज्यों में ही हो रहा है। इसलिए समय रहते ही इस समस्या का समाधान जरूरी है। इसका सबसे आसान उपाय यह है कि जिन कम्बाइन हार्वेस्टर से पराली काटी जा रहीं है, उन्हें रिडिजाइन किया जाएं। ये हार्वेस्टर पराली को डेढ़ फीट की जगह तीन-चार सेमी जितना ही छोड़ें जैसा कि हाथ से काटने पर छूटता है। तो फिर पराली को जलाने की जरूरत नहीं होगी। किसानों को सस्ते में ऐसी मशीनें दी जा सकती हैं जो पराली खेत से निकाल लें। यह सबसे आसान और प्रभावी उपाय है। लेकिन दुर्भाग्य से हम इसे छोड़कर अन्य तमाम जटिल समाधानों में लगे हुए हैं।
प्रदूषण रोकने का तात्कालिक समाधान किसी के पास नहीं है, इसलिए इसे नियंत्रित करने के लिए दीर्घकालिक योजना बनानी होगी। स्त्रोतों का सस्ता विकल्प तैयार करना होगा।