Example abounds in software and services of how Indians can work systematically solve challenges, build teams, institutional structures, and scale. But what of other areas? This is a take on aspects of manufacturing, and consideration of a change in approach.

Manufacturing enterprises face many more problems. These include large capital requirements, and extended payback period, high costs for capital, manufacturing, and inputs, and a bias for soft-collar jobs. Inadequate logistics cause delays and high inventories, increasing costs. Small, fragmented suppliers do not have adequate scale to function efficiently, although they have access to natural resources sunshine, together with low-cost labor. There is potential to exploit these in skill-intensive value chains because of large, proximate domestic markets.

To realize this potential, these manufacturing value chains need considerable effort and investment to become global champions. An assessment of their status follows, with some possible ways forward, and instances of success despite the constraints.

While companies else-where had begun to reconfigure sourcing and manufacturing for better reliability after Covid, India was not moving to exploit these opportunities.

India has the potential to become a manufacturing power house if it can develop globally competitive manufacturing hubs. The steps required with strong potential, premised on India’s strengths in raw materials, manufacturing skills, and entrepreneurship, by obtaining and applying the requisite know-how and technology, increasing productivity, and attracting capital. Appropriate changes in industrial policy together with responsive manufacturers could more than double the value chains with significantly increased employment.

Now consider contrary examples of manufacturing success against all odd. There is indeed and industry where Indian manufacturers excel, and that is in motorcycles. An interesting account describes how Auto Painstakingly built its R&D team and went on to design and build products to hold its own.

When Chinese motorcycle launched in India and undercut the market in 2005, the apprehension was of the imminent demise of India’s, motorcycle manufacturing. Within six months however, Chinese manufacturers failed because of lower quality bowing out. “Why was this not done in other industries? It’s the same country, same labor laws, same infrastructure, but not the same entrepreneurs.” Possibly, together with all the constraints and impediments, because of factors such as limited vision and/or ambition, and absence of government support?


विनिर्माण क्षेत्र की चुनौतियाँ


साॅफ्टवेयर और सेवा क्षेत्र में ऐसे उदाहरण विपुल मात्रा में हैं कि भारतीय कैसे व्यवस्थित तरीके से काम करते हुए चुनौतियों को हल करते हैं, टीम बनाते हैं, संस्थागत ढांचा तैयार करते हैं और बड़े पैमाने पर काम करते हैं। परंतु अन्य क्षेत्रों का क्या? यहां हम बात करेंगे विनिर्माण के विभिन्न पहलुओं की और रूख में बदलाव पर विचार की।

विनिर्माण क्षेत्र के उपक्रमों के सामने कई समस्याएं रहती हैं। इनमें पूंजी की आवश्यकता, विस्तारित भुगतान अवधि, पूंजी, अधोसंरचना और कच्चे माल की बढ़ी हुई लागत और परिष्कृत रोजगार को लेकर पूर्वग्रह शामिल है। अपर्याप्त लाॅजिस्टिक्स के कारण देरी होती है और तैयार माल बढ़ता जाता है। इससे लागत बढ़ती है। छोटे हुए आपूर्तिकर्ताओं के पास काम करने की पर्याप्त क्षमता नहीं होती। हालांकि संसाधनों तक उनकी आसान पहुँच होती है। इसके अलावा उनके पास सस्ता श्रम भी मिल जाता है। कुशल श्रम की आवश्यकता वाले क्षेत्रों में इनका इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि इनके लिए बड़ा घरेलू बाजार उपलब्ध है। इन संभावनाओं का दोहन करने के लिए इन विनिर्माण मूल्य श्रृंखलाओं को वैश्विक दृष्टि से अव्वल बनने की दिशा में काफी प्रयास और निवेश दोनों करने होंगे। उनके दर्जे का आकलन करते हुए आगे की कुछ राह निकाली जा सकती है।

दुनिया के अन्य हिस्सों में जहां कंपनियां कोविड के बाद अपने स्त्रोत और विनिर्माण की विश्वसनीयता बेहतर करने के लिए उन्हें नए सिरे से तैयार कर रही हैं, वहीं भारत में इन अवसरों का लाभ लेने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है।
भारत में विनिर्माण क्षेत्र की बड़ी शक्ति बनने की क्षमता है, बशर्ते कि वह वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी विनिर्माण केंद्र विकसित कर ले। तभी हो सकता है जब तगड़ी संभावना वाले 11 क्षेत्रों में उचित कौशल और तकनीक हासिल की जा सके जो उत्पादकता बढ़ाने और पूंजी जुटाने में मददगार हो। अनुमान है कि औद्योगिक नीति में उचित बदलाव और समुचित प्रतिक्रिया वाले विनिर्माण के साथ मूल्य श्रृंखला को दोगुना किया जा सकता है। इससे रोजगार भी बढ़ेगा। घरेलू बाजार और निर्यात को आसानी से बढ़ाया जा सकता है। ऐसी कमियां हैं जिन्हें दूर करके ही निर्यात बाजार में प्रतिस्पर्धा की जा सकती है। उन्हें गुणवत्ता और लागत प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता है। एशियाई देश पीछे हैं लेकिन निवेश और तकनीक इनका विकास कर सकती है।

अब तमाम विपरित हालात में विनिर्माण की सफलता पर विचार करें। मोटरसाइकिल उद्योग में भारतीय विनिर्माण बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है। ऑटो कपंनियों ने पहले अपनी शोध एवं विकास टीम तैयार की और बढ़िया डिजाइन और उत्पाद तैयार किए। सन 2005 में जब देश में चीनी मोटरसाइकिल आईं तो डर था कि देश में मोटरसाइकिल निर्माण खत्म हो जाएगा। परंतु कमजोर गुणवत्ता के कारण चीनी मोटरसाइकिल पिछड़ गईं।

अन्य उद्योगों में यह क्यों नहीं दोहराया गया? देश वही, श्रम कानून वही, बुनियादी ढांचा भी वही, कुछ अलग है तो वो हैं उद्यमी और शायद सीमित दृष्टिकोण और सरकारी मदद की कमी।


 


Directory


Directory