95% Haircut on Jet Airways’ dues
- July 1, 2021
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Financial creditors to Jet Airways will be taking around a 95 per cent haircut as the successful bidder, the Jalan-Kalrock consortium, has proposed to pay Rs. 385 crore against the claim of Rs. 7,807.74 crore.
Of that, Rs.185 crore will be paid upfront within 180 days of resuming operations, whereas Rs. 195 crore will be through issuing zero coupon bonds, each of Rs. 1000 face value, after two years.
The consortium has offered Rs. 391 crore in the form of non-convertible debentures (NCDs). It has also offered a 9.5 per cent stake to the lenders in Jet Airways and 7.5 per cent in loyalty program Jet Privilege (JPPL).
The Jet Airways case follows the trend of steep haircuts lenders are taking in the case of companies being taken to bankruptcy court.
According to the data from the Insolvency and Bankruptcy Board of India (IBBI), in over 363 major resolutions at the National Company Law Tribunal (NCLT) since 2017, banks have taken an average haircut of 80 per cent. Some large haircuts include Deccan Chronicle (95 per cent), Lanco Infra (88 per cent), Ushdev International (94 per cent), and Zion Steel (99 per cent).
“Service sector companies like airlines which operate on an asset light model with leased aircraft have virtually no assets. In the case of liquidation, the resultant recovered value would have been far less and the company would not have revived,” said an executive of a bank involved in the process.
The airline had shut down operations in April 2019.
जेट के लेनदारों को तगड़ी चपत
जेट एयरवेज के वित्तीय ऋणदाताओं को अपने फंसे कर्ज का करीब 95 फीसदी नुकसान उठाना होगा। कंपनी के सफल बोलीदाता जालान-कैलरॉक कंसोर्टियम ने 385 करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव दिया है जबकि ऋणदाताओं ने कुल 7,807.74 करोड़ रुपये का दावा किया था।
इनमें से 185 करोड़ रुपये कंपनी का परिचालन शुरू होने के 180 दिन के अंदर चुकाए जाएंगे और 195 करोड़ रुपये के लिए दो साल बाद जीरो कूपन बॉन्ड जारी किए जाएंगे, जिनका अंकित मूल्य 1,000 रुपये होगा। कंसोर्टियम ने गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर के तौर पर 391 करोड़ रुपये देने की पेशकश की थी। इसने ऋणदाताओं को जेट एयरवेज में 9.5 फीसदी हिस्सा और लॉयल्टी कार्यक्रम जेट प्रिवलिज में 7.5 फीसदी हिस्सा देने की भी बात कही है। भारतीय ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया बोर्ड ( आईबीबीआई) के आंकड़ों के अनुसार 2017 से एनसीएलटी में 363 से ज्यादा मामले भेजे एग थे, जिनमें से बैंको को औसतन 80 फीसदी से अधिक का ऩुकसान उठाना पड़ा। डेक्कन क्रोनिकल (94 फीसदी), जीऑन स्टील (99 फीसदी) और लैंको इन्फ्रा (88 फीसदी) जैसी कंपनियों के मामले में ऋणदाताओं को सबसे ज्यादा चपत लगी है।
एक बैंक के अधिकारी ने कहा, विमानन जैसे सेवा क्षेत्र की कंपनियां कम परिसंपत्ति के साथ परिचालन करती हैं और उनके ज्यादातर विमान पट्टे पर होते हैं। ऐसी स्थिति में परिसमापन से और भी कम वसुली होने का जोखिम रहता हैं और कंपनी भी उबर नहीं पाती हैं। जेट एयरवेज ने अप्रैल 2019 में अपना परिचालन बंद कर दिया था।