प्लाईइनसाइट की सीरिज जिसमें हमारी कोशिश है कि प्लाईवुड एवं पेनल निर्माताओं की समस्या को मंच दिया जाए। इस क्रम में इस बार एसियन प्लाई कोलकाता के एमडी श्री महावीर अग्रवाल से बातचीत की गयी है। उनसे यही जानने की कोशिश की गयी कि कैसे प्लाईवुड इंडस्ट्री तेजी से बढ़ सकती है। क्योंकि कोविड के बाद जिस तरह से हालात बदले हैं, इससे निपटने के लिए हम एक दूसरे के अनुभवों का लाभ उठा सकते हैं। प्लाईइनसाइट की हमेशा ही यही कोशिश रही है कि इस तरह के अनुभवों को हर किसी के साथ सांझा करें।
पेश है श्री महावीर अग्रवाल से बातचीत के मुख्य अंश।

उत्पादन में सुधार लगातार हो रहा है?
मांग कोविड-पूर्व के स्तर से अधिक हो चुकी है। कार्यशील पूंजी का इंतजाम करना कोई समस्या नहीं है क्योंकि बैंक आकर्षक दरों पर कर्ज देने को तैयार बैठे हैं।

जहां तक कच्चे माल, की बात है तो अक्टूबर के बाद से कीमतें 50-80 फीसदी तक बढ़ चुकी है। निर्माताओं ने या तो इस बढ़ी हुई लागत का बोझ खुद उठाया है या फिर मामूली बढ़ोतरी कर इसका आंशिक भार उपभोक्ताओं पर डाला है। लेकिन मूल्य श्रंृखला में निचली कतार पर मौजूद एसएमई के लिए कम मार्जिन पर काम करने की मजबूरी को देखते हुए इस अतिरिक्त लागत का बोझ उठा पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है। कच्चे माल की कीमतें बढ़ने का मतलब है कि कुछ एसएमई नकरात्मक मार्जिन पर भी काम कर रही हैं। उन्हें नए आॅर्डर लेते समय काफी सोच-समझकर काम करना है। हम कच्चे माल की बढ़ी लागत एवं कुछ हद तक कुशल कामगारों की कमी के कारण अपना उत्पादन नहीं बढ़ा पा रहे हैं।

माल की कीमत बढ़ी?
निश्चित ही इस वक्त रेट बढ़ना चाहिए। लेकिन इसमें समस्या यह आ रही है कि जब तक सभी यूनिट इसके लिए पूर जोर कोशिश नहीं करते तब तक कैसे रेट बढ़ें। मांग है, लेकिन इसके बाद भी रेट नहीं बढ़ा पा रहे हैं। सभी प्लाईवुड निर्माताओं ने कोशिश की है रेट बढ़ाने की। दिक्कत यह हो रही है कि इस दिशा में प्रगति ठोस नहीं हो पा रही। उत्तरी भारत खासकर यमुनानगर ही प्लाई के रेट बढ़ा सकते हैं। क्योंकि यहां से होने वाली पहल का असर बड़े पैमाने पर पड़ता है। हालांकि इसका दूसरा पहलु भी है, कि अपने ग्राहकों को फिर से लौटता देखकर सभी काफी राहत महसूस कर रहे हैं। लेकिन मांग में फिर से कमी आने के डर से अपनी कीमतें भी नहीं बढ़ा पा रहे। ऐसी स्थिति में नकारात्मक मुनाफे के लिए ही तैयार रहना है ताकि लौटकर आए ग्राहक हमारे पास बने रहें।

उद्योग किराये पर लेकर चलाने के रिवाज से परेशानी?
उद्योग (Industry) और व्यापार (Trading) चलाने की कार्यशैली बिल्कुल अलग है। एक काम को दुसरे काम के तरीके से करने की कोशिश करने पर आमदनी तो की जा सकती है, लेकिन उससे उद्योग को मानसिकता बाधित होती है। उद्योग हमेशा लंबी दूरी की सोच लेकर चलती है। इसमें तात्कालिक लाभ की आकांक्षा कम रहती है।

किराए की फैक्टरी की समस्या यह है कि वह औद्योगिक इकाई की तरह कभी विकसित नहीं हो पाती। नए लोग भी किराए पर यूनिट ले रहे हैं। ट्रेडर्स यदि निर्माण में आ जाते हैं तो यह बड़ा चैलेंज है। दोनो की स्थिति अलग-अलग है। इससे मार्केट का बैलेंस भी नहीं बन पाता है।

कोविड के बाद प्लाईवुड इंडस्ट्री में क्या बदलाव महसूस कर रहे हैं?
मार्केट के लिहाज से कोविड का फेज अब खत्म हुआ ही समझें। मांग बढ़ रही है। लेकिन इस वक्त मार्केट में कुछ अव्यवसायिक व्यवहार हो रहा है। जो बड़ी दिक्कत पैदा कर रहा है। इससे होता यह है कि इस तरह के लोग छोटे मुनाफे के लिए मार्केट का बड़ा नुकसान कर देते हैं। क्योंकि न तो इनका क्वालिटी का पैरामीटर है, न मार्केटिंग को लेकर स्पष्ट सोच है। यदि इस तरह की सोच वाले लोग अपनी कार्यशैली ठीक कर लें तो कई दिक्कत अपने आप दूर हो सकती है।

ब्रांड वेल्यू कितना मायने रखती है?
ब्रांड वेल्यू मार्केटिंग के लिए बहुत मायने रखती है। इससे ग्राहक, विक्रेता और निर्माता के बीच रिश्ता मजबूत होता है। अब हो यह रहा है कि कुछ छोटे यूनिट क्वालिटी की चिंता नहीं कर रहे हैं। इससे लोगों का विश्वास उत्पाद से कम हो रहा है। यदि हम बंगाल की बात करें तो यहां स्थानिय बाजार बिगड़ रहा है। हर जगह किफायती माल की मांग ज्यादा है। लगभग पच्चास प्रतिशत डिमांड इसी की आ रही है। अब इस रेट पर मुश्किल है कि यदि तमाम खर्च निकालने पड़े तो गुणवत्ता से समझौता करना पड़ेगा। तात्कालिक लाभ के लिए गुणवत्ता से समझौता करना हमारी साख पर प्रश्न चिह्न लगा देगा।

सरकार की ओर से प्रोत्साहन?
ढांचागत परियोजनाओं पर सरकारी खर्च होने का इंतजार है। बजट में कई नए सड़क, रेल एवं बंदरगाह परियोजनाओं की घोषणा की गई है जिससे आगे चलकर मांग में तेजी आने की उम्मीद बंधी है। हमें वर्ष 2020-21 में लगभग स्थिर या आंशिक वृद्धि की ही उम्मीद है। जब तक सरकार ढांचागत परियोजनाओं पर खर्च करना शुरू नहीं करती है, तब तक अनिश्चितता का माहौल बना रहेगा।

मार्केट से पैमेंट की स्थिति क्या हैं?
बाजार में कुछ व्यापारियों से दिक्कत आ रही है। जितना भी ठोक बजा कर माल दें, लेकिन भुगतान करने में आना-कानी करते हैं। कोरोना के बाद बाजार बढ़ा है। लेकिन इसके बाद भी इनके भुगतान की स्थिति में ज्यादा सुधार नहों हो रहा है। इस स्थिति में कई बार पेमेंट निकलवाने के लिए अदालत तक जाना पड़ता है। जो किसी भी तरह से ठीक नहीं है। हालांकि ऐसे व्यापारी अधिक हैं जो भुगतान समय पर कर रहे हैं। अच्छे व्यापारियों के भरोसे ही व्यापार बढ़ता है।

स्वदेशी फेस की आपूर्ति की संभावना?
गर्जन को लेकर अभी भी सोच बदल नहीं रही है। छोटी-बड़ी सभी प्लाईवुड कंपनी इस दिशा में काम कर रही है। लेकिन उन्हें पूरी सफलता अभी मिलती नजर नहीं आ रही है। क्योंकि गर्जन के नाम पर माल की मांग मार्केट में अधिक मिलती है। ऐसा नहीं है कि स्थानीय स्तर पर तैयार फेश की गुणवत्ता कम है। लेकिन बाजार से अभी तक गर्जन को लेकर सोच नहीं बदल रही है। इसे बदलने का प्रयास सभी को मिल कर करना होगा।